इस लेख में Bheel Janjati (Bhil Tribe in Hindi) के बारे में पुरे विस्तार से जानकारी दी गयी है। यहाँ Bheel Janjati के इतिहास, निवास स्थान, आवास, भोजन, यंत्र व औजारों, अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक जीवन तथा संस्कृति आदि हर पहलू पर चर्चा की गयी हैं।
Table Of Content
- 'भील' शब्द का अर्थ क्या है?
- भील जनजाति का इतिहास
- भील जनजाति की उपजातियाँ
- भील जनजाति का निवास क्षेत्र
- निवास क्षेत्र का भौतिक पर्यावरण
- भीलों की बस्तियां
- औजार और हथियार
- भीलों का भोजन
- भील जनजाति की वेशभूषा
- भील जनजाति की अर्थव्यवस्था
- सामाजिक जीवन, संस्कृति और परम्पराएँ
'भील' शब्द का अर्थ क्या है? Bhil Word Meaning In Hindi
भील शब्द की उत्पत्ति 'बिल/बिल्ल' (Bil) शब्द से मानी जाती है, बिल शब्द का द्रविड़ भाषा में अर्थ होता है - धनुष। भाषायी दृष्टि से देखे तो इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा में क्रिया के मूल, जिसका अर्थ भेदना, वध करना या मारना से हुई है। भील जनजाति के लोग तीरंदाजी में निपुण होते है शायद इसी कारण इन्हें यह नाम दिया गया।
भील जनजाति को " भारत का बहादुर धनुष पुरुष " कहा जाता है।
भील जनजाति का इतिहास संक्षेप में - A Brief History of Bhil Tribe in Hindi
ऐतिहासिक दृष्टि से भील जनजाति ने दक्षिणी राजस्थान के कई क्षेत्रों जैसे कि - डगारिया (डूँगरपुर), बासिया (बांसवाड़ा), कोटिया (कोटा) तथा देआवा (उदयपुर) पर शासन किया। इतिहास में भीलों को निषाद, व्याघ्र, किरात, शबर और पुलिंद कहा गया है। अबुल फजल ने भी अपनी पुस्तक आइन- ए- अकबरी में भीलो के बारे में लिखा है की ये लोग अत्यधिक मेहनती और विधिपालक है।
भील जनजाति की उपजातियाँ - Bhil Janjati Ki Upjati
भील जनजाति की उपजातियां व भील प्रजाति से संबंधित जातियां |
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मीणा |
भील मावची |
भील नायक |
ढोली भील |
बॉरी |
तड़वी भील |
डुंगरी गरासिया |
डुंगरी भील |
ढोली भील |
गर्दभिल्ल |
वसावा |
रावल भील |
वेद्या |
भील पटेलिया |
पावरा |
भील जनजाति का निवास क्षेत्र
भील जनजाति एक पर्वतीय क्षेत्र में निवास करने वाली जनजाति है। ये जनजाति मुख्यतः अरावली, विंध्य और सतपुड़ा श्रेणियों के पहाड़ी भागों में निवास करती है। यह जनजाति राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि राज्यों में फैली हुई हैं।
वर्तमान में भील जनजाति गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में एक अनुसूचित जनजाति है। भील जनजाति पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में भी बसे हुए हैं।
वर्तमान में भील जनजाति की सबसे अधिक जनसंख्या 'मध्य प्रदेश' में निवास करती है।
वहीं बात करें भील जनजाति के मुख्य केन्द्रीयकरण की तो ये जनजाति निम्नलिखित स्थानों पर बसी हुई हैं -
- गुजरात - पंचमहल, वडोदरा
- महाराष्ट्र - औरंगाबाद, अहमदनगर, धुले, जलगाँव, नासिक
- मध्य प्रदेश - धार, झाबुआ, खरगोन, रतलाम
- राजस्थान - बांसवाड़ा, चित्तौडग़ढ़, डूंगरपुर, कोटा, उदयपुर
भील जनजाति के निवास क्षेत्र का भौतिक पर्यावरण
