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1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट की पृष्ठभूमि, प्रावधान तथा उद्देश्य | 1773 Regulating Act In Hindi


1773 Regulating Act In Hindi

1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट की पृष्ठभूमि - 1773 Regulating Act In Hindi

1608 ईस्वी में ब्रिटिश भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के रूप में व्यापार करने आए थे। ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 ई. में हुई थी। कंपनी को इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा भारत में व्यापार का एकाधिकार प्राप्त हुआ। 

ब्रिटिशों ने भारत में आने के पश्चात अपने आप को स्थापित करना शुरू किया और इसके लिए उसने कई युद्ध किए जिनमें से 1757 का प्लासी का युद्ध और 1764 का बक्सर का युद्ध प्रमुख है। प्लासी के युद्ध ने ईस्ट इंडिया कंपनी का बंगाल पर आधिपत्य स्थापित कर दिया किंतु बक्सर के युद्ध ने उस आधिपत्य को पूर्ण रूप से सुनिश्चित कर दिया। अब कंपनी एक व्यापारिक कंपनी से राजनीतिक शक्ति के रूप में परिवर्तित हो गई। 


इसी समय ब्रिटिश कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार का ब्रिटेन के स्वतंत्र व्यापारियों द्वारा विरोध किया जा रहा था क्योंकि ब्रिटिश कंपनी भारत में एक व्यापारी कंपनी के रूप में आई थी परंतु समय के साथ एक राजनीतिक शक्ति के रूप में परिवर्तित हो गई। अतः ब्रिटिश जनता के एक बड़े समूह को यह बात अस्वाभाविक लग रही थी कि भारत जैसे एक समृद्ध क्षेत्र का लाभ कंपनी के मुट्ठी भर शेयरधारकों को ही क्यों मिल रहा है? 


1765 से 1772 का काल

बक्सर के युद्ध के पश्चात बंगाल के प्रशासन की शक्ति अप्रत्यक्ष रूप में ब्रिटिश कम्पनी के पास आ गयी थी। 1765 से 1772 के मध्य के 7 सालों में -

  • कंपनी की कर्मचारियों के मध्य अत्यधिक भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया था। 
  • कर्मचारियों ने निजी व्यापार द्वारा काफी अधिक धन कमाया
  • अत्यधिक भू-राजस्व की वसूली और किसानों का उत्पीड़न किया गया

वहीं इस समय ईस्ट इंडिया कंपनी दिवालियेपन के कगार पर पहुंच गई थी जबकि उसके कर्मचारी मालामाल हो गए थे। ऐसे में जब कंपनी ने ब्रिटिश पार्लियामेंट के समक्ष ऋण की दरख्वास्त की तो फिर यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि जब कंपनी के अधिकारी धनी है तो स्वयं कंपनी निर्धन क्यों गई है? इन प्रश्नों ने 1773 Regulating Act की पृष्ठभूमि निर्मित कर दी। 


1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट क्या है? - Regulating Act Of 1773 In Hindi 

जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है की यह अधिनियम ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को 'Regulate' अर्थात 'नियंत्रित' करने के लिए लाया गया था। 

इस अधिनियम का अत्यधिक संवैधानिक महत्व था, यथा -

  1. यह भारत में East India Company के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया पहला कदम था। 
  2. इस अधिनियम के द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनैतिक कार्यों को मान्यता मिली। 
  3. इसके द्वारा केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी। 


रेग्युलेटिंग अधिनियम के प्रावधान 

  • इस अधिनियम के द्वारा 'बंगाल के गवर्नर' को 'बंगाल का गवर्नर जनरल' पद नाम दिया गया और उसकी सहायता के लिए एक 4 सदस्यीय कार्यकारी परिषद का गठन किया गया। 
(इस अधिनियम के तहत बनने वाले पहले गवर्नर जनरल "लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स" थे।) 

 

  • मुंबई एवं मद्रास के गवर्नर को बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन किया गया। 

  • इस अधिनियम के अंतर्गत 1774 ई. में कलकत्ता में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे। कंपनी के सभी कर्मचारी इसके न्याय क्षेत्र के अधीन कर दिए गए। उच्चतम न्यायालय में अंग्रेज एवं भारतीय, सभी न्याय की गुहार कर सकते थे। यहाँ इंग्लैंड प्रचलित न्यायिक विधियों के अनुसार न्याय व्यवस्था थी।   
(इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश "सर एलिजाह एंपी" थे।)

  • कानून बनाने का अधिकार गवर्नर जनरल तथा उसकी परिषद को दे दिया गया, किन्तु इन कानूनों को लागू करने से पूर्व भारत सचिव से अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य था। 

  • इस एक्ट के तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया गया। 


  •  कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि कर दी गयी तथा उन्हें भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेने की मनाही कर दी गयी। 

1781 ई. का एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट - Act Of Settlement 1781 In Hindi

1773 Regulating Act की खामियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1781 ई. में एक्ट ऑफ़ सेटलमेंट जारी किया, जिसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे -

  • कलकत्ता स्थित उच्चतम न्यायालय के न्याय क्षेत्र को परिभाषित किया गया। 
  • कंपनी के पदाधिकारी अपने शासकीय रूप में किये गए कार्यों के लिए उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बाहर हो गए। 
  • उच्चतम न्यायालय में गवर्नर जनरल की परिषद द्वारा निर्मित नियमों एवं विनियमों को पंजीकृत करना आवश्यक नहीं था। 
  • कानून बनाते तथा उनका क्रियान्वयन करते समय भारतीयों के सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाजों का सम्मान किया जाना था।  



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