यूरोपीय पुनर्जागरण विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इस घटना ने यूरोप को एक नई दिशा प्रदान की और यूरोप धीरे-धीरे मध्यकाल के अंधकार (अज्ञान) से आधुनिकता (ज्ञान) की ओर अग्रसर होने लगा। आज के इस लेख में हम यूरोप के पुनर्जागरणकाल (European Renaissance Period) के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे और इसके विभिन्न पक्षों जैसे पुनर्जागरण का अर्थ क्या है? (Renaissance Meaning in Hindi), इसकी विशेषताएँ, कारण, प्रभाव, पुनर्जागरण के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में हुए परिवर्तन आदि के बारे में जानेंगे।
पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि - Renaissance Background in Hindi
रोमन साम्राज्य के समय यूरोप ने सांस्कृतिक क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति की थी, परन्तु रोमन साम्राज्य के पतन के साथ ही यूरोप के लोग रोम और युनानी ज्ञान को भूलते चले गए, जिसके परिणामस्वरूप संस्कृति के विकास का मार्ग अवरूद्ध हो गया। समाज में सामंतों और पोप व धर्माधिकारियों का अत्यधिक प्रभाव बना हुआ था, जो आम जनता का शोषण करते थे तथा अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे रहते थे।
परन्तु उत्तर मध्यकाल के अंत में एक बौद्धिक क्रांति प्रारम्भ हुई, जिसके फलस्वरूप सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्रों में अत्यधिक उन्नति हुई और यूरोपवासी जो की रोमन व यूनानी ज्ञान को भूल गए थे, अब फिर से उनकी रूचि यूनानी व रोमन ज्ञान साहित्य में बढ़ी। लोगों में स्वतंत्र चिंतन, साहस, जिज्ञासा, अन्वेषण और वैज्ञानिक चेतना की भावनाएँ उत्पन्न हुई।
पुनर्जागरण का अर्थ एवं परिभाषा - Renaissance Meaning in Hindi
रेनेसाँ, फ्रेंच भाषा का शब्द है, जिसका सर्वप्रथम प्रयोग इटली के "वैसारी" ने किया था (16वीं सदी में स्थापत्य एवं मूर्तिकला के क्षेत्र में आये क्रांतिकारी परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया।) इसके पश्चात 18वीं सदी में एक फ्रांसिसी विद्वान "दिदरों" ने भी कला एवं साहित्य के नव सृजन के लिए रेनेसाँ शब्द का प्रयोग किया था।
14वीं सदी से लेकर 17वीं के मध्य यूरोप में जो सांस्कृतिक परिवर्तन हुए, उन्हें हम पुनर्जागरण के नाम से जानते हैं। पुनर्जागरण को और अधिक विस्तारित रूप में परिभाषित करें तो हम कह सकते है की "पुनर्जागरण एक ऐसा बौद्धिक एवं उदार सांस्कृतिक आंदोलन था जिसमें मनुष्य मध्यकालीन बंधनों से मुक्त होकर स्वतंत्र चिन्तन की ओर अग्रसर हुआ था जिसमें तर्क, जिज्ञासा और शिक्षा के द्वारा ज्ञान-विज्ञान, कृषि, उद्योग, कला, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में चहुँमुखी प्रगति हुई"।
पुनर्जागरण का काल
पुनर्जागरण का काल मोटेतौर पर 1350 ईस्वी से 1550 ईस्वी के मध्य माना जाता है। सामान्यतः आधुनिक यूरोप का प्रारंभ पुनर्जागरण से ही माना जाता है क्योंकि पुनर्जागरण ने यूरोप में विचार करने की स्वतंत्रता, वैज्ञानिक एवं आलोचनात्मक दृष्टि, चर्च के प्रभुत्व से कला और साहित्य की मुक्ति तथा प्रादेशिक भाषाओं के विकास को संभव बनाया।
पुनर्जागरण का प्रारंभ