भील जनजाति के निवास क्षेत्र की जलवायु मानसूनी जलवायु है। इस क्षेत्र में मध्य जून से मध्य सितंबर का समय वर्षा ऋतू का होता है तथा इस क्षेत्र में होने वाली वर्षा अरब सागर से आने वाले मानसून से होती है। इनके निवास क्षेत्र के लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र पर वन पाये जाते है किन्तु वनों का घटता आकार, मृदा अपरदन, भीलो की बढ़ती जनसंख्या इनके सामने कई समस्याएं उत्पन्न कर रही है।
भीलो की बस्तियां
भील लोगों की अधिकांश जनसंख्या छितरे हुए गाँवों में निवास करती है। भीलों के प्रत्येक घर एक-दूसरे से दूर होता है। इन घरों के चारों ओर इनके खेत होते हैं, ऐसा इसलिए ताकि ये लोग अपनी फसलों पर निगरानी रख सके।
भील लोग अपनी झोंपड़ी खेती की भूमि के छोटे टुकड़े के मध्य टीले पर बनाई जाती है। इनकी झोंपड़ियों में रहने के कमरों के अलावा पशुओं को रखने और अन्न भंडारण के लिए भी कुछ कमरे रखे जाते है। भील लोग अपनी झोंपड़ी का निर्माण स्वयं ही करते है।
झोपड़ी की दीवारें या तो मिट्टी और पत्थर अथवा बांस से बनाई जाती है। छत का निर्माण मिट्टी की खपरैल या सरकंडों और पत्तों से किया जाता है। झोपड़ी के सामने की दीवारें चूने और लाल गेरू से की गयी पुरातन और अपरिष्कृत चित्रकारी से सजाई जाती है। दीवारों पर तेंदुए, चीते, आदमी आदि के चित्र बनाए जाते हैं। वैसे वर्तमान में कई संपन्न भील परिवारों ने आधुनिक प्रकार के पक्के मकान भी बना लिए हैं।
औजार और हथियार
धनुष-बाण
भील लोगों का सबसे प्रिय शास्त्र 'धनुष-बाण' होता है। धनुष को बांस की मोटी खपच्ची से बनाया जाता है और उसकी डोरी भी बांस की छाल से बनाई जाती है। बाण दो प्रकार के होते है - हरियो (Hario) और रोबदो (Robdo)
हरियो बाण, नरसल से बनाया जाता है, जिसके एक सिरे पर कुछ पंख लगे होते हैं तथा दूसरे सिरे पर लोहे का शीर्ष लगा होता है। इसे काले रंग से सजाया जाता है। इस बाण का उपयोग बड़े पशुओं मारने के लिए किया जाता हैं।
वहीं रोबदो बाण को बांस की लकड़ी से बनाया जाता है जिसके सिरे पर बांस का शीर्ष लगा होता है। इस बाण का उपयोग छोटे पक्षियों की मारने तथा बच्चों को धनुर्विधा सिखाने में किया जाता है।
अन्य हथियार
इन हथियारों के अलावा भील लोगों के पास तलवार, खंजर और फटकिया (एक प्रकार का फंदा) भी रखते हैं। तलवार का उपयोग पशुओं को मारने या लड़ाई में होता है, खंजर का उपयोग बांस को चीरने और मांस व सब्जियों को काटने के लिए किया जाता है तथा फटकिया का इस्तेमाल पक्षियों को पकड़ने के लिए किया जाता हैं। कुछ संपन्न भील बंदूक भी रखते है।
सामान्य उपकरण
भीलों के घर में कुछ सामान्य उपकरण भी मिल जाते हैं जैसे की बांस अथवा जुट से बानी चारपाई, बांस से बना पालना, मिट्टी और धातु से बने बर्तन, चक्की आदि।
विश्व की अन्य प्रमुख जनजातियाँ:
- कांगो बेसिन की पिग्मी जनजाति
- एस्किमो जनजाति
- मसाई जनजाति
- मध्य एशिया की खिरगीज जनजाति
- बुशमैन जनजाति
- सेमांग जनजाति
- मलेशिया की सकाई जनजाति
- अरब के बद्दू
भीलों का भोजन - Bhil Janjati Ka Bhojan
भीलों का मुख्य भोजन मक्का है किन्तु कभी-कभी अकाल के समय छोटे अन्न जैसे कोड़रा, कुरी और बाथी का भी उपयोग किया जाता हैं। उत्सवों और प्रतिभोज के अवसरों पर 'चावल' भी खाया जाता है। गेहूँ से बने भोजन से अथितियों का स्वागत किया जाता है। छाछ और आटे को उबाल कर 'राबड़ी' बनाई जाती है।
रीति-रिवाजों और परम्पराओं के अनुसार भील मांसाहारी होते है। ये लोग खरगोश, हिरण, तीतर, भेड़ आदि पशु-पक्षियों के मांस का सेवन करते हैं। वर्षाकाल में ये लोग मछलियाँ भी पकड़ते है।
