चार्टर एक्ट क्या है? - What Is Charter Act In Hindi
चार्टर को हिंदी में राजलेख/आदेशपत्र कहा जाता है। ब्रिटिश संसद, भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर विभिन्न आदेश पत्र जारी करती थी, इन आदेश पत्रों को ही 'चार्टर' कहा जाता है।
1793 चार्टर एक्ट - 1793 Charter Act In Hindi
- इस एक्ट के द्वारा कंपनी के व्यापारिक अधिकारों को अगले 20 वर्षों के लिए और आगे बढ़ा दिया गया।
- कंपनी को भारतीय राजस्व से अपने भाग, लाभांश, वेतन आदि जैसे सभी आवश्यक खर्चों के बाद ब्रिटिश सरकार को वार्षिक 5 लाख पौंड का भुगतान करना था।
- गवर्नर जनरल, गवर्नरों और कमांडर-इन-चीफ की नियुक्ति के लिए राजकीय अनुमति लेना अनिवार्य था।
- कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों को अनुमति के बिना भारत छोड़कर जाने से बाधित कर दिया गया और यदि किसी अधिकारी द्वारा ऐसा किया गया तो उसे उसका त्यागपत्र समझने की व्यवस्था की गई।
- भारत में व्यापार करने के लिए कंपनी को व्यक्तिगत लाइसेंस देने के साथ ही कंपनी के कर्मचारियों को भी लाइसेंस देने हेतु सशक्त किया गया।
- राजस्व के प्रशासन को न्यायपालिका के कार्यों से पृथक कर दिया गया।
- ब्रिटिश सरकार के सदस्यों को भारतीय राजस्व से भुगतान किया जाना था, यह नियम 1919 तक जारी रहा।
1813 का चार्टर एक्ट - 1813 Charter Act In Hindi
1813 में कंपनी के चार्टर की अवधि समाप्त होने वाली थी इसलिए इंग्लैंड में कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त करने की मांग की जाने लगी। कंपनी के भारतीय साम्राज्य में अत्यधिक वृद्धि हो जाने से भी उसके लिए दोनों मोर्चों, व्यापारिक तथा राजनीतिक को संभालना मुश्किल हो रहा था। इसके साथ ही अहस्तक्षेप के सिद्धांत तथा नेपोलियन द्वारा लागू की गई महाद्वीपीय व्यवस्था से अंग्रेजों के लिए यूरोपीय व्यापार के मार्ग लगभग बंद हो गए थे। इस कारण सभी चाहते थे कि कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया जाए।
इन परिस्थितियों में 1813 का चार्टर एक्ट पारित हुआ जिसमें निम्नलिखित व्यवस्थाएं की गई -
- भारतीय व्यापार पर कंपनी का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया यद्यपि चीन से चाय के व्यापार पर उसका एकाधिकार बना रहा।
- कंपनी के भागीदारों को भारतीय राजस्व से 10.5 प्रतिशत लाभ दिए जाने की व्यवस्था की गई।
- कंपनी को और अगले 20 वर्षों के लिए भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर नियंत्रण का अधिकार दिया गया। किंतु स्पष्ट कर दिया गया कि इससे इन प्रदेशों में क्राउन के प्रमुख पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। (उल्लेखनीय है कि भारत में अंग्रेजी राज्य की संवैधानिक स्थिति को पहली बार स्पष्ट किया गया था)
- सभी अंग्रेज व्यापारियों को भारत में व्यापार करने की छूट दे दी गई।
- Board Of Control की शक्ति को परिभाषित किया गया तथा उसका विस्तार भी कर दिया गया।
- ईसाई धर्म प्रचारकों को भारत में धर्म-प्रचार करने की अनुमति दी गई।
- ब्रिटिश व्यापारियों एवं इंजीनियरों को भारत आने तथा यहां बसने की अनुमति प्रदान कर दी गई, लेकिन इसके लिए उन्हें संचालक मंडल या नियंत्रण बोर्ड से लाइसेंस लेना आवश्यक था।
