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1861 तथा 1892 का भारत परिषद अधिनियम | 1861 Act In Hindi

1861 Act In Hindi

1861 का भारत परिषद अधिनियम - 1861 Act In Hindi

इस अधिनियम में निम्नलिखित प्रावधान थे -

  • इस अधिनियम के द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई। इस प्रकार वायसराय  कुछ भारतीयों की विस्तारित परिषद में गैर-सरकारी सदस्यों के रूप में नामांकित कर सकता था। 


  •  इस अधिनियम ने मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसियों को विधायी शक्तियां पुनः देकर विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की।    

  • 1862, 1866 और 1897 में क्रमशः बंगाल, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त और पंजाब में विधान परिषदों का गठन किया गया। 

  • गवर्नर जनरल को पहली बार आपातकाल में बिना काउंसिल के संस्तुति के अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी। ऐसे अध्यादेश की अवधि मात्र 6 महीने होती थी। 

  • इसने वायसराय को परिषद में कार्य संचालन के लिए अधिक नियम और आदेश बनाने की शक्तियां प्रदान की गयी। इसने लॉर्ड कैनिंग द्वारा 1859 में प्रारंभ की गई 'पोर्टफोलियों प्रणाली' को भी मान्यता दी गई। इसके अंतर्गत वायसराय की परिषद का एक सदस्य एक या अधिक सरकारी विभागों का प्रभारी बनाया जा सकता था तथा उसे इस विभाग में काउंसिल की ओर से अंतिम आदेश पारित करने का अधिकार था। 

  • कलकत्ता की विधान परिषद को समग्र भारत के लिए कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गई। 

  • राज्य सचिव को सपरिषद गवर्नर जनरल द्वारा पारित किसी भी अधिनियम को भंग करने हेतु सशक्त किया गया। 


1892 का भारत परिषद अधिनियम - 1892 Act In Hindi

 इस अधिनियम की विशेषताएँ निम्नलिखित थी -

  • इसके माध्यम से केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में गैर-सरकारी सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गई। 

  • इसमें केंद्रीय विधान परिषद और बंगाल चैंबर ऑफ कॉमर्स में गैर-सरकारी सदस्यों के नामांकन के लिए वायसराय की शक्तियों का प्रावधान था। 

  • इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई। 


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