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पवनों के प्रकार, ITCZ, Upwelling, Downwelling और वायु परिसंचरण तंत्र | Pawan Kise Kahate Hain

अभी तक हमने वायुमंडल के कई टॉपिक्स जैसे की वायुमंडलीय दाब, Pawan Kise Kahate Hain, पवन पर लगने वाले बल, वायुदाब पेटियां आदि के बारे में विस्तार से जाना है। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए आज के इस लेख में हम पवनों के प्रकार, ITCZ, Upwelling, Downwelling, वाताग्र और वायु परिसंचरण तंत्र आदि के बारे में जानेंगे। 

Pawan Kise Kahate Hain



Table Of Content


पवन क्या है? - Pawan Kise Kahate Hain

वायु की क्षैतिज गति को पवन कहा जाता है। Read More


पवनों के प्रकार - Types Of Wind In Hindi

1. प्राथमिक पवनें 

  • व्यापारिक पवनें (Trade Winds)
  • पछुआ पवनें (Westerlies Winds)
  • ध्रुवीयपूर्वा पवनें (Polar Easterlies)


2. द्वितीयक पवनें 

  • मानसूनी पवनें  
  • स्थल समीर व समुद्र समीर 
  • पर्वत समीर व घाटी समीर  


3. तृतीयक पवनें 

  • स्थानीय पवनें 

1. प्राथमिक पवनें 

    ये पवनें सम्पूर्ण पृथ्वी पर विशिष्ट अक्षांशों के सहारे वर्ष भर प्रवाहित होती रहती है, इन्हें "ग्रहीय पवनें" (Planetary Winds), "सनातनी पवनें" (Permanent Winds) भी कहा जाता है। 


    Types Of Wind In Hindi
    Types Of Wind


    ये निम्नलिखित प्रकार की होती हैं -  

    A. व्यापारिक पवनें - Trade Winds In Hindi 

    ये पवनें दोनों गोलार्द्धों में उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंध (30° - 35° N-S) से विषुवतीय निम्न वायुदाब कटिबंध की ओर प्रवाहित होती है। 

    • इन पवनों का उपयोग यूरोप के व्यापारी, व्यापारिक जहाजों के आवागमन के लिए करते थे अतः इनको "व्यापारिक पवनें" कहते हैं। 


    • ये पवनें एक निर्दिष्ट पथ पर ही एक ही दिशा में निरंतर प्रवाहित होती है


    • उत्तरी गोलार्ध में ये उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर पश्चिम प्रवाहित होती है, अतः इन्हें "पूर्वा पवनें" भी कहा जाता है। (क्योंकि दोनों ओर 'पूर्व' common है)


    • ये पवनें 5° N - 5° S पर अभिसरित होकर आरोहित (ऊपर की ओर उठना) होती है तथा संवहनीय वर्षा करती है। 

    • महाद्वीपीय भाग में अनुतटीय व्यापारिक पवनों से पूर्वी भाग में वर्षा होती है तथा वर्षा की अधिक मात्रा पश्चिम की ओर कम होती जाती है। पश्चिमी भाग अपतटीय व्यापारिक पवनों के सहारे लगभग 25 सेंटीमीटर औसत वार्षिक वर्षा प्राप्त करता है, अतः यहां मरुस्थल निर्मित होते है। 
    {इस Concept से हमें एक सवाल की, अधिकांश मरुस्थल महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में ही क्यों पाए जाते है ? का जवाब मिलता है। उदहारण के लिए सहारा मरुस्थल, अटाकामा, मोजावे मरुस्थल आदि}


    उत्स्रवण और निःस्रवण क्या है? - Upwelling and Downwelling in Hindi 

    • जब व्यापारिक पवनें महासागरीय सतह से गुजरती है तब महासागरीय सतह के पूर्वी भाग के गर्म जल को प्रवाहित कर महासागरों के पश्चिमी भाग में एकत्रित कर देती है। इससे पूर्वी भाग में "उत्स्रवण" (Upwelling) की क्रिया में ठंडा जल प्राप्त होता है। 


    • वहीं महासागर के पश्चिमी भाग में गर्म जल एकत्रित होता है यह निःस्रवण (Downwelling) क्रिया से सम्बंधित होता है। 

    अगर और आसान शब्दों में कहें तो जब उत्तर-पूर्व से प्रवाहित व्यापारिक पवनों द्वारा महासागरीय सतह का गर्म जल पूर्वी भाग से विस्थापित कर पश्चिमी भाग में एकत्रित कर दिया जाता है तो पूर्वी भाग से गर्म जल के विस्थापित होने से निचली परतों से ठंडा और पोषक पदार्थ युक्त जल सतह पर आता है, यह क्रिया "उत्स्रवण" कहलाती है और पश्चिमी भाग में गर्म जल के एकत्रित होने की क्रिया "निःस्रवण" कहलाती है। 