भील लोग 'चाय' के बड़े शौक़ीन होते है। ये लोग शक़्कर उपलब्ध ना होने पर चाय में गुड़ मिलकर भी पीते है।
उत्सवों के अवसर पर ये लोग मांसाहारी भोजन करते हैं, जिसमें भेड़, बकरे, भैंस आदि का मांस शामिल होता हैं। होली, राखी, दीवाली आदि त्योहारों पर विशेष भोजन तैयार किया जाता है। ये लोग महुआ वृक्ष के फूलों बबूल की छाल व शीरे से तैयार मदिरा का सेवन करते है।
भील जनजाति की वेशभूषा - Bhil Janjati Ka Pehnawa
कुछ वक्त पहले तक भीलों के वस्त्र बहुत कम होते थे। पुरुषों का एकमात्र वस्त्र वृक्ष की छाल से बना नेकर होता था और स्त्रियों का पेटीकोट भी वृक्ष की छाल से बना होता था। स्त्रियाँ धातु से बने कई प्रकार के आभूषण हाथ और पैर में पहनती हैं। किन्तु पिछले 3-4 दशकों में भील स्त्रियों व पुरुषों के वस्त्रों में बहुत अधिक परिवर्तन आया हैं।
अब एक भील पुरुष सामान्यतः अपने सिर को साफे (फेंटा) से ढकते हैं किन्तु नई पीढ़ी के लोग किसी प्रकार का साफा नहीं बांधते है।
पुरुष अपने शरीर को खादी से बनी कमीज से ढकते है वहीं युवा लोग अब कृत्रिम वस्त्रों से बनी शर्ट और सूट पहनने लग गए हैं। कई भील लोग जो अपनी पुरानी परम्पराओं से जुड़े हुए है वे अपने कंधे पर एक शॉल या कपडा रखते हैं।
एक भील स्त्री की पोशाक में एक पेटीकोट (घाघरा), कांचली और एक साड़ी होती है। प्रथा के अनुसार अविवाहित लड़कियों को साड़ी पहनने की आज्ञा नहीं होती हैं। अविवाहित लड़कियों की पोशाक में घाघरी होती है जो की 3-4 मीटर लंबे वस्त्र से तैयार की जाती है। लड़कियाँ अपने सिर को एक कपड़े से ढकती है जिसे 'ओढ़नी' कहा जाता है।
भील लोग चांदी, पीतल, जस्ता और निकल से बने आभूषण पहनते हैं। सामान्यतः भील स्त्रियां लाख और कांच की चूड़ियां पहनती है।
भील जनजाति की अर्थव्यवस्था - Bhil Tribe Economy in Hindi
Bheel Janjati वनों और पठारी भागों में निवास करती है इस कारण ये मुख्यतः वनों और कृषि भूमि पर निर्भर है। ये लोग वनों से कंद-मूल-फल एकत्रित करते हैं तथा जंगली पशुओं और पक्षियों का शिकार करते हैं। ये लोग अपने परिवार के लिए खाद्यान्न, साग-सब्जियां और चारे की फसलें उत्पन्न करते हैं। कृषि के लिए ये लोग आदिम तकनीक और देशी उपकरण अपनाते हैं जिस कारण प्रति इकाई क्षेत्र उपज कम है।
वर्तमान में कई भील लोग बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो रहे हैं और व्यापारिक फसलें उत्पन्न करने लगे हैं। जिन लोगों के पास बड़ी जोते और सिंचाई की सुविधा है वे वर्ष में तीन फसलें उत्पन्न कर रहे है।
अब भीलों के पास कृषि भूमि लगातार कम होती जा रही हैं और जोत का आकार छोटा होता जा रहा है इसके परिणामस्वरूप भीलों का तहसीलों और जिला मुख्यालयों की ओर प्रवसन होने लगा हैं। अब भील लोग कई छोटे-मोटे काम और नौकरियां भी करने लग गए हैं।
अनेक भील संपन्न और विशिष्ट वर्ग के है, कुछ मध्यम वर्ग के हैं तथा निचले स्तर के निर्धन, पिछड़े, निरक्षर और दबे हुए है। निचले स्तर के भीलों का समूह सबसे बड़ा है।
सामाजिक जीवन, संस्कृति और परम्पराएँ - Bhil Tribe Social Life, Culture, Traditions in Hindi
समाज
भील समाज पितृसत्तात्मक समाज होता है जो की कई कुलों में संगठित होता हैं तथा प्रत्येक कुल को एक नाम दिया गया है और ये नाम पौधों और पशुओं के नाम पर रखे गए हैं, जिससे वे अपनी उत्पत्ति बताते हैं। इस तरह, भील जनजाति अनेक कुलों में विभाजित है तथा प्रत्येक कुल एक ही वंश पर आधारित होता हैं तथा प्रत्येक कुल के सदस्य अलग-अलग गांव में निवास करते है।
प्रत्येक कुल का अपना गणचिन्ह होता है। यह गणचिन्ह कोई पौधा, वृक्ष या पशु हो सकता है। कुल के सभी सदस्य कठिनाई और उत्सवों के समयहोने अपने गणचिन्ह देवी-देवताओं का आह्वान करते है।
विवाह
- भील जनजाति में विवाह एक संस्कार नहीं है बल्कि भील स्त्री व पुरुष दोनों के लिए वयस्कता और परिपक्वता का एक चिन्ह है।
- भील समाज में जो व्यक्ति विवाह नहीं करता है उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है।
- भीलों में विधवा-विवाह तथा बहुविवाह का भी प्रचलन है।
- इस जाति में 'वधू मूल्य' काफी अधिक बढ़ गया है जिस कारण कई भील स्त्रियों को भगा कर भी विवाह करते है।
धर्म
- भील लोग आम, केला, पीपल आदि वृक्षों की पूजा करते है।
- ये लोग पीपल के वृक्ष को सबसे अधिक पवित्र वृक्ष माना जाता है जिसके साथ कई निषेध जुड़े रहते हैं। इस वृक्ष की पत्तियों और टहनियों को काटना वर्जित माना जाता हैं।
- ये लोग नदी के तट पर उगने वाली घास की भी पूजा करते है।
- भील लोग कृषि-यंत्रो की भी पूजा करते है।
- गाय के गोबर की भी पूजा की जाती है।
धर्मानुष्ठान
- भील बच्चों का जीवन अनेक कर्मकांडों से प्रभावित रहता है।
- भील लोग बालक के जन्म पर हमेशा यह जानने के लिए की इस बालक में किस सम्बन्धी ने पुनर्जन्म लिया है, उसके शरीर पर किसी विशेष चिन्ह की खोज करते है।
- बच्चे का नाम उसके पिता तथा दादा के नाम पर नहीं रखा जाता है।
- किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर श्मशान में उसकी मृत देह का सिर उत्तर दिशा में रखते है।
- मृत्यु के तीसरे दिन मृत व्यक्ति के निकट संबंधियों के सिर और दाढ़ी के बाल काटे जाते हैं।
- भील लोग अपने पूर्वजों की याद में स्मारक शिला लगाते है जो की या तो सामान्य होता है या फिर सजावट वाला।
त्यौहार - Bhil Janjati Ke Tyohar
- भीलों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार 'होली' है।
- यह त्यौहार हिन्दू त्यौहार से लिया हुआ नहीं है, वरन होली देवी जिसे 'जोगन माता' भी कहा जाता है, की भील पृष्ठभूमि में यह त्यौहार मनाया जाता है।
- दीपावली, इनका दूसरा महत्वपूर्ण पर्व है। इस त्यौहार पर भील लोग नदी तथा अन्य पवित्र जल स्रोतों की भी पूजा करते हैं।
- दीपावली के अवसर पर नयनाभिराम नृत्य होते हैं, जिसमें कभी-कभी पुरुष, स्त्रियों के भेस में नृत्य करते है।
- कुछ विशिष्ट अवसरों जैसे की विवाह, मृत्यु तथा दैनिक जीवन के महत्वपूर्ण अवसरों के लिए विशेष नृत्य होते हैं।
साक्षरता और शिक्षा
- वर्तमान में भील जनजाति की साक्षरता दर 43.22% हैं (2011 की जनगणना) और यह स्तर अब बढ़ रहा है।
- भील लड़कियां भी शिक्षा ग्रहण कर किंतु उनकी संख्या बहुत कम है।
स्त्रियों की स्थिति
- जब तक वह अविवाहित रहती है, वह घर और खेत पर उसकी माँ की सहायता करती हैं।
- और जब उसकी शादी हो जाती है, तब वह उसके पिता के लिए वधू मूल्य (दापा) के रूप में धन लाती है।
लड़की के पति के चयन में उसकी स्वीकृति का कोई महत्व नहीं होता है। विवाह का निश्चित किया जाना माता-पिता की इच्छा पर निर्भर होता है। एक बहुविवाही परिवार में, पत्नी की स्थिति उसके पति द्वारा दी जाने वाली वरीयता पर निश्चित होती है।
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