पुनर्जागरण की सर्वप्रथम शुरूआत यूरोप के एक देश 'इटली' से हुई थी। इटली से ही पुनर्जागरण की शुरूआत होने के निम्नलिखित कारण थे -
यूरोपीय पुनर्जागरण के कारण
1. धर्मयुद्ध (Crusades)
11वीं सदी के अंतिम दशक से 13वीं सदी के अंत तक ईसाइयों व मुस्लिमों दोनों के लिए पवित्र स्थल 'जेरूसलम' पर अधिकार करने के लिए ईसाई जगत और मुस्लिम जगत (सैल्जुक तुर्कों) के मध्य होने वाले युद्धों को धर्मयुद्ध (Crusades) कहा जाता हैं। धर्मयुद्धों ने पुनर्जागरण के लिए वातावरण तैयार किया। इन धर्मयुद्धों के कारण यूरोपवासी पूर्वी देशों की समृद्ध संस्कृति के संपर्क में आये। इन धर्मयुद्धों के दौरान ही अरबी अंक, बीजगणित, कुतुबनुमा और कागज बनाने का यंत्र आदि यूरोप पहुंची। धर्मयुद्धों ने ही भौगोलिक अध्ययन को प्रोत्साहन दिया। अब धर्म के बंधन ढीले पड़ने लगे और लोगों में एक नवीन तार्किक दृष्टिकोण उत्पन्न हुआ।
2. नए नगरों का उदय
व्यापार की उन्नति से यूरोप में कई नए नगरों जैसे की मिलान, वेनिस, न्यूरेम्बर्ग आदि का विकास हुआ। इन नगरों के विकास ने यूरोपीय लोगों के जीवन को बहुत प्रभावित किया। इन नगरों ने मजहबी संकीर्णता, मध्युगीन रूढ़िवादिता और अंधविश्वासों से हटकर स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया। इन नगरों में रहने वाले लोग स्वतंत्र वातावरण को पसंद करते थे और आनंद व उल्लास के साथ अपने जीवन को व्यतीत करना चाहते थे। इन नगरों के लोगों ने यूनानी और रोमन कला और साहित्य को भी संरक्षण प्रदान किया।
3. कागज और छापाखाना
कागज और छापेखाने (printing press) का अविष्कार सर्वप्रथम चीन में हुआ था। अरबों के माध्यम से ही यूरोपवासियों को कागज और छापेखाने की जानकारी प्राप्त हुई। 1450 ई. में जर्मनी के "जोहानेस गुटेनबर्ग" ने छापेखाने का आविष्कार किया। इस आविष्कार से यूरोप में पुस्तकें सस्ती कीमतों पर और आसानी से मिलने लगी। पुस्तकें, समाचार पत्रों आदि के अध्ययन से लोग बड़े लाभांवित हुए। उनके अन्धविश्वास धीरे-धीरे कम होने लगे तथा उनमें तर्क, बुद्धिवाद व स्वतंत्र चिंतन की भावनाएँ उत्पन्न हुई। यूरोप के लोगों की बौद्धिक चेतना के विकास में सर्वाधिक योगदान छपी हुई पुस्तकों ने दिया था।
4. शिक्षा का प्रसार
उत्तर मध्यकाल में यूरोप में शिक्षा का पर्याप्त विकास हुआ। यूरोप के कई प्रमुख नगरों में विश्वविधालयों की स्थापना हुई, जिसके फलस्वरूप शिक्षा और साहित्य की बहुत उन्नति हुई। शिक्षा के स्वरूप में भी परिवर्तन हुआ जिससे मनुष्य की प्राचीन रूढ़ियों, अंधविश्वासों, मान्यताओं आदि में आस्था नहीं रही और उसमें स्वतंत्र चिंतन और तार्किक दृष्टिकोण का उदय हुआ।
5. भौगोलिक खोजें
भौगोलिक खोजों के कारण न केवल यूरोपीय व्यापार में काफी उन्नति हुई बल्कि यूरोपवासी विश्व की अन्य सभ्यताओं के संपर्क में भी आये जिससे उनके ज्ञान में वृद्धि हुई और संकीर्ण विचारधाराओं से हटकर उनका दृष्टिकोण व्यापक होने लगा।
6. वैज्ञानिक चेतना
व्यापार में उन्नति होने से लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी हुई और लोगों ने बेहतर उच्च शिक्षा लेना शुरू किया। शिक्षा के प्रसार और उसके स्वरूप में हुए परिवर्तनों से लोगों में वैज्ञानिक चेतना जागृत हुई। अब तर्क और प्रयोग पर बल दिया जाने लगा। कोपरनिकस, गैलिलियों, न्यूटन, लुई पाश्चर आदि वैज्ञानिकों ने नई खोजें और आविष्कार किये, इससे लोगों का तर्क, प्रयोग और विज्ञान की ओर झुकाव होने लगा।