    B. पछुआ पवनें - Westerlies Wind In Hindi 

    • पछुआ पवनें उत्तरी गोलार्ध में (30° N - 35° N) से  (60° N - 65° N) तथा दक्षिणी गोलार्ध में (30° S - 35° S) से (60° S - 65° S) के मध्य प्रवाहित होती है। 


    • उत्तरी गोलार्ध में ये पवनें दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तथा दक्षिणी गोलार्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व के मध्य प्रवाहित होती है, अतः इन्हें "पछुआ पवनें" कहा जाता है। 


    • यद्यपि ये पवनें दोनों गोलार्धों में प्रवाहित होती है, किंतु दक्षिणी गोलार्ध में महासागरीय भाग की अधिकता होने के कारण इन्हें घर्षण बल का कम सामना करना पड़ता है अतः इनका वेग दक्षिणी गोलार्ध में पूर्वी गोलार्ध की तुलना में अधिक होता है अतः इन्हें दक्षिणी गोलार्ध में "बहादुर पछुआ" कहते है। 


    • दक्षिणी गोलार्द्ध में इसे कई अन्य नामों जैसे की गरजता चालीसा (40° S), प्रचण्ड पचासा (50° S), चीखता साठा (60° S) आदि से जाना जाता हैं।  


    • शीतोष्ण कटिबंधों में पछुआ पवनों के कारण महासागरों के पूर्वी भाग, पश्चिम भाग की तुलना में अधिक गर्म होते है तथा पछुआ पवनें महाद्वीपों के पश्चिमी भागों पर अधिक वर्षा करती है तथा पूर्व की ओर इनसे होने वाली वर्षा का मान कम होता जाता है। 


     C. ध्रुवीय पूर्वा पवनें - Polar Easterlies Wind In Hindi 

    ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में (70° N - 90° N) से  (60° N - 65° N) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में (70° S - 90° S) से  (60° S - 65° S) के मध्य प्रवाहित होती है। 


    • ये पवनें दोनों गोलार्द्धों में ध्रुवीय उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती है। 


    • ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम प्रवाहित होती है, अतः इन्हें "ध्रुवीय पूर्वा" कहते है। 


    •  ये अत्यधिक शुष्क एवं ठंडी होती है। 


    ITCZ क्या है? - Inter Tropical Convergence Zone In Hindi

    Inter Tropical Convergence Zone In Hindi

    विषुवत रेखा के दोनों ओर का वह क्षेत्र जहां दोनों गोलार्द्धों की पवनें आकर आपस में टकराती है और ऊपर उठकर वर्षा करती है, "अंतर उष्ण अभिसरण मेखला" (ITCZ) कहलाता है। अर्थात 5° N - 5° S का क्षेत्र "अंतर उष्ण अभिसरण मेखला" (ITCZ) कहलाता है। 


    2. द्वितीयक पवनें 

    A. मानसूनी पवनें  

    मानसूनी पवनें सामयिक पवनें है जिनमें मौसम के अनुसार वायु की दिशा में परिवर्तन हो जाता है। स्थल एवं जल के गर्म और ठंडे होने की दर में अंतर मानसून की उत्पत्ति का मूल कारण है। 

    ग्रीष्म ऋतु में स्थल भाग के तेजी से गर्म होने के कारण वायु गर्म होकर ऊपर उठती है जिसके फलस्वरूप स्थल भाग पर निम्न वायुदाब का निर्माण होता है। इसकी तुलना में महासागरों के ठंडे होने के कारण महासागरों पर उच्च वायुदाब का विकास होता है जिसके फलस्वरूप वायु महासागर से स्थल की ओर प्रवाहित होती है इसे "ग्रीष्मकालीन मानसून" कहा जाता है। महासागर से प्रवाहित होने के कारण इनमें आर्द्रता अधिक होती है जिससे स्थलीय भाग पर वर्षा होती है। 


    शीतकाल में वायु दाब प्रवणता कि दिशा उलट जाती है। महाद्वीपों के ठंडे होने के कारण वहां उच्च वायुदाब का निर्माण होता है, अतः पवन का प्रवाह स्थल से महासागर की ओर होता है, इसे "शीतकालीन मानसून" कहा जाता है। किंतु इन पवनों के शुष्क होने के कारण सामान्यतः वर्षा का अभाव होता है। 


    B. स्थल समीर व समुद्र समीर 

    दिन के समय स्थलीय भाग, सागरीय भाग की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाता है तथा सागरीय उच्च वायुदाब क्षेत्र से पवनें स्थलीय निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर प्रवाहित होने लगती है इसे 'सागर समीर' कहते है। 


