पर्यावरण व पारिस्थितिकी के इस लेख में आज हम चर्चा करेंगे 'मैंग्रोव वनों' (Mangrove Forest In Hindi) के बारे में। इस लेख में हम मैंग्रोव वनों के महत्व, विशेषताएँ, प्रकार, क्षय के कारण और संरक्षण के उपाय आदि सभी पहलुओं के बारे में आपको विस्तार से जानकारी देंगे।
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Mangrove Forest In Hindi |
मैंग्रोव का अर्थ क्या है? - mangrove Forest Meaning In Hindi
'मैंग्रोव' शब्द पुर्तगाली शब्द 'मैंग्यू' और अंग्रेजी शब्द 'ग्रोव' से मिलकर बना है जिसका तात्पर्य पौधों के उस समूह से है जो खारे पानी व आर्द्र क्षेत्रों में उगते है।
सामान्यतः मैंग्रोव वे वृक्ष होते है, जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के तटों, ज्वारनदमुखों, पश्चजल, लैगून और पंक जमावों आदि में विकसित होते है। ऐसा नहीं है मैंग्रोव केवल खारे जल में ही विकसित हो सकते है, ये ताजा जल में भी उग सकते है किंतु ताजा जल में इनकी वृद्धि सामान्य से कम होती है।
मैंग्रोव वनस्पति का सर्वप्रथम विवरण नियार्कस (325BC) द्वारा दिया गया। ऐसा माना जाता है कि मैंग्रोव वनों का सर्वप्रथम उद्भव भारत-मलय क्षेत्र (भारत-मलेशिया) में हुआ तथा वर्तमान समय में भी अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा मैंग्रोव की सर्वाधिक प्रजातियां यहां पाई जाती है।
मैंग्रोव की विशेषता - Features Of Mangrove In Hindi
1. कुछ मैंग्रोव की प्रजातियां अपने उत्तकों में बड़ी मात्रा में लवण संचित रखने की प्रवृत्ति रखती है। जबकि कुछ प्रजातियों में जड़ स्तर पर ही लवण को बड़े पैमाने पर फिल्टर कर दिया जाता है। अन्तःज्वारीय क्षेत्र में उत्पन्न होने के बावजूद इन्हें समय-समय पर ताजे जल की आपूर्ति की भी आवश्यकता होती है।
2. मैंग्रोव दलदली क्षेत्र में उगते हैं जिसमें ऑक्सीजन की कमी होती है अतः इनमें श्वसन मूल का विकास होता है जिन्हें 'न्यूमेटोफोर्स' (Pneumatophores) कहते हैं।
pneumatophores |
3. ये तटीय दलदली क्षेत्र में उगते हैं जहां की मृदा ढीली होती है अतः इनमें विभिन्न प्रकार की जड़ों की उत्पत्ति होती है जिसमें अवस्तंभक जड़ें, घुटना जड़े, फलक जड़े, पुस्ता जड़े प्रमुख होती है।
4. इनमें जरायुजता (Vivipary) पाई जाती है।
(जरायुजता का अर्थ है कि मैंग्रोव पौधे के बीज का कुछ विकास मैंग्रोव वृक्ष के तने पर ही हो जाता है। जब बीज में से कोपलें निकल आती है तो यह दलदल में गिरता है या पानी में बह कर दूर चला जाता है और अपना विकास करता है। क्योंकि दलदल में ऑक्सीजन की कमी के कारण बीज सीधे उग नहीं सकता।)
5. यद्यपि ये अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगते हैं किंतु ताजे जल की बचत के लिए इनमें मरुद्भिद पौधों की तरह ही कई अनुकूल संरचनाएं प्राप्त होती है जिनमें मोमपर्णी संरचना, माँसल पत्तियां, धँसे हुए रंध्र आदि पाए जाते हैं।
मैंग्रोव के प्रकार - Types Of Mangrove In Hindi
विश्व में पाए जाने वाले मैंग्रोवों को मुख्यतः 4 वर्गों में विभाजित किया जाता है -
- लाल मैंग्रोव (Red Mangrove)
- सफ़ेद मैंग्रोव (White Mangrove)
- काले मैंग्रोव (Black Mangrove)
- बटनवुड मैंग्रोव (Buttonwood Mangrove)
1. लाल मैंग्रोव (Red Mangrove)