7. कुस्तुन्तुनिया का पतन
कुस्तुन्तुनिया का पतन विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ। कुस्तुन्तुनिया (Constantinople), जो की पूर्वी रोमन साम्राज्य (बाइजेंटाइन साम्राज्य) की राजधानी थी पर 1453 ईस्वी में ऑटोमन साम्राज्य (उस्मानी तुर्कों) ने अधिकार कर लिया। कुस्तुन्तुनिया रोमन और यूनानी दर्शन, कला एवं साहित्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
किन्तु जैसे की एक कहावत है की -"हर विध्वंशक घटना का कोई न कोई रचनात्मक प्रभाव होता है" उसी प्रकार कुस्तुन्तुनिया के पतन से 2 महत्वपूर्ण प्रभाव सामने आये। कुस्तुन्तुनिया के पतन का पहला परिणाम तो ये हुआ की वहाँ के विद्वानों ने अपने बहुमूल्य ग्रंथों, कलाकृतियों आदि के साथ यूरोप के विभिन्न देशों में शरण ली और इन ग्रंथों को पढ़कर यूरोपवासी अपनी प्राचीन यूनानी और रोमन सभ्यता-संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित हुए।
कुस्तुन्तुनिया के पतन का दूसरा महत्वपूर्ण परिणाम ये हुआ की इससे यूरोपवासियों को पूर्वी देशों से व्यापार के लिए वैकल्पिक जल मार्गों की खोज के लिए बाध्य होना पड़ा। पहले यूरोपवासी भूमध्यसागर के रास्ते पूर्वी देशों के साथ व्यापार करते थे किन्तु अब ऑटोमन तुकों द्वारा उनके जहाजों को लूट लिया जाता था। वहीं इस समय यूरोप में पूर्वी देशों की वस्तुओं खासकर मसालों की भारी माँग थी। इस कारण यूरोप के कई देशों ने पूर्वी देशों से व्यापार जारी रखने के लिए वैकल्पिक जल मार्गों की खोज करना शुरू कर दिया। इन खोजों के फलस्वरूप ही अमेरिका की खोज हो सकी।
[ कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
- कुस्तुन्तुनिया को रोमन शासक "कोंसटेंटाइन" द्वारा अपनी राजधानी बनाया गया था।
- कुस्तुन्तुनिया का वर्तमान नाम "इस्तांबुल (İstanbul)" है।
- अमेरिका महाद्वीप की खोज "क्रिस्टोफर कोलंबस (Christopher Columbus)" द्वारा 1492 में की गई।
- अमेरिका का नाम एक इतावली नाविक "अमेरिगो वेसपुची (Amerigo Vespucci)" के नाम पर रखा गया है।
- भारत के लिए वैकल्पिक जलमार्ग की खोज "वास्को-डी-गामा" द्वारा 1498 में की गई। ]
यूरोपीय पुनर्जागरण की विशेषताएँ
यूरोपीय पुनर्जागरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थी -
- पुनर्जागरण में स्वतंत्र चिंतन को बढ़ावा दिया गया जिससे तर्क, प्रयोग, वैज्ञानिक चेतना, बुद्धिवाद आदि को बढ़ावा मिला।
- मानवतावाद, पुनर्जागरण की एक प्रमुख विशेषता थी। मानवतावाद का अर्थ है, मानव जीवन में रूचि लेना, मानव की समस्याओं का अध्ययन करना, मानव जीवन के महत्व को स्वीकार करना तथा उसके जीवन को समृद्ध एवं उन्नत बनाने का प्रयास करना। मानवतावाद ने धर्म और मोक्ष के स्थान पर मानव जीवन को सुखी और संपन्न बनाने पर जोर दिया। "फ्रांसिस्को पेट्रार्क" को मानवतावाद का जन्मदाता माना जाता है।
- देशी भाषाओं का विकास पुनर्जागरण की एक अन्य प्रमुख विशेषता थी। पुनर्जागरण से पहले तक केवल यूनानी और लैटिन भाषाओं में ही ग्रंथों को लिखा जाता था तथा अन्य देशी भाषाओं को हतोत्साहित किया जाता था।