    रात्रि में स्थितियां विपरीत हो जाती है और स्थलीय भाग शीघ्रता से ठंडे हो जाते हैं, जबकि सागरीय भाग अपेक्षाकृत उच्च तापमान पर बने रहते हैं इस समय स्थलीय उच्च वायुदाब से पवनें सागरीय निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती है, इसे 'स्थल समीर' कहा जाता है। 


    C. पर्वत समीर व घाटी समीर  

    दिन के समय पर्वतीय ढाल, घाटी की तुलना में अधिक सूर्यातप प्राप्त कर अधिक गर्म हो जाते हैं तथा यहां वायु के आरोहित होने से निम्न वायुदाब निर्मित होता है जिसे भरने के लिए ढाल के सहारे घाटी की हवा ऊपर चढ़ती है इसे 'घाटी समीर' कहते है। 


    रात्रि में पर्वतीय ढाल शीघ्रता से दिन में अवशोषित विकिरण का परित्याग कर देते हैं और ठंडे हो जाते है। ढाल की हवा भी ठंडी होकर भारी हो जाती है तथा ढाल के सहारे घाटी की ओर की खिसकती है और घाटी की तली में स्थापित हो जाती है इसे 'पर्वत समीर' कहते है। 


     3. तृतीयक पवनें

    स्थानीय पवनें 

    वे पवनें जो समय विशेष में किसी क्षेत्र में उत्पन्न होती है तथा निश्चित दिशा में प्रवाहित होती है, स्थानीय पवनें कहलाती है।

    कुछ प्रमुख स्थानीय पवनें -  

    स्थानीय पवन स्थान
    चिनूक कनाडा व USA
    जोंडा अर्जेंटीना
    सांता आना USA
    ब्लैक रोलर USA
    फॉन यूरोप
    ट्रैमंटाने यूरोप
    हरमट्टन अफ्रीका
    ब्रिक फील्डर ऑस्ट्रेलिया
    लू पाकिस्तान व उत्तर भारत
    चिली ट्यूनीशिया
    लेवेच स्पेन
    खमसिन मिश्र

    वैश्विक वायु परिसंचरण तंत्र - Global Air Circulation System In Hindi

    वैश्विक स्तर पर वायु के प्रवाह से संबंधित तंत्र को "वैश्विक वायु परिसंचरण तंत्र" कहते है। प्रारंभ में इसके लिए केवल तापमान को उत्तरदायी माना गया तथा हैली व हैडली जैसे विद्वानों ने वायु परिसंचरण का एक कोशिकीय सिद्धांत दिया। किंतु पृथ्वी की घूर्णन के कारण वैश्विक वायु परिसंचरण वर्तमान में त्रिकोशिकीय मॉडल द्वारा स्पष्ट किया जाता है जो निम्नलिखित है -


    Global Air Circulation System In Hindi


    1. हैडली कोशिका - Hadley Cell

    विषुवत रेखीय क्षेत्र से आरोहित होने वाली वायु पृथ्वी के घूर्णन के कारण दोनों गोलार्द्धों में 30° - 35° अक्षांशों पर उतरकर उच्च वायुदाब निर्मित करती है। इस उच्च वायुदाब से विषुवतीय निम्न वायुदाब की ओर व्यापारिक पवन प्रवाहित होती है, इससे निर्मित कोशिका "हैडली कोशिका" कहलाती है। 


    वायुमंडलीय दाब क्या है? वायु गर्त, वायु कटक और समदाब रेखाएं


    2. फेरल कोशिका - Ferrel Cell

    उपोष्ण उच्च वायुदाब तथा ध्रुवीय उच्च वायुदाब से अपसरित होने वाली विपरीत स्वभाव की वायु दोनों गोलार्द्धों में 60° - 65° अक्षांशों पर अभिसरित होकर वाताग्र के सहारे आरोहित होती है। जिससे उपध्रुवीय निम्नवायुदाब का क्षेत्र बनता है। 


    उपध्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्र से आरोहित होने वाली वायु का एक भाग उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र में उतरता है तथा उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र से पछुआ पवनें उपध्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर चलकर "फेरल कोशिका" का निर्माण करती है। 


    वाताग्र क्या है? - Air Front In Hindi 

    वाताग्र दो विपरीत स्वभाव की वायु (गर्म और ठंडी वायु) के मध्य स्थित वायु का ढालयुक्त संक्रमण क्षेत्र है। 


    3. ध्रुवीय कोशिका - Polar Cell  

    उपध्रुवीय निम्न वायुदाब से आरोहित वायु का एक भाग ध्रुवीय उच्च वायुदाब क्षेत्र में उतरता है तथा यहां से ध्रुवीय पूर्वा पवनें उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की ओर चलकर "ध्रुवीय कोशिका" का निर्माण करती है। 


    वायुमंडल के Concept को अच्छे से समझने के लिए इन Topics को जरूर पढ़े:

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