अभी तक के लेखों में हमने आधुनिक भारत एक कुछ महत्वपूर्ण विषयों रेग्युलेटिंग एक्ट, पिट्स इंडिया एक्ट, चार्टर अधिनियमों, तथा 1858, 1861 व 1892 के अधिनियमों के बारे में जाना है। आज के इस लेख में हम बात करने वाले है 1909 (1909 Act In Hindi), 1919 (1919 Act In Hindi) और 1935 (1935 Act In Hindi) के अधिनियमों के बारे में।
1909 का भारत परिषद अधिनियम - 1909 Act In Hindi
इस अधिनियम को 'मार्ले मिंटो सुधार' के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उस समय लॉर्ड मार्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव थे और लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय थे।इस अधिनियम की विशेषताएं निम्नलिखित थी -
- इस अधिनियम द्वारा केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों के आकार में वृद्धि की गई।
- इसने केंद्रीय परिषद में सरकारी बहुमत को बनाए रखा लेकिन प्रांतीय परिषदों में गैर-सरकारी सदस्यों की बहुमत की अनुमति थी।
- केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषद को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला।
- पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक प्रतिनिधित्व का उपबंध किया गया। इसके अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की और लॉर्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया।
- इस अधिनियम के तहत प्रेसिडेंसी कॉर्पोरेशन, चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया।
1919 का भारत शासन अधिनियम - 1919 Act In Hindi
इस कानून को 'मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार' भी कहा जाता है। (मोंटेग्यू भारत के राज्य सचिव थे जबकि चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे।)इस अधिनियम की विशेषताएं निम्नलिखित थी -
- केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को अपनी सूचियों के विषयों पर विधान बनाने का अधिकार प्रदान किया गया, लेकिन सरकार का ढांचा केंद्रीय और एकात्मक ही बना रहा।
- केंद्रीय व प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान कर एवं पृथक कर राज्यों पर केंद्र का नियंत्रण कम किया गया
- प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों हस्तांतरित और आरक्षित में विभक्त कर दिया।
- हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था। इसमें वह उन मंत्रियों की सहायता लेता था जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी थे।
- आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था।
- शासन की इस दोहरी व्यवस्था को 'द्वैध शासन व्यवस्था' कहा गया। यह व्यवस्था काफी हद तक असफल रही।
- इस अधिनियम ने पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारंभ की।
- इस कानून ने संपत्ति, कर व शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया।
- इसने सांप्रदायिक आधार पर सिखों, भारतीय ईसाईयों, आंग्ल-भारतीयों और यूरोपीयों के लिए भी पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया।
- भारतीय विधान परिषद के स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा और लोकसभा का गठन किया गया।
- दोनों सदनों के बहुसंख्यक सदस्यों को प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से निर्वाचित किया जाता था।
- लोक सेवा आयोग का गठन किया गया और 1926 में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
- पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया।
- इसके अंतर्गत वैधानिक आयोग का गठन किया गया, जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।
साइमन कमीशन - Simon Commission In Hindi
ब्रिटिश सरकार ने नवंबर 1927 में (यानी निर्धारित समय से 2 वर्ष पूर्व ही) नए संविधान में भारत की स्थिति का पता लगाने के लिए सर जॉन साइमन के नेतृत्व में 7 सदस्यों का एक वैधानिक आयोग गठित किया। आयोग के सभी सदस्य ब्रिटिश थे इसलिए भारत में सभी दलों द्वारा इसका बहिष्कार किया गया।
आयोग ने 1930 में अपनी रिपोर्ट पेश की तथा द्वैध शासन प्रणाली, राज्यों में सरकार का विस्तार, ब्रिटिश भारत के संघ की स्थापना एवं सांप्रदायिक निर्वाचन व्यवस्था को जारी रखने आदि की सिफारिशें की।
आयोग के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश भारत सरकार और भारतीय रियासतों के प्रतिनिधियों के साथ तीन गोलमेज सम्मेलन किए। इन सम्मेलनों में हुई चर्चा के आधार पर 'संवैधानिक सुधारों पर एक श्वेत पत्र' तैयार किया गया जिसे विचार के लिए ब्रिटिश संसद की संयुक्त प्रवर समिति के समक्ष रखा गया। इस समिति की सिफारिशों को (कुछ संशोधनों के साथ) भारत परिषद अधिनियम 1935 में शामिल कर दिया गया।
1935 का भारत शासन अधिनियम - 1935 Act In Hindi
यह अधिनियम भारत में पूर्ण उत्तरदायी सरकार की स्थापना में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इस विस्तृत दस्तावेज में 321 धाराएं और 10 अनुसूचियां थी।इस अधिनियम की विशेषताएं निम्नलिखित थी -
- इसने अखिल भारतीय संघ की स्थापना की, जिसमें राज्य और रियासतों को एक इकाई की तरह माना गया।
- इस अधिनियम ने केंद्र और इकाइयों के बीच तीन सूचियों संघ सूची (59 विषय), राज्य सूची (54 विषय) और समवर्ती सूची (36 विषय) के आधार पर शक्तियों का विभाजन कर दिया। अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को दी गई।
- प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था समाप्त कर प्रांतीय स्वायत्तता का शुभारंभ किया गया।
- राज्यों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की गई यानी गवर्नर को राज्य विधान परिषद के लिए उत्तरदायी मंत्रियों की सलाह पर काम करना आवश्यक था। (यह व्यवस्था 1937 में शुरू हुई और 1939 में इसे समाप्त कर दिया गया।)
- केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत हुई। इसके परिणामस्वरूप संघीय विषयों को स्थानांतरित और आरक्षित विषयों में विभक्त करना पड़ा। हालांकि यह प्रावधान कभी लागू नहीं हो सका।
- इसने 11 राज्यों में से 6 में द्विसदनीय व्यवस्था प्रारंभ की। बंगाल, बंबई, बिहार, मद्रास, संयुक्त प्रांत और असम में द्विसदनीय विधान परिषद और विधानसभा बनाई गई, हालांकि इन पर कई प्रकार के प्रतिबंध थे।
- इसने मताधिकार का विस्तार किया और लगभग 10% जनसंख्या को मत का अधिकार मिल गया।
- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।
- संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई।
- इसके तहत 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना की गई
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