लाल मैंग्रोव की श्रेणी में वे पौधे आते हैं, जो बहुत अधिक खारे पानी को सहन करने की क्षमता रखते है तथा समुद्र के नजदीक उगते हैं। इस श्रेणी के मैंग्रोव पौधों में अन्य मैंग्रोव पौधों की तरह विशेष रूपांतरित जड़ें होती हैं, जो तने के निचले भाग से निकलकर धरती तक पहुँचती है और पौधे को स्थिरता प्रदान करती है, इसलिए इन्हें स्थिर जड़ें कहते हैं। ये जड़ें पौधे को ऐसे स्थान पर उगने की क्षमता प्रदान करती हैं जहाँ भूमि में ऑक्सीजन की कमी होती हैं। इन जड़ों के सहारे ही पौधे वातावरण में हवा का आदान-प्रदान और पोषक तत्वों को प्राप्त करते हैं।
2. सफ़ेद मैंग्रोव (White Mangrove)
सफ़ेद मैंग्रोव का नाम इसकी सफ़ेद चिकनी छाल के कारण पड़ा है। इन पौधों को इनकी जड़ों तथा पत्तियों की विशेष प्रकार की बनावट के कारण अलग से पहचाना जाता है।
3. काले मैंग्रोव (Black Mangrove)
काले मैंग्रोव को कच्छ वनस्पति भी कहते हैं। इस श्रेणी के अंतर्गत वे पौधे शामिल किए जाते है जिनमें अधिक खारे जल को सहने की क्षमता होती है। इन पौधों में विशेष प्रकार की श्वसन जड़ें पाई जाती हैं, जो दलदल में उगने वाले पौधों में पाई जाती हैं। इन पौधों में गैसों के आदान-प्रदान के लिये विशेष प्रकार की संरचनाएँ पाई जाती है जिन्हें वातरंध्र (lenticels) कहते हैं।
4. बटनवुड मैंग्रोव (Buttonwood Mangrove)
ये झाड़ी के आकार के पौधे होते हैं तथा इनका बटनवुड नाम इनके लाल-भूरे रंग के तिकोने फलों के कारण रखा गया हैं। ये सफ़ेद मैंग्रोव के ही अंग है, हालाँकि कुछ वैज्ञानिक इन्हें वास्तविक मैंग्रोव नहीं मानते हैं।
मैंग्रोवों का महत्व - Significance Of Mangrove Forest
- मैंग्रोव प्राकृतिक शरण स्थल की तरह कार्य करते हैं जहां विभिन्न प्रकार के जीव निवास करते हैं, जिसमें क्रस्टेशियन मछलियां, झींगा, केकड़ा, मैंग्रोव बंदर, बाघ, जंगली सूअर आदि शामिल है।
- मैंग्रोव विभिन्न जंतुओं के लिए भोजन उपलब्ध कराते हैं।
- मैंग्रोव प्राकृतिक जल शोधक होते है। ये मैंग्रोव क्षेत्र की तलछट, मैंगनीज, तांबा तथा क्रोमियम आदि भारी धातु को सोख लेती है।
- मैंग्रोव में लेवोनाइड पाया जाता है जो सूर्य से आने वाली UV-B किरणों से रक्षा करता है।
- मैंग्रोव, वर्षा वनों की तुलना में 3 से 5 गुना अधिक कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित करते हैं अतः यह हरित गृह प्रभाव को कम करते हैं और जलवायु नियंत्रक का कार्य करते हैं।
- मैंग्रोव तथा प्रवाल एक-दूसरे की रक्षा करते हैं।
- ये चक्रवात, सुनामी आदि से तटीय क्षेत्र की रक्षा करते हैं।
- मैंग्रोवों से काष्ठ और ईंधन के लिए लकड़ी प्राप्त होती है।
- मैंग्रोव से 'टैनिन' नामक पदार्थ प्राप्त होता है जो रंगाई के काम आता है।
- विश्व में लगभग 120 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिए मैंग्रोवों पर आधारित है तथा मैंग्रोव विभिन्न प्रकार की पारिस्थितिकी सेवाएँ प्रदान करते हैं। इन वनों से बहुत से वानिकी उत्पाद एवं मत्स्य उत्पाद प्राप्त होते हैं।
मैंग्रोव वनों का वैश्विक वितरण
मैंग्रोव विश्व के लगभग 123 उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय देशों में पाए जाते हैं (Forest State Report-2019 के अनुसार)। ये देश मुख्यतः विषुवत रेखा के आसपास स्थित है। मैंग्रोव उष्ण और उपोष्ण कटिबंध के अन्तःज्वारीय क्षेत्र में 20° से 30° अक्षांशों के मध्य प्राप्त होते हैं। इन क्षेत्रों में तापमान 26°C से 35°C और औसत वार्षिक वर्षा 100 सेंटीमीटर 300 सेंटीमीटर तक होती है।
