पारिस्थितिकी व पर्यावरण के इस लेख में हम बात करने वाले है एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय 'जैव विविधता' (Biodiversity or Biological Diversity In Hindi) के बारे में। इस लेख में जैव-विविधता के बारे हर पक्ष जैसे Jaiv Vividhata Kya Hai?, Jaiv Vividhata ke Prakar, जैव-विविधता Hotspot क्या है?, भारत में जैव-विविधता Hotspot स्थल, जैव-विविधता के लाभ, इसके क्षय के कारण और संरक्षण के उपाय आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है।
यह लेख सिविल सेवा प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन-3 (GS-III) के विषय पर्यावरण व पारिस्थितिकी के लिए महत्वपूर्ण है और इसमें जैव-विविधता से सम्बंधित लगभग सभी आवश्यक तथ्यों, अवधारणाओं और आंकड़ों को शामिल किया गया हैं।
Jaiv Vividhata Kya Hai? - What Is Biodiversity In Hindi
जैव-विविधता से तात्पर्य किसी स्थान पर दिए गए समय में जीवों में पाई जाने वाली विविधता से है।
दूसरे शब्दों में कहें तो जैव-विविधता जीवों में अनुवांशिक, प्रजाति तथा पारितंत्र के स्तर पर पाई जाने वाली भिन्नता और परिवर्तनशीलताओं का योग होती है।
जैविक-विविधता शब्द का प्रयोग ए. नोर्स एवं आई.ई. मैंक मैनिस द्वारा सर्वप्रथम वर्ष 1980 में किया गया। जैव-विविधता शब्द जो जैविक-विविधता का संक्षिप्त रूप है, वाल्टर जी. रोजेन द्वारा वर्ष 1985 में दिया गया।
जैव-विविधता के प्रकार - Types Of Biodiversity In Hindi
जैव-विविधता निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है -- आनुवंशिक या जननिक जैव-विविधता
- प्रजातीय जैव-विविधता
- समुदाय/पारिस्थितिक तंत्र जैव विविधता
1. आनुवंशिक या जननिक जैव-विविधता
किसी प्रजाति के सदस्यों में जीन स्तर पर पाई जाने वाली विविधता 'अनुवांशिकी या जननिक जैव-विविधता' कहलाती है। किसी भी प्रजाति की सदस्यों में आनुवंशिक जैव-विविधता जितनी अधिक होगी उस प्रजाति की उत्तरजीविता की संभावना भी उतनी ही अधिक हो जाती है।
2. प्रजातीय जैव-विविधता
इसमें किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की प्रजातियों की विविधता को शामिल किया जाता है। किसी क्षेत्र में जितनी अधिक प्रजातियां पाई जाती है वहां खाद्य श्रृंखला पर्याप्त लंबी हो जाती है तथा ऐसे क्षेत्र में प्रत्येक जीव के पोषण के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध रहते हैं। वास्तव में प्रजातीय विविधता ही जैव-विविधता का प्रतिनिधित्व करती है।
3. समुदाय/पारिस्थितिक तंत्र जैव विविधता
इसके अंतर्गत प्रजातियों के आवासों अर्थात पारिस्थितिक तंत्र की विविधता को शामिल किया जाता है।
जैव-विविधता का मापन - Measurement Of Biodiversity
जैव-विविधता के मापन से आशय प्रजाति की संख्या और उसकी समृद्धि के आकलन से है। जैव-विविधता का मापन निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है -
α-विविधता
