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Jet Stream क्या हैं? इसके प्रकार, विशेषताएं और प्रभाव - UPSC | Jet Stream In Hindi

इस लेख में हम 'जेट स्ट्रीम' (Jet Stream In Hindi) के बारे में चर्चा करेंगे। हम जानेंगे की Jet Stream क्या हैं? (Jet Stream In Hindi) जेट स्ट्रीम के प्रकार, विशेषताएं और प्रभाव। 

Jet Stream In Hindi

Table Of Content:


जेट स्ट्रीम  क्या हैं? - Jet Stream In Hindi 


  • जेट स्ट्रीम का संचरण दोनों गोलार्धों में 20° अक्षांश से ध्रुवों के मध्य 7 km - 14 km की ऊंचाई के मध्य होता है।

  • ये पश्चिम से पूर्व प्रवाहित होने वाली विसर्पाकार पवनें है। 

  • जेट स्ट्रीम के उत्पन्न होने का संबंध भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जनित ताप प्रवणता, ध्रुवों के धरातलीय भाग पर उच्च वायुदाब एवं ऊपरी क्षोभमंडल में निम्न वायुदाब के कारण जनित परिध्रुवीय भँवर (Circumpolar Whirl) से हैं। 

जेट स्ट्रीम की खोज

जेट स्ट्रीम की खोज द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई जब हवाओं की दिशा के विपरीत उड़ान भरने वाले जेट विमानों को पवन अवरोध का सामना  करना पड़ा। इसी आधार पर पश्चिम से पूर्व प्रवाहित होने वाली इन विसर्पाकार पवनों को जेट स्ट्रीम कहा गया। 


जेट स्ट्रीम की विशेषताएं 

  • ये धाराएं कई 100 किलोमीटर लंबी, चौड़ी और गहरी होती है। 
  • यह क्षोभसीमा के समीप चलती है। 
  • शीतकाल में इनका वेग 200-400 मील/घंटा और गर्मियों में 100-200 मील/घंटा होता है। 
  • यह सामान्यतः दोनों गोलार्धों में 30 डिग्री अक्षांश से लेकर ध्रुवों तक विकसित होती है। 
  • इनकी उत्पत्ति विषुवत रेखा और ध्रुवों के मध्य तापांतर के कारण होती है। 
  • सामान्यतः ये पवनें पश्चिम से पूर्व चलती है किंतु अस्थायी जेट स्ट्रीम पूर्व-पश्चिम भी प्रभावित हो सकती है। 
  • इनमें क्षैतिज और लंबवत वायु कर्तन भी प्राप्त होता है। 
  • ऋतुओं के अनुसार इनकी ऊंचाई और अक्षांशीय स्थिति में परिवर्तन होता है। 

जेट स्ट्रीम के प्रकार - Types Of Jet Stream In Hindi

जेट स्ट्रीम 5 प्रकार की होती है -
  1. उपोष्ण पछुवा जेट
  2. ध्रुवीय वाताग्री जेट 
  3. ध्रुवीय रात्रि जेट
  4. उष्ण पुरवा जेट 
  5. स्थानीय जेट स्ट्रीम

Jet Stream In Hindi

1. उपोष्ण पछुवा जेट

यह जेट दोनों गोलार्द्धों में 20° व 40° अक्षांश के मध्य निर्मित होती है। यदि विषुवतीय क्षेत्र से आरोहित वायु क्षोभसीमा पर पहुंचकर ध्रुवों की ओर चलती है तब पृथ्वी की घूर्णन के कारण यह वायु 30°-35° अक्षांशों पर उतरने लगती है। इसमें से कुछ वायु ऊपरी क्षोभमंडल में पृथ्वी के घूर्णन के कारण पश्चिम से पूर्व प्रवाहित होने लगती है यही उपोष्ण पछुवा जेट कहलाती है। 


  • उपोष्ण पछुवा जेट हैडली व फेरल कोशिका के अभिसरण क्षेत्र से संबंधित होती है। 

2. ध्रुवीय वाताग्री जेट 

यह जेट धारा 40°-70° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्धों में वाताग्र के सहारे निर्मित होती है। अतः इसे वाताग्री जेट कहते हैं। 