- कंपनी की आय से भारतीयों की शिक्षा के लिए प्रतिवर्ष 1 लाख रूपये व्यय करने की व्यवस्था की गई।
1833 का चार्टर एक्ट - 1833 Charter Act In Hindi
- चाय के व्यापार तथा चीन के साथ व्यापार करने संबंधी कंपनी के अधिकार को समाप्त कर दिया गया।
- भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर कंपनी के अधिकारों को 20 वर्षों के लिए और बढ़ा दिया गया किंतु यह निश्चित किया गया कि भारतीय प्रदेशों का प्रशासन अब ब्रिटिश सम्राट के नाम से किया जाएगा।
- अंग्रेजों को बिना अनुमति पत्र के ही भारत आने तथा रहने की आज्ञा दे दी गई। वे भारत में भूमि भी खरीद सकते थे।
- भारत में सरकार का वित्तीय, विधायी तथा प्रशासनिक रूप से केंद्रीयकरण करने का प्रयास किया गया।
- बंगाल का गवर्नर जनरल, भारत का गवर्नर जनरल हो गया
- गवर्नर जनरल को कंपनी के नागरिक तथा फौजी कार्यों के नियंत्रण, व्यवस्था एवं निर्देशन का अधिकार दिया गया।
- बंगाल, मद्रास, मुंबई तथा अधिकृत प्रदेशों को भी गवर्नर जनरल के नियंत्रण में कर दिया गया।
- सभी कर गवर्नर जनरल की आज्ञा से ही लगाए जाने थे और उसे ही इसके व्यय का अधिकार दिया गया।
- सपरिषद गवर्नर जनरल को ही भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया तथा मद्रास और बॉम्बे की कानून बनाने की शक्ति समाप्त कर दी गई।
- गवर्नर जनरल की परिषद में विधि विशेषज्ञ के रूप में चौथे सदस्य की नियुक्ति की गई। (मैकाले पहला विधि-विशेषज्ञ था।)
- भारतीय कानून को संचालित, संहिताबद्ध तथा सुधारने की भावना से एक विधि आयोग की नियुक्ति की गई।
- इस एक्ट द्वारा स्पष्ट कर दिया गया कि कंपनी के प्रदेशों में रहने वाले किसी भारतीय को केवल धर्म, रंग, वंश या जन्म स्थान इत्यादि के आधार पर कंपनी के किसी पद से वंचित नहीं किया जाएगा। (लेकिन यह प्रावधान वास्तव में कागजों पर ही सिमट कर रह गया।)
- भारत में दास प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया तथा गवर्नर जनरल को भारत से दास प्रथा को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाने हेतु निर्देश दिए गए। (1843 में दास प्रथा का उन्मूलन किया गया।)
1853 चार्टर एक्ट - 1853 Charter Act In Hindi
- कंपनी को भारतीय प्रदेशों को 'जब तक संसद न चाहे' तब तक के लिए अपने अधीन रखने की अनुमति दे दी गई।
- डायरेक्टरों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई और उनमें से छह सम्राट द्वारा मनोनीत किए जाने थे।
- नियुक्तियों के मामले में डायरेक्टरों का संरक्षण समाप्त कर दिया गया।
- विधि-विशेषज्ञ को गवर्नर जनरल की परिषद का पूर्ण सदस्य बना दिया गया।
- गवर्नर जनरल की परिषद में कानून निर्माण में सहायता देने के लिए 6 नए सदस्यों की नियुक्ति की गई। परंतु कार्यकारी परिषद को विधान परिषद की विधेयक को वीटो करने का अधिकार था।
- बंगाल के लिए पृथक लेफ्टिनेंट-गवर्नर की नियुक्ति की गई।
भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण लेख:
- 1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट व 1781 का एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट
- 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट
- 1858 का भारत शासन अधिनियम
- 1861 तथा 1892 का भारत परिषद अधिनियम
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