अल्फ़ा विविधता (α) किसी एक निश्चित क्षेत्र के समुदाय या पारितंत्र की जैव-विविधता है। यह किसी एक समुदाय या पारितंत्र में प्रजातियों की कुल संख्या को बताती है।
β-विविधता
बीटा विविधता (β) जैव-विविधता का वह मापन है जिसके अंतर्गत अलग-अलग प्रजातियों के मध्य विविधता का मापन किया जाता है।
γ-विविधता
जैव विविधता प्रवणता - Gradient of Biodiversity
- विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर जैव-विविधता में कमी आती है।
- पर्वतीय क्षेत्र में ऊंचाई में वृद्धि होने के साथ जैव-विविधता में कमी आती है।
- अन्वेषण क्षेत्र (Investigation Area) बड़ा देने पर जैव-विविधता में वृद्धि होती है।
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उच्च जैव-विविधता के कारण
- सूर्यातप और वर्षण की उच्च मात्रा जो प्राथमिक उत्पादन को उच्च बनाती है।
- यहाँ मौसमी दशाएं लगभग एक जैसी बनी रहती है जिससे जीवों को अनुकूलन हेतु पर्याप्त समय मिलता है।
- पृथ्वी कई हिमयुगों से गुजरी है तथा वर्तमान जलवायुविक दशाएं 10000 वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई है। मध्य एवं उच्च अक्षांशों पर हिमयुगों का अधिक प्रभाव रहा है जबकि उष्ण कटिबंध में उच्च सूर्यातप के कारण हिमयुग उतना प्रभावी नहीं रहा है। यहां विभिन्न प्रजातियों के उद्भवन की दशाएँ अन्य अक्षांशों की तुलना में अधिक अनुकूल बनी रही है। यह भी एक कारण है कि यहां जैव-विविधता का स्तर उच्च बना रहा है।
विश्व में प्रजातियों की संख्या
सन 2011 के एक अध्ययन के अनुसार प्रजातियों की कुल संख्या 7.4 मिलियन से 10 मिलियन तक हो सकती है। इनमें से महासागरों में प्रजाति की कुल संख्या 2 मिलियन से 2.4 मिलियन तक हो सकती है। पृथ्वी और महासागर पर मौजूद 90% प्रजातियों को खोजना, वर्णित करना और सूचीबद्ध करना बाकी है। यद्यपि कई विद्वान इससे सहमत नहीं है तथा उनका मानना है कि पृथ्वी पर प्रजातियों की संख्या इससे कहीं अधिक है।
महा-विविधता वाले देश - Mega Biodiversity Countries In Hindi
महा-विविधता वाले देशों के अंतर्गत उन्हें शामिल किया जाता है जहां जैव-विविधता अनन्य रूप से उच्च है। यह अवधारणा 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme) के विश्व संरक्षण निगरानी केंद्र (World Conservation Monitoring Centre) द्वारा दी गई। महा-विविधता वाले देशों का चयन निम्नलिखित दो मापदंडों के आधार पर किया जाता है -
- देश में विश्व के पादपों की कम से कम 5000 स्थानिक प्रजातियां पाई जाती हो।
- देश की सीमा के भीतर सामुद्रिक पारितंत्र आवश्यक होना चाहिए।
इस आधार पर विश्व के महा-विविधता वाले 17 देश निम्नलिखित है-
विश्व के महा-विविधता वाले देश |
---|
1. ऑस्ट्रेलिया |
2. ब्राजील |
3. चीन |
4. कोलंबिया |
5. कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य |
6. इक्वाडोर |
7. भारत |
8. इंडोनेशिया |
9. मेडागास्कर |
10. मलेशिया |
11. मैक्सिको |
12. पापुआ न्यू गिनी |
13. पेरु |
14. फिलिपींस |
15. दक्षिण अफ्रीका |
16. संयुक्त राज्य अमेरिका |
17. वेनेजुएला |