- पुनर्जागरण के दौरान विज्ञानवाद को प्रोत्साहन मिला रोजर बेकन का नारा था "प्रयोग करो, प्रयोग करो"। इस काल में विचारों की पुष्टि के लिए प्रयोगवाद को बढ़ावा मिला।
- पुनर्जागरण कालीन साहित्य एवं कला में सहज सौंदर्य की उपासना दिखाई देती है। अब साहित्य और कला में सौंदर्य एवं प्रेम की भावनाओं को प्रमुख स्थान दिया गया।
- नवीन भौगोलिक खोजें हुई।
पुनर्जागरण का महत्व एवं परिणाम
पुनर्जागरण के कारण यूरोपवासियों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आये। इस आंदोलन के निम्नलिखित परिणाम सामने आये -1. राष्ट्रीयता की भावना का विकास
पुनर्जागरण ने लोगों के मस्तिष्क से अंधविश्वास, रूढ़िवादिता आदि विचारों को कम करने का काम किया। अब लोगों का समर्पण चर्च के प्रति न होकर अपने राज्य/राष्ट्र के प्रति होने लगा। देशी भाषाओं के विकास, मानव जीवन को महत्व, शिक्षा के क्षेत्र में सुधार आदि का राष्ट्रीय भावना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा।
2. व्यापार-वाणिज्य की उन्नति
व्यापार-वाणिज्य में उन्नति पुनर्जागरण का एक महत्वपूर्ण परिणाम रहा था। इससे औद्योगिक क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई। व्यापार की उन्नति से एक नया व्यापारी वर्ग अस्तित्व में आया और आगे चलकर यह वर्ग धनी वर्ग बन गया और यूरोप में पूँजीवाद का उदय हुआ। इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा मिला। इसके साथ ही इसने उपनिवेशवादी तथा साम्राज्यवादी प्रवृतियों को भी बढ़ावा दिया।
3. धर्म सुधार आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करना
पुनर्जागरण ने धर्म सुधार आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने का भी काम किया। पुनर्जागरण के फलस्वरूप लोगों के धार्मिक अंधविश्वास धीरे-धीरे समाप्त होने लगे और पोप का प्रभाव भी कम होने लगा। अब देशी भाषाओं में भी 'बाइबिल' का अनुवाद होने लगा जिससे जनसामान्य इसे पढ़कर धर्म के सच्चे स्वरूप को समझने लगे। अब लोगों की प्राचीन रूढ़ियों, अंधविश्वासों, मान्यताओं, परंपराओं में आस्था नहीं रही और इनके परिणामस्वरूप यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन हुआ।
4. मानव जीवन में रूचि
अब लोग काल्पनिक परलोक से ज्यादा इहलोक (यथार्थ संसार) पर ध्यान देने लगे और अपने जीवन को बेहतर बनाने लगे। इससे अब मानव जीवन को अधिक महत्व दिया गया।
5. विज्ञान को बढ़ावा
पुनर्जागरण के दौरान वैज्ञानिक चेतना और स्वतंत्र चिंतन को बढ़ावा मिला, इससे विज्ञान के क्षेत्र में नवीन सिद्धांतों का प्रतिपादन हुआ।
6. देशी भाषाओं का विकास
पुनर्जागरण ने देशी भाषाओं के विकास को बढ़ावा दिया। अब कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का अनुवाद विभिन्न देशी भाषाओं में होने लगा। पुनर्जागरण के दौरान अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, डच, इतावली आदि भाषाओं के साहित्य का अधिक विकास हुआ।
7. शिक्षा के क्षेत्र में सुधार
पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार हुए। नए-नए विश्वविधालयों की शुरुआत हुई, शिक्षा पर से धर्म का प्रभाव कम हुआ, विद्यालयों में देशी भाषाओं को पढ़ाया जाने लगा, विज्ञान और गणित जैसे विषयों के साथ ही समाजविज्ञान के विषयों पर भी काफी जोर दिया जाने लगा।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और स्वतंत्र चिंतन को बढ़ावा
पुनर्जागरण काल में तर्क और विवेक को बढ़ावा मिला। अब इस बात पर जोर दिया जाने लगा की केवल उस बात को ही स्वीकार किया जाए जो तर्क की कसौटी पर खरी उतरे।
9. कला का विकास
पुनर्जागरण काल में कला रूढ़िवादी बंधनो से मुक्त होकर विकास के मार्ग पर अग्रसर होने लगी। पुनर्जागरण काल की मूर्तिकला, स्थापत्य कला, साहित्य, चित्रकला और संगीत ने अपने प्रतिमान स्थापित किये।
विज्ञान, कला एवं साहित्य के क्षेत्र में उपलब्धियाँ
विज्ञान के क्षेत्र में उपलब्धियाँ
पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई। इस काल में विज्ञान के नए सिद्धांत प्रतिपादित किये गए और कई नए अविष्कार हुए।
(i) भौतिक शास्त्र
गैलिलियों ने 1593 ई. में पेण्डुलम का आविष्कार किया, जिसके आधार पर आधुनिक घड़ियों का निर्माण हो सका। इसके साथ ही थर्मामीटर, बिजली आदि का भी आविष्कार किया गया।
(ii) ज्योतिष एवं भूगोल
पोलैंड के एक वैज्ञानिक कोपरनिकस ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया की, "पृथ्वी एक ग्रह है, जो सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।" इटली के वैज्ञानिक ब्रूनों ने कोपरनिकस के इस सिद्धांत की पुष्टि की। गैलीलियो ने दूरबीन का आविष्कार किया। गैलीलियो ने ही बताया की 'गिरते हुए पिंड की गति उसके भार पर नहीं बल्कि, बल्कि दूरी पर निर्भर करती है।' इसी काल में इंग्लैंड के वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने 'गुरत्वाकर्षण के सिद्धांतों' का प्रतिपादन किया।
(iii) रसायन शास्त्र
पुनर्जागरण काल में धातु विज्ञान, खदान और रसायन शास्त्र में काफी उन्नति हुई। कोडस नाम के एक वैज्ञानिक ने गंधक और एल्कोहॉल को मिलकर ईंधन का निर्माण किया। हैलमाट ने कार्बनडाइऑक्सइड गैस की खोज की।
कला के क्षेत्र में उपलब्धियाँ
1. प्रमुख चित्रकार
पुनर्जागरणकालीन प्रमुख चित्रकारों में राफेल का नाम प्रमुख है। राफेल ने मानवतावाद की भावना से प्रेरित होकर नारियों और बालकों के अत्यंत सुंदर चित्र बनाएं। सहज सौंदर्य के चित्रों के निर्माण के कारण राफेल अत्यधिक प्रसिद्ध हुए। उनके द्वारा बनाया गया "मेडोना" का चित्र उनका सर्वश्रेष्ठ चित्र माना जाता है। इस चित्र में वात्सल्य, प्रेम और मातृत्व का अत्यंत ही सुंदर चित्रण किया गया है।
माइकेल एंजेलों भी पुनर्जागरण काल का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। माइकेल एक चित्रकार होने के साथ-साथ एक कुशल मूर्तिकार, वास्तुकार तथा एक अच्छा कवि भी था। उसने वेटिकन में पोप के महल 'सिस्टाइन चैपेल' की छत पर 145 चित्रों का चित्रण किया। इन सभी चित्रों में 'द लास्ट जजमेंट' (अंतिम न्याय) नामक चित्र सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
लियोनार्डो द विंची एक महान चित्रकार थे। वे एक कुशल चित्रकार होने के साथ-साथ एक वैज्ञानिक कलाकार, संगीतज्ञ व इंजीनियर भी थे। उन्होंने अपने चित्रों को यथार्थपूर्ण बनाने के लिए मानव शरीर का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने अनेक सुंदर चित्र बनाए थे। उनके द्वारा बनाए गए चित्रों में 'मोनालिसा' और 'द लास्ट सपर' अत्यंत प्रसिद्ध है।