यह अधिक विसर्पाकार होती है। इसकी खोज 'रॉस्बी' महोदय ने की थी अतः इसे 'रॉस्बी तरंग' भी कहते हैं। इसका संबंध फेरल व ध्रुवीय कोशिका से होता है। 


3. ध्रुवीय रात्रि जेट

यह जेट दोनों ध्रुवों पर शीतकाल में 6 महीने की रात्रि होती है तब निर्मित होती है। 

इस स्थिति में अत्यधिक निम्न तापमान के कारण ऊपरी क्षोभमंडल की वायु ध्रुवीय सतह पर अवतरित होती हैं। ऊपरी क्षोभमंडल में निर्मित निम्न वायुदाब को भरने के लिए जो पवनें चलती है वे पृथ्वी के घूर्णन के कारण भंबरदार हो जाती है, इसे ही ध्रुवीय रात्रि जेट या 'पोलर वोर्टेक्स' कहते हैं। 


4. उष्ण पुरवा जेट 

यह एक अस्थायी जेट है जिसका संबंध हिंद महासागर क्षेत्र से है तथा तिब्बत के पठार के उष्मन से उत्पन्न होती है। यह ग्रीष्मकाल में उत्पन्न होती है तथा पूर्व से पश्चिम प्रभावित होती है। 


ग्रीष्म काल में तिब्बत का पठार अत्यधिक गर्म हो जाता है तथा इससे गर्म वायु आरोहित होती हैं जो क्षोभसीमा तक पहुंचकर ठंडी होती है तथा प्रतिचक्रवाती दशाएं निर्मित करती है। ऊपरी क्षोभमंडल से पवनें दक्षिणावर्त दिशा में प्रवाहित होती है, इसे 'उष्णकटिबंधीय पूर्वा जेट' कहते हैं। यह उत्तरी गोलार्ध में 8°N-20°N तक प्रवाहित होती है। भारत के दक्षिण-पश्चिमी मानसून पर इसका अत्यधिक प्रभाव पड़ता हैं। 


5. स्थानीय जेट स्ट्रीम 

वे पवनें जो किसी क्षेत्र विशेष में स्थानीय स्तर पर ताप और दाब की विशिष्ट दशाओं में उत्पन्न होती हैं तथा सीमित क्षेत्र को प्रभावित करती हैं, स्थानीय पवनें/स्थानीय जेट स्ट्रीम कहलाती हैं। Read More »


Jet Stream Trough and Ridge



जेट स्ट्रीम का गर्त (Trough) अर्थात नीचे धँसा भाग जहाँ से गुजरता हैं वहां सतह पर प्रतिचक्रवाती दशाएं निर्मित होती हैं तथा जहाँ से शृंग (Ridge) अर्थात ऊपर उठा भाग गुजरता हैं वहां चक्रवाती दशाएं निर्मित होती हैं। 

   

जेट स्ट्रीम के प्रभाव 

जेट स्ट्रीम के प्रभाव निम्नलिखित हैं -
  • जेट स्ट्रीम स्थानीय तथा प्रादेशिक मौसम पर अत्यधिक प्रभाव डालती हैं। 
  • जेट स्ट्रीम मध्य अक्षांशीय या शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की सक्रियता को बढ़ा देती है। 
  • जेट स्ट्रीम धरातलीय चक्रवातों एवं प्रतिचक्रवातों के स्वरूप में परिवर्तन लाते हैं, जिसके कारण स्थानीय मौसम में परिवर्तन होता रहता हैं। 
  • उष्णकटिबंधीय पूर्वा जेट, भारत के दक्षिण-पश्चिमी मानसून को अत्यधिक प्रभावित करती हैं।
  • हवाई जहाजों द्वारा जेट स्ट्रीम के भीतर उड़ान भरने से उड़ान का समय कम हो जाता हैं, जिससे ईंधन की खपत में कमी आती हैं।    

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