जैव-विविधता तप्त स्थल क्या है? - Biodiversity Hotspots In Hindi
जैव विविधता तप्त स्थल की अवधारणा 1988 में ब्रिटिश विद्वान नॉर्मन मायर द्वारा दी गई। नॉर्मन मायर के अनुसार, "जैव-विविधता Hotspot ऐसे क्षेत्र होते है जहाँ पर जंतुओं, पौधों तथा सूक्ष्मजीवों की अनेक प्रजातियां पाई जाती है तथा अनेक स्थानिक प्रजातियों की बहुलता होती है"।
Conservation International के अनुसार किसी भी स्थान को निम्नलिखित मापदंडों की अधीन जैव-विविधता तप्त स्थल (Biodiversity Hotspots) में शामिल किया जाता है-
- उस क्षेत्र में संवहनीय पौधों की कम से कम 1500 स्थानिक प्रजातियां पाई जाती हो।
- इन स्थानिक प्रजातियों के 70% या इससे अधिक आवास नष्ट हो गए हो।
हॉटस्पॉट | अवस्थिति |
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1. उष्णकटिबंधीय एंडीज | दक्षिण अमेरिका |
2. टुम्ब्स-चोको-मैग्डालेना | दक्षिण अमेरिका |
3. सेराडो | दक्षिण अमेरिका |
4. अटलांटिक वन | दक्षिण अमेरिका |
5. चिली शीतकालीन वर्षा तथा वाल्डिवियन वन | दक्षिण अमेरिका |
6. मेसोअमेरिका | उत्तर एवं मध्य अमेरिका |
7. मैड्रियन पाइन-ओक वुडलैंड्स | उत्तर एवं मध्य अमेरिका |
8. कैरेबियन द्वीप समूह | उत्तर एवं मध्य अमेरिका |
9. कैलिफोर्निया वानस्पतिक (फ्लोरिस्टिक) प्रांत | उत्तर एवं मध्य अमेरिका |
10. पश्चिमी अफ्रीका के गिनी वन | अफ्रीका |
11. केप वानस्पतिक क्षेत्र | अफ्रीका |
12. रसीला कारू | अफ्रीका |
13. पूर्वी अफ्रीका के तटीय वन | अफ्रीका |
14. पूर्वी एफ्रोमोंटेन | अफ्रीका |
15. हॉर्न ऑफ अफ्रीका | अफ्रीका |
16. मापुतालैंड -पोंडोलैंड-अल्बानी | अफ्रीका |
17. मेडागास्कर तथा हिंद महासागर द्वीप समूह | अफ्रीका |
18. भूमध्यसागरीय बेसिन | यूरोप एवं मध्य एशिया |
19. काकेशस | यूरोप एवं मध्य एशिया |
20. ईरानो -अनातोलियन | यूरोप एवं मध्य एशिया |
21. मध्य एशिया के पर्वत | यूरोप एवं मध्य एशिया |
22. पश्चिमी घाट एवं श्रीलंका | दक्षिण एशिया |
23. हिमालय | दक्षिण एशिया |
24. दक्षिण पश्चिम चीन के पर्वत | पूर्वी एशिया |
25. इंडो-बर्मा | दक्षिण एशिया |
26. सुंडालैंड | दक्षिण पूर्व एशिया तथा एशिया-प्रशांत |
27. वालेसिया | दक्षिण पूर्व एशिया तथा एशिया-प्रशांत |
28. फिलीपींस | दक्षिण पूर्व एशिया तथा एशिया-प्रशांत |
29. जापान | पूर्वी एशिया |
30. दक्षिण-पश्चिम ऑस्ट्रेलिया | दक्षिण पूर्व एशिया तथा एशिया-प्रशांत |
31. पूर्वी मेलेनेशियन द्वीप | दक्षिण पूर्व एशिया तथा एशिया-प्रशांत |
32. न्यूजीलैंड | दक्षिण पूर्व एशिया तथा एशिया-प्रशांत |
33. न्यू कैलेडोनिया | दक्षिण पूर्व एशिया तथा एशिया-प्रशांत |
34. पोलिनेशिया-माइक्रोनेशिया | दक्षिण पूर्व एशिया तथा एशिया-प्रशांत |
35. पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के वन | दक्षिण पूर्व एशिया तथा एशिया-प्रशांत |
36. उत्तरी अमेरिकी तटीय मैदान | उत्तर एवं मध्य अमेरिका |
भारत के जैव-विविधता तप्त स्थल - Biodiversity Hotspots In India
