हमें अक्सर पढ़ने और सुनने को मिलता हैं की वायुमंडल में पाई जाने वाली 'ओजोन परत' ((Ozone Layer in Hindi) में छेद हो गया है और जीवों व पर्यावरण पर इसके कई हानिकारक दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे है। पर क्या आप जानते है की ओजोन परत क्या है? और इसमें छेद कैसे होता है? आज के इस लेख में हम ओजोन परत के बारे में बात करने वाले है और इस लेख में आपको Ozone Layer से सम्बंधित सभी प्रश्नों जैसे की Ozon Parat Kya Hai?, चैपमैन चक्र क्या हैं?, ओजोन परत का क्षय कैसे और क्यों हो रहा है?, ओजोन परत क्षय से पड़ने वाले प्रभाव तथा ओजोन परत के क्षय को रोकने के लिए क्या उपाय किये जा रहे है? आदि सभी सवालों के जवाब मिलेंगे।
ओजोन परत क्या है? - Ozone Layer in Hindi
ओजोन हल्के नीले रंग की या लगभग रंगहीन प्रबल ऑक्सीकारक गैस होती है, जो वायुमंडल में सामान्यतः 10km से 50km की ऊंचाई तक पाई जाती है किंतु यह 15km से 35km की ऊंचाई तक पर्याप्त रूप में होती है अतः इस क्षेत्र को ही 'ओजोन परत' (Ozone Layer) कहा जाता है। कुछ विद्वान इसे 'ओजोन मंडल' भी कहते है।
ओजोन परत की खोज 1913 में फ्रांसीसी भौतिक वैज्ञानिकों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन द्वारा की गई थी जबकि इस परत की विशेषताओं का विस्तारपूर्वक अध्ययन ब्रिटिश मौसम वैज्ञानिक डॉब्सन द्वारा किया गया था। डॉब्सन ने एक यंत्र 'स्पेक्ट्रोफोटोमीटर या डॉब्सन' का आविष्कार किया जिसकी सहायता से ओजोन परत की मोटाई ज्ञात की जा सकती है। सामान्यतः ओजोन परत की मोटाई 3 मिलीमीटर तक होती है किंतु ओजोन परत की मोटाई मिलीमीटर में व्यक्त ना करके डॉब्सन यूनिट में की जाती है -
100 डॉब्सन यूनिट (DU) = 1mm
अतः ओजोन परत की मोटाई 300 डॉब्सन यूनिट आदर्श रूप में पाई जाती हैं।
चैपमैन चक्र क्या है? - Chapman Cycle in Hindi
ओजोन का अधिकांश भाग समतापमंडल में मिलता है अतः इसे 'समतापमंडलीय ओजोन' भी कहते हैं। समतापमंडल में ओजोन के बनने और टूटने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है जिससे ओजोन की एक संतुलित मात्रा समतापमंडल में प्राप्त होती है इस चक्र को ही चैपमैन चक्र/ओजोन-ऑक्सीजन चक्र कहते है।
ओजोन परत क्या काम करती है?
ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों को अवशोषित कर लेती है। पराबैंगनी विकिरणों को निम्नलिखित विकिरणों में विभाजित किया जा सकता है -
- UV-A (400-315nm)
- UV-B (315-280nm)
- UV-C (280-100nm)
[nm - Nanometer = तरंगदैर्ध्य]
UV-C की तरंगदैर्ध्य कम होती है इसलिए यह सर्वाधिक खतरनाक विकिरण मानी जाती है जिसे समतापमंडल में डाईऑक्सीजन और ओजोन द्वारा पूरी तरह अवशोषित कर लिया जाता है।
UV-B विकिरण भी खतरनाक होती है जो त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, सनबर्न, डीएनए को नुकसान और प्रतिरोधक क्षमता को नकारात्मक रूप में प्रभावित कर सकती है। यह पौधों के उत्तकों तथा प्रकृति में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है। अतः UV-B का खतरनाक भाग जब पृथ्वी पर पहुंचता है तब उसके कई नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं। ओजोन परत इस खतरनाक विकिरण को अवशोषित कर लेती है और UV-B का केवल एक भाग पृथ्वी पर पहुंचता है जो मानव शरीर में विटामिन-D के संश्लेषण के लिए उपयोगी होता है।
UV-A पूरी तरह पृथ्वी पर पहुँचती है किन्तु यदि इस विकिरण के प्रभाव में लंबे समय तक रहा जाए तब यह भी मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकती है।
इस प्रकार ओजोन परत एक छलनी की तरह कार्य करती हैं और UV विकिरणों को अवशोषित कर पृथ्वी पर जीवनयोग्य दशाएं निर्मित करती है।
ओजोन परत क्षय/ह्रास क्या हैं और कैसे होता हैं? - Ozone Layer Depletion in Hindi
ओजोन परत की मोटाई में कमी होने की घटना को ही ओजोन परत क्षय/ह्रास या ओजोन छिद्र कहा जाता है। ओजोन छिद्र के लिए निम्नलिखित पदार्थ उत्तरदायी होते है -
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन
- कार्बनटेट्राक्लोराइड
- नाइट्रसऑक्साइड
- हैलोन
- मिथाइल क्लोरोफॉर्म
- हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन
- मिथाइल ब्रोमाइड
- हाइड्रो ब्रोमो फ्लोरो कार्बन
- ब्रोमो क्लोरोमीथेन
इनमें से सर्वाधिक ओजोन परत क्षयकारी पदार्थ क्लोरोफ्लोरोकार्बन और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन है जो फ्रीज, AC जैसे प्रशीतक यंत्रों, अग्निश्मक यंत्रों, कृत्रिम फॉम आदि में प्रयुक्त होते हैं।
क्लोरोफ्लोरोकार्बन और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन मानव द्वारा निर्मित पदार्थ है जो कमरे के ताप पर अक्रिय गैस की तरह कार्य करते है। किन्तु जब ये पवन परिसंचरण तंत्र के अधीन समतापमंडल में पहुँचते है तब ये वहाँ अत्यधिक निम्न तापमान के अधीन सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में टूट जाते है तथा क्लोरीन, फ्लुओरीन, ब्रोमीन आदि को मुक्त करते है जो समतापमंडल में चैपमैन चक्र के अधीन उत्पन्न ऑक्सीजन से क्रिया करके अपने साथ जोड़ लेते है जिससे ओजोन निर्माण की प्रक्रिया बाधित हो जाती है और ओजोन परत पतली होने लगती है, इसे ही 'ओजोन परत क्षय' कहा जाता हैं।
यद्पि ओजोन परत क्षय की प्रक्रिया पूरे समतापमंडलीय में होती हैं किन्तु फिर भी अंटार्कटिक और आर्कटिक क्षेत्र में ओजोन परत क्षय विशेष रूप सेप्राप्त होता है, इसके निम्नलिखित कारण हैं -
- वायुमंडल की कम मोटाई
- पोलर वोर्टेक्स
- ध्रुवीय समतापमंडलीय बादल (PSCs)
ओजोन परत क्षय को रोकने के लिए किये गए उपाय
- ओजोन परत (Ozone Layer in Hindi) क्षय को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर निम्नलिखित उपाय किये गए है -
- 22 मार्च 1985 को वियना अभिसमय लाया गया जो ओजोन परत की रक्षा के लिए एक बहुपक्षीय पर्यावरण संधि है, यह CFC की कटौती के लिए फ्रेमवर्क प्रस्तुत करता है।
- 1987 में कनाडा के मॉन्ट्रियल शहर में 'मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल' लाया गया जिसमें वृहद स्तर पर ओजोन क्षयकारी पदार्थों को नियंत्रित करने के प्रयास किये गए।
- 2016 में किगाली समझौता लाया गया जिसमें मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का संशोधन किया गया। इसमें 2040 के दशक के अंत तक HCFC की चरणबद्ध तरीके से समाप्ति का लक्ष्य रखा गया हैं।