विश्व में लगभग 15 लाख वर्ग km में मैंग्रोव वन विस्तारित है, जिनमें से 40% एशिया में है।
भारत में मैंग्रोव वनों का वितरण - Mangrove Forest In India
भारत में 'वन स्थिति रिपोर्ट-2019' के अनुसार 2017 की तुलना में मैंग्रोव क्षेत्र में वृद्धि हुई है तथा भारत में विश्व मैंग्रोव का लगभग 3% पाया जाता है। भारत में 4975 वर्ग km क्षेत्रफल में मैंग्रोव स्थित है जो भारत के कुल क्षेत्रफल का 0.15% है। भारत में मैंग्रोव वनों के क्षेत्र के अनुसार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का अवरोही क्रम (घटते हुए क्रम में) निम्नलिखित है -
पश्चिम बंगाल |
गुजरात |
अंडमान और निकोबार |
आंध्र प्रदेश |
महाराष्ट्र |
भारत में कुछ प्रमुख मैंग्रोव क्षेत्र निम्नलिखित है -
क्षेत्र/राज्य | प्रमुख मैंग्रोव क्षेत्र |
---|---|
पश्चिम बंगाल | सुंदरवन |
उड़ीसा | भीतरकनिका, महानदी, स्वर्णरेखा, देवी-कोड़ा, धामरा, चिल्का, कच्छ वनस्पति आनुवंशिकी संस्थान केंद्र |
आंध्र प्रदेश | पूर्वी गोदावरी, कोरिंगा, कृष्णा |
तमिलनाडु | मुथुपेट, पिचवरम, रामनद, पुलिकट, काजूवेली |
केरल | केरल में वेंबनाड, कन्नूर (उत्तरी केरल) |
कर्नाटक | कुंडापुर |
गोवा | उत्तरी व दक्षिणी गोवा |
महाराष्ट्र | रायगढ़, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग |
गुजरात | अमरेली, भड़ौच, नवसारी आदि |
मैंग्रोवों के क्षय के कारण
वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर मैंग्रोव नष्ट हो रहे हैं जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित है -- मैंग्रोव को सामान्य अनुपयोगी माना जाता है इस कारण बड़े पैमाने पर इनकी कटाई की गई है। जिससे मैंग्रोवों में प्रजाति संरचना दुष्प्रभावित हो रही है।
- मैंग्रोव क्षेत्रों को काटकर धान की कृषि क्षेत्र का विस्तार किया जा रहा है।
- जल कृषि में झींगा पालन के कारण भी बड़े पैमाने पर मैंग्रोवों को काटा गया है।
- मानवजनित प्रदूषण के कारण मैंग्रोव क्षेत्रों में अवसाद और ठोस अवशिष्टों की मात्रा में वृद्धि हुई है तथा तेल रिसाव आदि की घटनाएं मैंग्रोवों के श्वसन मूलों को भारी नुकसान पहुंचाती है, जिससे मैंग्रोव नष्ट हो रहे हैं।
- तटीय क्षेत्रों में विकासात्मक गतिविधियों और भूमि उपयोग परिवर्तन ने पिछले 25 वर्षों में 20% मैंग्रोवों को समाप्त कर दिया हैं।
- स्थलीय भागों में निर्वनीकरण, बांध आदि का निर्माण भी मैंग्रोव क्षेत्र में आने वाली नदियों के जल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है जिसका नकारात्मक प्रभाव मैंग्रोवों पर भी देखा गया है।
- जलवायु परिवर्तन से वर्षा प्रतिरूप में होने वाला परिवर्तन, महासागरीय जल स्तर में वृद्धि, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता और बारंबारता में वृद्धि, महासागरीय जल के pH मान में कमी और प्रवाल भित्तियों के अवक्रमित होने के दुष्प्रभाव भी मैंग्रोवों पर पड़ते हैं।
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मैंग्रोव संरक्षण के प्रयास - Mangrove Conservation Efforts
