इतिहास के इस लेख में हम उपनिवेशवाद (Colonialism in Hindi) के बारे में चर्चा करेंगे और जानेंगे की उपनिवेश व Upniveshvad Kya Hai? तथा उपनिवेशवाद के कौन-कौन से चरण होते है। साथ ही इस लेख में हम कुछ अन्य सवालों जैसे की क्या ब्रिटिशों ने भारत का आधुनिकीकरण किया था? और उपनिवेशवाद का अध्ययन किस प्रकार करना चाहिए आदि के बारे जानेंगे।
Upniveshvad Kya Hai? - Colonialism in Hindi
उपनिवेशवाद (Colonialism) से तात्पर्य है कि किसी बाहरी शक्ति के द्वारा किसी क्षेत्र पर कब्जा करना अथवा नियंत्रित करना तथा अपने लाभ के लिए संबंधित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का दोहन करना।
जो क्षेत्र नियंत्रण स्थापित करता है उसे 'मातृदेश' अथवा 'महानगर राज्य' कहा जाता है और जिस क्षेत्र पर कब्जा किया जाता है उसे 'उपनिवेश' (Colony) कहा जाता है। वस्तुतः उपनिवेशवाद की यह मान्यता है कि उपनिवेश, मातृदेश के हित के लिए अर्थ रखता है।
उपनिवेश से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
उपनिवेश का अध्ययन करते हुए निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करना आवश्यक है -
1. उपनिवेशवाद का अध्ययन नीति की जगह ढांचे के रूप में किया जाना चाहिए क्योंकि बदलते हुए प्रशासक के साथ नीतियाँ तो बदलती रहती है परंतु ढाँचा पूर्ववत कायम रहता है। यह ढाँचा उपनिवेश के शोषण पर आधारित होता है, फिर चाहे जो भी प्रशासक वे उसी ढाँचे में बांधकर काम करेंगे।
2. उपनिवेशवाद का स्वाभाविक परिणाम होता है 'पिछड़ापन' क्योंकि महानगरीय राज्य अपने हित में संबंधित उपनिवेश का आर्थिक शोषण करता है परंतु इसका एक अस्वाभाविक परिणाम होता है 'विकास'। दूसरे शब्दों में महानगरीय राज्य उपनिवेश कि संसाधनों के बेहतर दोहन के लिए कुछ संस्थाओं की स्थापना करता है और इसका दूरगामी लाभ संबंधित उपनिवेश को प्राप्त होता है और इस कारण वहां विकास को प्रोत्साहन मिल जाता है। यथा - भारत के संदर्भ में रेलवे, अंग्रेजी शिक्षा आदि।
यही वजह है कि आज भी ब्रिटिश और भारतीय विद्वानों के बीच बहस जारी है। एक ओर ब्रिटिश साम्राज्यवादी विद्वान यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि ब्रिटिश ने भारत का आधुनिकीकरण किया। बदले में भारतीय जवाब यह है कि यह आधुनिकीकरण ब्रिटिश की प्राथमिकता नहीं अपितु ब्रिटिश शासन का अनचाहा परिणाम था।
3. उपनिवेशवाद का अध्ययन करते हुए यह स्मरणीय है कि उपनिवेशवाद मूल रूप से एक आर्थिक संबंध था परंतु वह राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ढाँचे का स्वरूप भी निर्धारित करता है अर्थात महानगरीय राज्य रुचि उपनिवेश के आर्थिक दोहन में होती है लेकिन इस आर्थिक दोहन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए महानगरीय राज्य को संबंधित उपनिवेश के संदर्भ में राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक निति भी तय करनी होती है। इसका अर्थ है कि जब हम किसी औपनिवेशिक समाज के राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ढाँचे का अध्ययन करते हैं तो हमें यह भी ज्ञात होना चाहिए कि इनका अध्ययन स्वतंत्र रूप में ना करके महानगरीय राज्य के आर्थिक हित के सन्दर्भ में किया जाना चाहिए।
यही विवाद हम ब्रिटिश शासन के अंतर्गत भारत के संदर्भ में पाते है जैसा कि हम देखते हैं कि समय-समय पर ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा भारत के संदर्भ में विशिष्ट राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक और सांस्कृतिक नीतियाँ निर्धारित की गई थी। ब्रिटिश साम्राज्यवादी लेखक यह सिद्ध करना चाहते है की ब्रिटिश द्वारा यह नीतियां विशिष्ट ब्रिटिश विचारधारा के प्रभाव में लायी गई थी किन्तु भारतीय विद्वानों के विचार में यह मुख्यतः ब्रिटिश आर्थिक हित में लायी गई।
उपनिवेशवाद के चरण
उपनिवेशवाद को मुख्य रूप से 3 चरणों में विभाजित किया गया है, जो की निम्नलिखित है -
- वाणिज्यिक चरण (1757-1813)
- औधोगिक चरण (1813-1858)
- वित्तीय चरण (1858 के पश्चात)
आधुनिक भारत के इतिहास के लेख:
- उपनिवेशवाद का पहला चरण (वाणिज्यिक चरण) क्या था?
- वाणिज्यिक चरण के दौरान भारत में हुए प्रशासनिक सुधार
- उपनिवेशवाद के दूसरे चरण [औधोगिक चरण (1813-1858)] का इतिहास
- विदेशी कंपनीयों का भारत आगमन
- 18वीं सदी के भारत का इतिहास
- कर्नाटक युद्ध: कारण व परिणाम
विश्व इतिहास के लेख:
- यूरोपीय पुनर्जागरण क्या था?
- धर्मसुधार तथा प्रतिधर्मसुधार आंदोलन क्या थे?
- प्रबोधन: विशेषताएं, कारण, प्रभाव और प्रमुख विचारक
- सामंतवाद और पवित्र रोमन साम्राज्य का इतिहास