शांति निकेतन: भारत का 41वां विश्व धरोहर स्थल
शांति निकेतन, पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है। यह भारत का 41वां UNESCO (The United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization) विश्व धरोहर स्थल बन गया है
शांति निकेतन का इतिहास
- इसे महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर ने 1860 के दशक की शुरुआत में एक 'अतिथि गृह' के रूप मे स्थापित किया था। बाद में, इसकी स्थापना वाले पूरे क्षेत्र को शांति निकेतन के रूप में नामित किया गया।
- वर्ष 1901 में, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शांति निकेतन में अपना ब्रहृाचर्य आश्रम शुरू किया। इसे 1925 में पाठ भवन के रूप में जाना जाने लगा।
- उन्होंने शांति निकेतन में श्रीनिकेतन (ग्रामीण पुनर्निर्माण के लिए), कला भवन एवं संगीत भवन (सांस्कृतिक संस्थान) और विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की।
शांति निकेतन पर एक नजर
1. आवासीय विद्यालय और कला केंद्र
यह धार्मिक एवं सांस्कृतिक सीमाओं से परे मानवीय एकता तथा प्राचीन परंपराओं पर आधारित है।
2. प्राकृतिक परिवेश में कक्षाएं
टैगोर का उद्देश्य छात्रों और पर्यावरण के बीच एक मजबूत सम्बंध को बढ़ावा देना था।
3. ऋतुओं का उत्सव
इसका उद्देश्य छात्रों के मन में वानस्पतिक एवं जीवों के प्रति लगाव की भावना पैदा करना था।
4. अंतर्राष्ट्रीयता का अनूठा ब्रांड
शांति निकेतन ने भारत की प्राचीन, मध्यकालीन और लोक परंपराओं के साथ-साथ जापानी, चीनी फारसी, बाली, डेको तथा बर्मी कला शैलियों को भी अपनाया।
5. Bengal School of Art के अग्रदूतों के साथ जुड़ाव
शांति निकेतन मानवतावाद, समावेशिता, पर्यावरणवाद और अखिल एशियाई आधुनिकतावाद के मामले में Bengal School of Art के अग्रदूतों के विचारों का प्रदर्शन करता है।
6. मूर्तिकला
शांति निकेतन परिसर में मूर्तिकला का उतना ही महत्व है, जितना कि वृक्ष और आकाश का।
शांति निकेतन और रवीन्द्रनाथ टैगोर
शांति निकेतन की स्थापना करते समय टैगोर ने कल्पना की थी की -
प्रत्येक बच्चे में प्रकृति के साथ एकता की भावना स्थापित की जाए।
शिक्षा के साथ ललित कला और संगीत का एकीकरण किया जाए।
ग्रामीण क्षेत्रों का पुनर्निर्माण किया जाए।
भारतीय एवं अन्य संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक संबंध स्थापित किए जाए।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का शिक्षा संबंधी दर्शन
- टैगोर ने सर्वांगीण विकास के लिए संगीत, साहित्य, कला व नृत्य के माध्यम से शैक्षणिक के साथ-साथ कलात्मक विकास पर बहुत बल दिया।
- उनके लिए शिक्षा का उद्देश्य आत्म-बोध, शारीरिक विकास, मानवतावाद के प्रति प्रेम, नैतिक और आध्यात्मिक विकास आदि था।
- उनका मानना था की बच्चे के बौद्धिक विकास के लिए उसकी कल्पनाशीलता, रचनात्मक स्वतंत्र चिंतन, सतत जिज्ञासु प्रवृति और मन की सतर्कता पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
- उन्होंने बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा पर जोर दिया।
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