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भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26, 27 और 28 तथा सबरीमाला का मुद्दा | Dharmik Swatantrata Ka Adhikar

संविधान और राजव्यवस्था के इस लेख में चौथे मौलिक अधिकार अर्थात 'Dharmik Swatantrata Ka Adhikar' के अनुच्छेद 26, 27 और 28 के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है। Dharmik Swatantrata Ka Adhikar संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 तक दिया गया है। इस लेख में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों से सम्बंधित महत्वपूर्ण मुद्दे यथा सबरीमाला का मुद्दा को भी विस्तार से समझाया गया है। 


Dharmik Swatantrata Ka Adhikar

Table of Content



अनुच्छेद 26 - Article 26 in Hindi

अनुच्छेद 26 के अनुसार "प्रत्येक धार्मिक समुदाय को धार्मिक मामलों के प्रबंध का अधिकार होगा"। 


धार्मिक मामलों के प्रबंध का अधिकार/आचरण की स्वतंत्रता एवं सबरीमाला का मुद्दा - Sabrimala Temple Case in Hindi

सबरीमाला का मंदिर केरल में स्थित है, जो भगवान 'अयप्पास्वामी' का मंदिर है। इसमें अयप्पास्वामी ईश्वर का स्वरूप (Nature of Daity) ब्रह्मचारी है। जिस कारण मंदिर में युवा महिलाओं का जाना वर्जित कर रखा था। 1965 में केरल विधानमंडल ने एक कानून बनाया जिसके द्वारा यह निर्धारित किया गया की रजस्वला महिलाएँ (menstruating women) अयप्पास्वामी के मंदिर में नहीं जा सकती। 


आगे 1991 में केरल उच्च न्यायालय ने इस कानून को सही ठहराया। केरल उच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 26 के अंतर्गत 'धार्मिक समुदाय के द्वारा धार्मिक मामलों का प्रबंध किया जाना' के तर्क को स्वीकार किया। 


Indian Young Lawyers Association Case, 2018

Indian Young Lawyers Association के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केरल विधानमंडल द्वारा बनाये गए इस कानून को रद्द कर दिया और यह निर्धारित किया की सभी उम्र की महिलाएँ अयप्पास्वामी के मंदिर में जा सकती है। 


सर्वोच्च न्यायालय के तर्क:

  • केरल हाईकोर्ट का यह कानून लिंगभेद करता है और इसलिए संविधान में वर्णित समानता के मौलिक अधिकार के विरुद्ध है। 
  • अनुच्छेद 25 के तहत सभी व्यक्तियों को धर्म के अनुसार आचरण की स्वतंत्रता है। लेकिन केरल विधानमंडल का कानून महिलाओं की धार्मिक आचरण की स्वतंत्रता में बाधा डालता है। 
  • न्यायालय ने यह स्वीकार किया की धार्मिक समुदाय को धार्मिक मामलों के प्रबंध का अधिकार है किंतु इसके द्वारा किसी नागरिक को उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। 

न्यायालय ने धार्मिक आचरण की व्याख्या करते हुए 'अनिवार्यता परीक्षण का सिद्धांत' (Doctorine of Essentiality Test) का प्रतिपादन किया। इस सिद्धांत के अनुसार धार्मिक आचरण को दो वर्गों में विभाजित किया गया -

  1. अनिवार्य धार्मिक आचरण  
  2. गैर-अनिवार्य धार्मिक  


1. अनिवार्य धार्मिक आचरण के अंतर्गत वे कार्य शामिल माने गए जो धर्म का अभिन्न अंग है। जिनके अभाव में धर्म का पालन संभव नहीं है। यथा - पूजा पाठ, नमाज आदि। 


2. गैर-अनिवार्य धार्मिक आचरण के अंतर्गत वे कार्य आते हैं जिनका धर्मग्रंथो में उल्लेख तो है किंतु धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। इनका पालन किए बिना ही धर्म का अस्तित्व संभव है। यथा - पर्दाप्रथा, बहुविवाह, जातिवाद आदि। 


  • न्यायालय के अनुसार अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक समुदाय को अनिवार्य धार्मिक मामलों के प्रबंध का अधिकार है, लेकिन गैर-अनिवार्य धार्मिक आचरण में राज्य हस्तक्षेप कर सकता है। 



अनुच्छेद 27 - Article 27 in Hindi

अनुच्छेद 27 के अनुसार "ऐसा कोई भी कर (tax) नहीं लगाया जायेगा जिससे प्राप्त आय किसी धर्म विशेष की उन्नति के लिए व्यय की जाती हो"। 


यहां ध्यान रखने योग्य बात है की अनुच्छेद 27 कर (Tax) लगाने का निषेध करता है, शुल्क (Fee) लगाने का नहीं। 


कर और शुल्क में क्या अंतर होता है? - Difference Between Tax and Fee in Hindi

कर राज्य द्वारा निर्धारित कर संरचना के अनुसार वसूले जाते है, जैसे - आय कर, बिक्री कर, सेवा कर आदि। करों से प्राप्त राशि का उपयोग सार्वजनिक हित में होता है, कर देने वाले व्यक्ति विशेष के पक्ष में नहीं। 


इसे विपरीत, शुल्क का सीधा संबंध किसी विशेष सेवा या कार्य से होता है क्योंकि उसका भुगतान उस सेवा के लिए ही होता है। यथा - यदि किसी मंदिर में प्रवेश के लिए कुछ शुल्क निर्धारित कर दिया जाए तथा उस शुल्क से प्राप्त धन को उस मंदिर के समुचित प्रशासन व रख-रखाव जैसे कार्यों के लिए खर्च किया जाए तो यह अनुच्छेद 27 का उल्लंघन नहीं होगा। 


  • यह अनुच्छेद भारतीय पंथनिरपेक्षता की प्रकृति को दिखाता है। अनुच्छेद 27 के अनुसार "राज्य किसी धर्म विशेष की उन्नति के लिए प्रयास नहीं करेगा बल्कि सभी धर्मों की समान उन्नति के प्रयास करेगा"। इससे हमें यह भी पता चलता है की यूरोपीय पंथनिरपेक्षता और भारतीय पंथनिरपेक्षता किस प्रकार एक-दूसरे से अलग है। जहाँ पश्चिमी पंथनिरपेक्षता में धर्म व राज्य पूर्णतः एक-दूसरे से पृथक है वहीं भारतीय पंथनिरपेक्षता में धर्म व राज्य दोनों के मिल-जुलकर चलने की बात कहीं गई है। 



अनुच्छेद 28 - Article 28 in Hindi

अनुच्छेद 28 "राज्य की शिक्षा संस्था में धार्मिक शिक्षा की मनाही करता है"।


चलिए जानते है की किन शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है और किन में नहीं -

1. राज्य द्वारा वित्तपोषित (State Funded) - धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। 

2. राज्य द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त (State Aided) - धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है लेकिन उसे ग्रहण करने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता। 

3. राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त (State Recognised) - धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है लेकिन उसे ग्रहण करने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता। 

4. अन्य (Other) - धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है और उसे ग्रहण करने के लिए बाध्य किया जा सकता। 


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