Pawan Kise Kahate Hain? Wind In Hindi
किन्हीं दो स्थानों के मध्य वायुदाब के अंतर को 'वायुदाब प्रवणता' कहा जाता है वायुदाब में अंतर के कारण एक बल की उत्पत्ति होती है जिसे 'वायु दाब प्रवणता बल' (Air Pressure Gradient Force) बल कहते हैं, जो उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर 'समदाब रेखाओं' के लंबवत आरोपित होता है।
- वायु दाब प्रवणता के अधीन वायु की क्षैतिज गति 'पवन' (Wind) कहलाती है। वायुदाब प्रवणता बल ही पवन की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी होता है।
- वायु की ऊर्ध्वाधर गति गुरुत्व बल के कारण संतुलित हो जाती है जिससे वह महसूस नहीं होती।
पवन पर लगने वाले बल
क्षोभमंडल में चलने वाली पवनों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है -- वे पवनें जो सागर तट से लेकर 3 किलोमीटर की ऊंचाई तक प्रवाहित होती है उन्हें "धरातलीय पवनें" कहा जाता है।
- वे पवनें जो 3 किलोमीटर से अधिक ऊंचाई पर प्रवाहित होती है उन्हें "उच्च भूमंडलीय पवनें" कहा जाता है।
धरातलीय पवनें
सागर तल से 3 किलोमीटर की ऊंचाई तक की क्षोभमंडलीय परत "घर्षण परत" कहलाती है। इस परत में चलने वाली पवनें निम्नलिखित बलों का अनुभव करती है -
- वायुदाब प्रवणता बल
- घर्षण बल
- कोरिऑलिस बल
- अपकेंद्रीय व अभिकेंद्रीय बल
1. वायुदाब प्रवणता बल
यह बल पवनों की उत्पत्ति व वेग में सहायक होता है। वायुदाब प्रवणता बल जितना अधिक होता है, पवनों का वेग उतना ही अधिक होता है।
2. घर्षण बल
घर्षण बल पवन प्रवाह की दिशा के विपरीत लगता है। यह बल पवन की गति को कम कर देता है।
3. कोरिऑलिस बल - Coriolis Force In Hindi
वायु दाब प्रवणता बल समदाब रेखाओं के लंबवत लगता है अतः पवनों को सदैव समदाब रेखा के लंबवत प्रवाहित होना चाहिए किंतु व्यवहार में ऐसा नहीं होता है। पवनें अपनी मूल दिशा से विक्षेपित हो जाती है।
इस विक्षेपिक बल की खोज कोरिऑलिस महोदय द्वारा की गई अतः इसे "कोरिऑलिस बल" कहते है।
- कोरिऑलिस महोदय के अनुसार "विभेदी घूर्णन गति वाली पृथ्वी की सतह पर स्वतंत्रतापूर्वक गति करती हुई कोई भी वस्तु उत्तरी गोलार्ध में अपनी मूल दिशा के दाहिने और दक्षिणी गोलार्ध में मूल दिशा के बाएं विक्षेपित हो जाती है"।
इसी प्रकार, पृथ्वी की सतह पर चलने वाली पवनें उत्तरी गोलार्ध में अपनी मूल दिशा के दाहिने तथा दक्षिणी गोलार्ध में अपनी मूल दिशा के बाएं प्रवाहित होती है।
कोरिओलिस बल की विशेषताएं - Coriolis Force In Hindi
- Coriolis Force का मान विषुवत रेखा पर शून्य होता है तथा ध्रुवों की ओर चलने पर इसके मान में वृद्धि होती है तथा यह ध्रुवों पर अधिकतम होता है।
- यह पृथ्वी के विभेदी घूर्णन के कारण उत्पन्न होता है। यदि पृथ्वी घूर्णन करना बंद कर दें या सर्वत्र घूर्णन गति समान हो जाए तब यह बल विलुप्त हो जाएगा। वास्तव में यह कोई बल ना होकर पृथ्वी के विभेदी घूर्णन से उत्पन्न प्रभाव है। अतः इसे 'कोरिओलिस प्रभाव' भी कहते है।
- यह पवन की गति में परिवर्तन नहीं कर सकता किंतु यदि पवन की गति अधिक है तब यह बल अधिक सक्रिय हो जाता है अर्थात तीव्र वेग वाली पवन पर कोरिओलिस बल कम वेग वाली पवन की तुलना में अधिक प्रभावी होगा तथा अधिक वेग वाली पवन अधिक विक्षेपित होगी।
फेरल का नियम - Feral Ka Niyam Kya Hai
फेरल महोदय ने कोरिऑलिस बल के संदर्भ में एक सामान्य नियम का प्रतिपादन किया उनके अनुसार "यदि जिस दिशा से पवन आ रही हो उधर हमारी पीठ हो और जिस दिशा में पवन जा रही हो उधर हमारा मुख हो तो पवन उत्तरी गोलार्ध में अपनी मूल दिशा के दाहिने और दक्षिणी गोलार्ध में मूल दिशा कीबायें विक्षेपित होगी।
उच्च क्षोभमंडलीय पवनें/भू-विक्षेपी पवनें
जो पवनें सागर तल से 3 किलोमीटर या इससे अधिक ऊंचाई पर प्रवाहित होती हैवे घर्षण बल के प्रभाव से मुक्त होती है। इस ऊंचाई पर जहां वायुदाब प्रवणता बल तथा कोरिओलिस बल एक-दूसरे को संतुलित कर देते हैं वहां पवनें समदाब रेखाओं के समानांतर प्रवाहित होती हैं इन्हें "भू-विक्षेपी पवनें" कहते है।
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