Environment & Ecology के इस लेख में आज हम बात करने वाले है भारत में वन संरक्षण हेतु चलाए गए कुछ महत्वपूर्ण आंदोलनों के बारे में। इस लेख में चिपको आंदोलन (Chipko Andolan Kya Hai?), Silent Valley आंदोलन, पश्चिमी घाट बचाओ आंदोलन, एप्पिको आंदोलन तथा मैत्री आंदोलन आदि के बारे में जानकारी दी गई है।
Chipko Andolan Kya Hai? - Chipko Movement in Hindi
चिपको आंदोलन पेड़ों की रक्षा के लिए किया गया एक महत्वपूर्ण आंदोलन था जिसकी शुरुआत उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के रेनी नामक गाँव से हुई।
26 मार्च 1974 को रेनी गांव के जंगलों को बचाने के लिए गौरा देवी के साथ 21 महिलाओं और 7 बच्चियों ने ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई करने पर पेड़ों से चिपक कर अपना विरोध प्रकट किया। अंततः ठेकेदारों ने हार मानी तथा चिपको आंदोलन सफल हुआ। इस आंदोलन की शुरुआत गौरा देवी, सुदेशा देवी, बचनी देवी आदि महिलाओं के नेतृत्व में हुई। बाद में आंदोलन का नेतृत्व श्री सुंदरलाल बहुगुणा तथा श्री चंडी प्रसाद भट्ट ने किया।
Chipko Andolan से प्रेरणा लेकर वनों की कटाई के विरोध में आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ विंध्य क्षेत्र तथा पश्चिमी घाट में अनेक आंदोलन हुए। वर्ष 1987 में चिपको आंदोलन को "राइट लिवलीहुड पुरूस्कार" प्रदान किया गया।
इस आंदोलन ने लोगों में पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूकता उत्पन्न की जिसके परिणामस्वरूप अनेक पर्यावरण तथा वन संरक्षक उभरकर सामने आए जिन्होंने भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस आंदोलन की तर्ज पर दक्षिण भारत में एप्पिको आंदोलन चला।
चिपको आंदोलन का नारा :-
(उल्लेखनीय है कि चिपको आंदोलन की मूलरूप से शुरुआत राजस्थान में अमृता देवी बिश्नोई नामक एक महिला के नेतृत्व में हुई थी। जब राजस्थान के राजा ने अपने क्षेत्र के खेजड़ी के पेड़ों को चुना बनवाने के लिए कटवाना का निर्णय लिया तो अमृता देवी के नेतृत्व में अनेक स्त्रियाँ इन पेड़ों से चिपक गई तथा राजा के लोगों द्वारा उन्हें बेरहमी से काटकर मार दिया गया था।)
एप्पिको आंदोलन - Appiko Movement in Hindi
चिपको आंदोलन की तर्ज पर दक्षिण भारत में चले वन संरक्षण के इस आंदोलन को दक्षिण भारत में एप्पिको आंदोलन के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन का नारा - 'उलिसु बेलेसु बलासु' है इसका अर्थ 'वनों को बचाओ , बढ़ाओ तथा काम में लाओ है। एप्पिको कन्नड़ भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है - 'गले लगाना'।
एप्पिको आंदोलन के प्रणेता 'पांडुरंग हेगड़े' है। पर्यावरण संबंधी जागरूकता का यह आंदोलन वर्ष 1983 में कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ क्षेत्र में शुरू हुआ था।
मैत्री/मैती आंदोलन - Maitri Movement in Hindi
मैत्री आंदोलन उत्तराखंड राज्य में कल्याण सिंह रावत द्वारा 1955 में आरंभ किया गया था।आंदोलन का मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र को हरा-भरा करने के लिए पौधों का रोपण करना है। स्थानीय भाषा में मैत्री का अर्थ मायका यानी मां का घर होता है।
इसके अंतर्गत अपने विवाह के दिन प्रत्येक लड़की एक पौधा लगाती है। इस प्रकार यह आंदोलन पहाड़ की महिलाओं का जल, जंगल और जमीन से जुड़ा प्रदर्शित करता है। वर्तमान में उत्तराखंड के अधिकांश क्षेत्रों में मैत्री संगठन की शाखाएं कार्य कर रही है। किसी महिला को ही मैत्री संगठन के अध्यक्ष बनाया जाता है जिसे 'दीदी' के नाम से संबोधित किया जाता है।
पश्चिमी घाट बचाओ आंदोलन - Save Western Ghats Movements in Hindi
जंगल बचाओ मानव बचाओ का नारा बुलंद करने वाला यह आंदोलन पश्चिमी घाट में केंद्रित है यह आंदोलन महाराष्ट्र में गोवा की पीपुल्स पार्टी द्वारा प्रारंभ किया गया पश्चिमी घाट में उत्खनन पेड़ों की कटाई बांध निर्माण आदि गतिविधियों के कारण पश्चिमी घाट प्राकृतिक रूप से असंतुलन की स्थिति में है महाराष्ट्र सरकार के विकास निगम द्वारा रोगियों के लिए फूल के पेड़ से हानि है यह वृक्ष को अधिकतम से कोई भी प्राप्त नहीं होती है
साइलेंट वैली आंदोलन - Silent Valley Movement in Hindi
साइलेंट वैली/शांत घाटी आंदोलन साइलेंट वैली की सुरक्षा के उद्देश्य से शुरू किया गया एक सामाजिक आंदोलन था। यह आंदोलन केरल राज्य के पलक्कड़ जिले के सदाबहार उष्णकटिबंधीय वनों को बचाने के लिए शुरू किया गया था।
यह आंदोलन केरल की 1980 में कुंतीपूझा नदी पर बनाए जा रहे जलविद्युत प्रोजेक्ट के विरोध में था। जिन क्षेत्रों में यह प्रोजेक्ट बनाया जा रहा था वह क्षेत्र सदाबहार वनों द्वारा आच्छादित क्षेत्र है जिसमें पौधे एवं जंतुओं की दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती है और जलविद्युत परियोजना द्वारा इनके नष्ट होने का खतरा बन गया था।
(Silent Valley वन क्षेत्र को सन 1847 में एक ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री रॉबर्ट वाइट ने खोजा था। स्थानीय लोग इसे 'सैरन्ध्रीवनम' कहते हैं। सैरन्ध्री द्रौपदी (महाभारत काल) का नाम है कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहाँ आकर रहे थे।
इसे वन क्षेत्र को साइलेंट वैली कहने के पीछे सबसे बड़ी वजह यहाँ की अजब प्राकृतिक शांति है। शायद सैरन्ध्री शब्द को बोलने में अंग्रेजों को दिक्कत थी इसलिए उन्होंने उससे मिलता-जुलता नाम साइलेंट वैली रखा।)