मैंग्रोव महत्वपूर्ण पारितंत्र का निर्माण करते हैं तथा इनके नष्ट होने से कई सारी पर्यावरणीय चुनौतियां उत्पन्न हो सकती है। लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप वन्य उत्पादों की सतत आपूर्ति और मैंग्रोव आवरण की निरंतरता को बनाए रखने के लिए मैंग्रोवों के संरक्षण और धारणीय प्रयोग हेतु उचित प्रबंधन और संरक्षण नीति आवश्यक है।
इसी संदर्भ में अनेक संस्थाओं जैसे - UNESCO, UNDP, IUCN, UNEP, रामसर कन्वेंशन तथा वेटलैंड इंटरनेशनल आदि ने मैंग्रोव क्षेत्रों के संरक्षण तथा प्रबंधन के कार्यक्रमों को निर्धारित किया हैं। इनके अंतर्गत निम्नलिखित कार्य आते हैं -
- संरक्षण तथा सूचीबद्ध करना
- प्रशिक्षण
- मैंग्रोव क्षेत्रों में पौधशाला निर्माण तथा वृक्षारोपण
- सुरक्षित क्षेत्रों की स्थापना
- वैश्विक मानचित्रावली का प्रकाशन
Important Full Forms:
- UNESCO - United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization
- UNDP - United Nations Development Programme
- IUCN - International Union for Conservation of Nature
- UNEP - United Nations Environment Programme
भविष्य के लिए मैंग्रोव - Mangrove For The Future (MFF)
'भविष्य के लिए मैंग्रोव' (MFF) एक भागीदारी आधारित पहल है जो सतत विकास के लिए तटीय पारितंत्र संरक्षण में निवेश को प्रोत्साहित करती है। IUCN और UNDP की साझेदारी में यह उन देशों के मध्य सहयोग का एक मंच है जहां तटीय पारितंत्र और आजीविका संबंधी मुद्दे प्रमुख चुनौतियों में शामिल है।
MFF तटीय पारितंत्र के लिए अनुदान उपलब्ध करवाता है तथा प्रत्येक राष्ट्र ने स्वयं का MFF कार्यक्रम तैयार किया है। भारत में भी MFF कार्यक्रम चल रहे हैं जिसकी प्राथमिकताएं निम्नलिखित है -
- तटीय और समुद्री पारितंत्रों के प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय नीतियों में वैज्ञानिक ज्ञान आधार को उन्नत बनाना।
- तटीय समुदाय के लिए पर्यावरणीय रूप से धारणीय अवसरों को बढ़ावा देना।
- सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से क्षमता निर्माण करना।
- MFF की परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु पश्चिम बंगाल, गुजरात, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु को प्राथमिकता सूची में रखा गया है, जो मैंग्रोव क्षेत्र के विस्तार व संरक्षण के उद्देश्य परिचालित है।
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FAQs
1. मैंग्रोव वन का दूसरा नाम क्या है?
मैंग्रोव वनस्पतियों को कच्छ/सुंदरवन/वेलाचलि/दलदल/अनूप वनस्पति आदि नामों से भी जाना जाता हैं।2. मैंग्रोव वन का मतलब क्या होता है?
3. मैंग्रोव वन भारत में कहाँ-कहाँ पाए जाते हैं?
मैंग्रोव वन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र व गुजरात आदि राज्यों में पाए जाते हैं।4. मैंग्रोव वन की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
- कई मैंग्रोव प्रजातियों के उत्तक और जड़ें खारे जल को फ़िल्टर करने का काम करती हैं।
- मैंग्रोव वृक्षों में मोमपर्णी संरचना, माँसल पत्तियां, धँसे हुए रंध्र आदि पाए जाते हैं।
- मैंग्रोवों में जरायुजता का गुण पाया जाता है।
- मैंग्रोव में न्यूमेटोफोर्स पाए जाते है।