इसके साथ ही पुनर्जागरणकाल के कई अन्य प्रमुख चित्रकार भी थे जैसे की - हर्बर्ट और जान, हाल्स, लूकस, हैंस आदि।
2. मूर्तिकला
पुनर्जागरण काल के दौरान मूर्तिकला में नवीन शैलियाँ अपनाई जाने लगी। मध्य काल के दौरान मूर्तिकला पर धर्म तथा चर्च का अत्यधिक प्रभाव था लेकिन अब मूर्तिकला धर्म की जंजीरों से मुक्त हो गई तथा कलाकार स्वच्छंद व स्वतंत्र रूप से मूर्तियों का निर्माण कर सकते थे। पुनर्जागरण के कारण मूर्तिकला में सबसे बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि अब तक केवल संतों की ही मूर्तियां बनाई जाती थी लेकिन अब साधारण मनुष्य की मूर्तियां भी बनाई जाने लगी। मूर्तिकला के क्षेत्र में लोरेन्ज, गिबेर्ती, दोनोतेल्लो और माइकेल एंजेलों के नाम प्रमुख हैं।
3. स्थापत्य कला
पुनर्जागरण काल में स्थापत्य कला की एक नवीन शैली का जन्म हुआ। इस काल की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इस काल की स्थापत्य कला में यूनानी, रोमन तथा अरबी शैलियों का समन्वय था। इस शैली की प्रमुख विशेषताएं थी - श्रृंगार, सजावट तथा डिजाइन। इस नई शैली में मेहराबों, गुम्बदों तथा स्तम्भों की प्रधानता थी। फ्लोरेंस निवासी ब्रूनेलेस्की इस नवीन शैली का प्रवर्तक था। अब नुकीले मेहराबों के स्थान पर गोल मेहराबों का निर्माण किया जाने लगा। पुनर्जागरण काल में नवीन शैली में अनेक इमारतें बनाई गई, जिनमें रोम के संत पीटर का गिरजाघर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। माइकेल एंजेलों को इस सदी का सबसे प्रसिद्ध स्थापत्यकार माना जाता है।
साहित्य के क्षेत्र में उपलब्धियाँ
पुनर्जागरण काल में साहित्य की काफी अधिक प्रगति हुई। पहले जहां साहित्य की रचना केवल लैटिन और यूनानी भाषाओं में ही की जाती थी, वही अब देशी भाषाओं में भी साहित्य की रचना की जाने लगी। पुनर्जागरणकालीन प्रमुख साहित्यकार निम्नलिखित हैं -
रचनाकार | रचना |
---|---|
1. दाँते | डिवाइन कॉमेडी |
2. फ्रांसिस्को पेट्रार्क | अफ्रीका (गीत) |
3. बुकासियो | डेकेमेरोन |
4. टासो | जेरूसलम डिलीवर्ड |
5. मिल्टन | पेराडाइज लास्ट तथा पेराडाइज रिगेंड |
6. मार्लो | टैंम्बुर्लेन, डॉ फास्टस |
7. विलियम शेक्सपियर | हेमलेट, आथेलो, मैकबेथ, रोमियो एंड जूलियट, मर्चेंट ऑफ वेनिस, As you like it |
8. सर टामस मूर | यूटोपिया |
9. एडमण्ड स्पेंसर | Fairy Queen |
10. फ्रांसिस बेकन | The advancement of learning, New Atlantis |
11. चौसर | केंटरबरी टेल्स |
12. सर्वेंटीज | डान क्विक्जोट |
13. रेबेलास | हीरोइक डीड्स ऑफ गारगुंतवा एंड पेन्टाग्रुएल |
14. केमोन्स | लुसियाड |
15. इरैस्मस | In the praise of folly |
16. दाँते | The monarchia |
17. मैकियावली | The prince |
[ महत्वपूर्ण तथ्य:
- दाँते को 'पुनर्जागरण का अग्रदूत' कहा जाता है।
- फ्रांसिस्को पेट्रार्क को 'मानवतावाद का पिता' कहा जाता है।
- मैकियावली को 'आधुनिक चाणक्य' भी कहा जाता है।
- जियटो को 'आधुनिक चित्रकला' का जन्मदाता माना जाता है। ]
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