भारत में निम्नलिखित 4 जैव-विविधता तप्त स्थल पाए जाते हैं -- पश्चिमी घाट जैव-विविधता तप्त स्थल
- हिमालयी जैव-विविधता तप्त स्थल
- इंडो बर्मा जैव-विविधता तप्त स्थल
- निकोबार जैव-विविधता तप्त स्थल
1. पश्चिमी घाट जैव-विविधता तप्त स्थल - Western Ghats Biodiversity Hotspot
पश्चिमी घाट जैव-विविधता तप्त स्थल पश्चिमी घाट-श्रीलंका तप्त स्थल का एक भाग है जो अरब सागर तट के समानांतर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में विस्तारित है। यहां 5600 देशज प्रजातियां, 2200 भारतीय स्थानिक प्रजातियां और 1200 क्षेत्र के लिए स्थानिक प्रजातियां है।
यहां उभयचर जंतुओं की बड़ी मात्रा पाई जाती है। यहां एशियाई हाथी सर्वाधिक संख्या में मिलता है। इसके अतिरिक्त बाघ, गौर, नीलगिरी ताहर, सिंह पूछ बंदर, मैकाक आदि मिलते हैं।
पादप में फसली पौधों के अतिरिक्त काली मिर्च, चंदन, इलायची आदि महत्वपूर्ण है।
2. हिमालयी जैव-विविधता तप्त स्थल - Himalaya Biodiversity Hotspot
यह जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक विस्तारित है, जिसे पूर्वी व पश्चिमी हिमालय में विभाजित किया जा सकता है। हिमालय क्षेत्र में उच्च जैव-विविधता का प्रमुख कारण कई प्राकृतिक क्षेत्रों का अभिसरित होना है। यहां हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग, हिमालय ताहर, नीली व्हेल, काला भालू तथा तराई क्षेत्र में बाघ और हाथी पाए जाते हैं।
यहां पादप प्रजातियों की लगभग 3200 प्रजातियां पाई जाती है। पूर्वी हिमालय, पश्चिमी हिमालय की तुलना में अधिक जैव-विविधता वाला क्षेत्र है।
3. इंडो-बर्मा जैव-विविधता तप्त स्थल - Indo-Burma Biodiversity Hotspot
भारत के उत्तर-पूर्व के वे क्षेत्र जो मुख्य हिमालय के बाहर है Indo-Burma Hotspot का हिस्सा है। यहां पौधों की 7000 स्थानिक प्रजातियां मिलती है यहां विभिन्न प्रकार के स्थानिक, उभयचर, स्तनधारी, सरीसृप और पक्षी मिलते हैं।
4. निकोबार जैव-विविधता तप्त स्थल - Nicobar Biodiversity Hotspot
निकोबार द्वीप समूह सुंडालैंड तप्त स्थल का भाग है। यह विश्व की सबसे पुराने द्वीप पारितंत्र को समाहित करता है। जहां स्थानिक प्रजाति में निकोबार सू, सनबीन स्नेक, लवण जल मगरमच्छ तथा विभिन्न समुद्री कछुए पाए जाते हैं।
Hope Spot क्या है?
Hope Spot का इस्तेमाल महासागरीय पारितंत्र के संदर्भ में किया जाता है। इसमें महासागरीय पारितंत्र की जैव-विविधता को शामिल करते हैं।
जैव विविधता से लाभ - Biodiversity Benefits In Hindi
जैव-विविधता से निम्नलिखित महत्वपूर्ण लाभ/सेवाएं प्राप्त होती है -- जल संरक्षण, फिल्ट्रेशन और सुरक्षा
- मृदा निर्माण और संरक्षण
- मौसम और जलवायु का परिमार्जन और नियंत्रण
- मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण का कार्य करना
- विभिन्न जैव भू-रासायनिक चक्र का अनुरक्षण
- पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता और अनुरक्षण
- आश्रय, भोजन और वस्त्र जैसी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति
- उद्योगों के लिए कच्चा माल
- इंधन और व्यापारिक उपयोग के लिए लकड़ियां
- औषधीय एवं दवाइयां
- पर्यटन संबंधी मूल्य
- नैतिक मूल्यों के संबंध में महत्व
- भावी पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संग्रहालय का कार्य
जैव-विविधता को खतरा - Threat To Biodiversity In Hindi
जैव-विविधता क्षति के अंतर्गत मुख्य रूप से जीवों की प्रजातियों के विलोपन को शामिल किया जाता है। जैव-विविधता की क्षति के प्राकृतिक व मानवजनित दोनों ही कारण होते हैं किंतु जब प्राकृतिक कारणों के साथ मानवीय कारण भी जुड़ जाते हैं तब जैव-विविधता क्षति अभूतपूर्व रूप में होती है। जीवों की प्रजातियों के विलोपन अथवा जैव-विविधता क्षति के निम्नलिखित कारण है-
प्राकृतिक कारण
- महाद्वीपीय विस्थापन और विखंडन
- जलवायु परिवर्तन
- ज्वालामुखी उद्गार
- उल्का, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह आदि का पृथ्वी से टकराना
- सूखा तथा अकाल
मानवजनित कारण
- आवास का ह्रास
- प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन
- विदेशी प्रजातियों का प्रवेश
- पर्यावरणीय प्रदूषण
- मानव द्वारा जनित ग्रीन हाउस गैसें
- गहन कृषि
- जननिक रूपांतरण
- निर्वनीकरण
- अधारणीय पर्यटन
- वनों में लगने वाली आग
- महामारी
जैव-विविधता संरक्षण की विधियाँ - Methods Of Conservation Of Biodiversity In Hindi
मानव जाति की अति सक्रियता से पहले प्रति 10 लाख प्रजातियों में से एक प्रजाति प्रति वर्ष लुप्त होती थी। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में भी यही दर कायम रही किंतु वर्तमान में प्रतिवर्ष सैकड़ों प्रजातियां विलुप्त हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार सन 2030 तक वर्तमान प्रजातियों का 20% और शताब्दी के अंत तक 50% विलुप्त हो जाएगा। प्रजातियों की विलुप्ति का यह वर्तमान चरण '6th सामूहिक विलोपन' कहा जाता है।
जैव-विविधता संरक्षण की मुख्यतः 2 विधियाँ प्रचलित है -- प्राकृतिक आवासों में संरक्षण अथवा स्व-स्थाने संरक्षण
- प्राकृतिक आवासों के बाहर संरक्षण अथवा बाह्य-स्थाने संरक्षण
1. प्राकृतिक आवासों में संरक्षण अथवा स्व-स्थाने संरक्षण
जब पौधों एवं जंतुओं की प्रजातियों का उनके मूल स्थान/आवास क्षेत्र में ही संरक्षण किया जाता है, तब यह स्व-स्थाने संरक्षण कहलाता है।
- अभ्यारण
- राष्ट्रीय पार्क
- जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र
- संरक्षण रिजर्व
- सामुदायिक रिजर्व
2. प्राकृतिक आवासों के बाहर संरक्षण अथवा बाह्य-स्थाने संरक्षण
इस विधि के अंतर्गत पौधों एवं जंतुओं को उनके प्राकृतिक एवं मूल आवासों से अलग अन्य स्थानों पर संरक्षित किया जाता है।
- चिड़ियाघर
- वृक्ष उद्यान
- वानस्पतिक उद्यान
- बीज बैंक
- जननद्रव्य
- क्रायो प्रिजर्वेशन
- विश्व जैव-विविधता दिवस (International Day for Biological Diversity) प्रतिवर्ष 22 मई को मनाया जाता है।
IUCN तथा Red Data Book/List क्या है?
1948 में विश्व के पहले वैश्विक पर्यावरणीय संगठन के रूप में स्थापित International Union for Conservation of Nature (IUCN) का मुख्यालय स्विजरलैंड के ग्लैंड में है। इसमें 185 देशों के 1300 सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के सदस्य तथा 15000 से अधिक स्वयंसेवी भी शामिल है। इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा में आधिकारिक पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है। इसका मुख्य मिशन जैव-विविधता को संरक्षण देना है, इसके लिए यह विभिन्न शोधों, रिपोर्टों और फील्ड परियोजनाओं के सहारे विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों को प्रेरित करता है।
IUCN संकटग्रस्त प्रजातियों की एक सूची जारी करता है जिसे Red Data Book/List कहा जाता है, जो निम्नलिखित 5 मापदंडों पर आधारित है-
- पतन की दर
- जनसंख्या आकार
- भौगोलिक वितरण का क्षेत्रफल
- जनसंख्या की मात्रा
- वितरण- विखंडन
उपरोक्त आधार पर 9 श्रेणियां बनाई गई है-
- विलुप्त (Extinct-Ex)
- वन में विलुप्त (Extinct in the Wild-EW)
- घोर संकटग्रस्त/गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered-CR)
- संकटग्रस्त (Endangered-EN)
- सुभेद्य (Vulnerable-VU)
- निकट संकट (Near Threatened-NT)
- संकटमुक्त (Least Concern-LC)
- आँकड़ों का अभाव (Data Deficient)
- अनाकलित (Not Evaluated)
1. विलुप्त (Extinct-Ex)
उन जीवों को विलुप्त प्रजातियों के अंतर्गत रखा जाता है जिसके किसी भी सदस्य को पिछले 50 वर्षों में न तो जंगली और न ही मानव प्रतिबंध आवासों में देखा गया है।
2. वन में विलुप्त (Extinct in the Wild-EW)
वन्य क्षेत्र में विलुप्त प्रजातियों के अंतर्गत वे प्रजातियां शामिल है जो वन क्षेत्रों में तो नहीं पाई जाती है किंतु मानव प्रतिबंधित क्षेत्रों में अभी भी उपस्थित है।
3. घोर संकटग्रस्त/गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered-CR)
जिन प्रजातियों के 80% सदस्य पिछले 10 वर्षों में या तीन पीढ़ियों का पूर्ण तरह सफाया हो गया हो उन्हें घोर संकटग्रस्त/गंभीर संकटग्रस्त प्रजातियों के अंतर्गत रखते हैं।
4. संकटग्रस्त (Endangered-EN)
जिस प्रजाति के पिछले 10 वर्षों में 70% सदस्यों या तीन पीढ़ियों की 70% सदस्यों का ह्रास हो गया हो उन्हें संकटग्रस्त प्रजाति कहते हैं।
5. सुभेद्य (Vulnerable-VU)
जब किसी प्रजाति के पिछले 10 वर्षों में या तीन पीढ़ियों के 50% सदस्यों का सफाया हो गया हो तब इसे सुभेद्य प्रजाति में रखा जाता है।
6. निकट संकट (Near Threatened-NT)
जिन प्रजातियों के निकट भविष्य में संकटग्रस्त हो जाने की संभावना हो, उन्हें
7. संकटमुक्त (Least Concern-LC)
जिस प्रजाति के सदस्यों की संख्या वन्य आवासों में बहुत अधिक पाई जाती है, उसे संकटमुक्त प्रजाति के अंतर्गत रखा जाता है।
8. आँकड़ों का अभाव (Data Deficient)
इसके अंतर्गत उन प्रजातियों को रखा जाता है जिनके बारे में आँकड़ों की कमी से उसकी संरक्षण की स्थिति और संकट का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
9. अनाकलित (Not Evaluated)
इसके अंतर्गत उन प्रजातियों को रखा जाता है जिनकी संरक्षित स्थिति का IUCN के संरक्षण मापदंड पर आकलन नहीं किया गया हैं।
Red Data Book और भारत
सन 2019 में अपडेट की गई रेड डाटा लिस्ट में भारत की कुल 7311 प्रजातियों को आकलित किया गया है, जिनमें से 136 प्रजातियां गंभीर संकटग्रस्त और 306 प्रजातियां संकटग्रस्त है जबकि 546 प्रजातियां सुभेद्यता की श्रेणी में रखी गई है।
भारत की प्रमुख गंभीर संकटग्रस्त प्रजातियां -
- सफेद चोंच वाला गिद्ध
- भारतीय गिद्ध/लंबी चोंच वाला गिद्ध
- पतली चोंच वाला बिल गिद्ध
- लाल सिर वाला गिद्ध
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड