आज के लेख में हम Bhukamp के बारे में विस्तार से जानेंगे। हम Bhukamp से जुड़े सभी प्रश्नों जैसे की Bhukamp Kya Hai, Bhukamp Ke Karan, Bhukamp Ke Prakar और Bhukamp Ke Prabhav के उत्तर जानेंगे।
Table Of Content
- भूकंप क्या हैं? - Earthquake In Hindi
- भूकंप से सम्बंधित प्रमुख शब्दावली - Important Terminology In Hindi
- भूकंपीय तरंगें - Seismic Waves In Hindi
- भूकंप के कारण - Bhukamp Ke Karan
- भूकंप के प्रकार - Bhukamp Ke Prakar
- भूकंपीय पैमाने - Earthquake Measuring Unit
- भूकंपों का वैश्विक वितरण - Earthquake Zones In World
- भारत के भूकंपीय क्षेत्र - Earthquake Zone In India
- भूकंपों के प्रभाव - Bhukamp Ke Prabhav
- FAQs
भूकंप क्या हैं? - Earthquake In Hindi
प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से भू-पृष्ठ पर उत्पन्न आकस्मिक कम्पन "भूकंप (Earthquake)" कहलाते हैं। सामान्यतः भूकंप पृथ्वी की सतह पर कम्पनों के रूप में पृथ्वी की आंतरिक ऊर्जा का विमोचन होते हैं।
भूकंपों का अध्ययन "भूकंप विज्ञान (Seismology)" कहलाता है।
भूकंप से सम्बंधित प्रमुख शब्दावली - Important Terminology In Hindi
1. भूकंप केन्द्र / भूकंप मूल / अवकेंद्र / (Hypocenter)
भूगर्भ में वह स्थान जहाँ सर्वप्रथम भूकंपीय ऊर्जा मुक्त होती है, भूकंप केंद्र / भूकंप मूल / अवकेंद्र / (Hypocenter) कहलाता है।
2. अधिकेंद्र (Epicenter)
भूकंप मूल के ठीक ऊपर स्थित वह स्थान जहाँ पृथ्वी की सतह पर सर्वप्रथम कम्पन अनुभव किये जाते हैं, अधिकेंद्र कहलाता है।
3. प्रतिध्रुवस्थ (Antipodal)
अधिकेंद्र के ठीक विपरीत 180° पर स्थित स्थान, प्रतिध्रुवस्थ कहलाता है।
4. समभूकंपीय रेखा (Isoseismal Line)
समान भूकंपीय तीव्रता वाले क्षेत्रों को मिलाने वाली रेखा को समभूकंपीय रेखा कहते हैं।
5. सहभूकंपीय रेखा (Homoseismal Line)
भूकंपीय क्षेत्रों में एक ही समय पर आने वाले भूकंपों को दर्शाने वाली रेखा को सहभूकंपीय रेखा कहलाती हैं।
6. सिस्मोग्राफ/सिस्मोमीटर (Seismograph)
पृथ्वी की सतह पर भूकम्पीय तरंगो का अंकन करने वाला यंत्र "सिस्मोग्राफ/सिस्मोमीटर" कहलाता है।
7. सीस्मोग्राम (Seismogram)
सिस्मोग्राफ द्वारा भूकंपीय तरंगों का अंकित प्रतिरूप (Pattern), सीस्मोग्राम कहलाता है।
भूकंपीय तरंगें - Seismic Waves In Hindi
- काया तरंगें / पिंड तरंगें - (Body Waves)
- धरातलीय तरंगें / दीर्घ तरंगें - (Surface Waves)
1. काया तरंगें / पिंड तरंगें - (Body Waves)
काया तरंगें भूकंप के दौरान भूकंप मूल (Hypocenter) से निकलती हैं तथा भूगर्भ के विभिन्न भागों से होते हुए पृथ्वी की सतह से टकराती हैं। पृथ्वी की आंतरिक संरचना के सन्दर्भ में ये तरंगें सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सर्वाधिक विश्वसनीय जानकारी प्रदान करती हैं।
ये तरंगें मुख्यतः 2 प्रकार की होती हैं -
A. प्राथमिक तरंगें (P Waves)
B. द्वितीयक तरंगें (S Waves)
A. प्राथमिक तरंगें (P Waves)
- ये तरंगें सिस्मोग्राफ (Seismograph) पर सर्वप्रथम Record होती हैं, इस कारण इन्हें "प्राथमिक तरंगें (P Waves)" कहा जाता है।
- ये अनुदैर्ध्य तरंगें (Longitudinal Waves) होती हैं और माध्यम में संपीडन (compression) व विरलन (rarefaction) उत्पन्न करती हैं, इस कारण इन्हें "कर्षापकर्षी (Pull and Push) तरंगें" भी कहा जाता हैं।
- ये तरंगें ध्वनि तरंगों के समतुल्य होती हैं।
- इनका वेग औसतन 8 km/sec से 14 km/sec होता हैं।
- ये तरंगें ठोस, द्रव और गैस तीनों माध्यमों में गति करती हैं परन्तु ठोस माध्यम में इनकी गति सर्वाधिक होती हैं और द्रव व गैस में क्रमशः कम हो जाती हैं।
- भूकंपीय तरंगों में ये सबसे कम विध्वंसक होती हैं।
- ये तरंगें सिस्मोग्राफ पर P तरंगों के बाद Record होती हैं इसलिए इन्हें द्वितीयक तरंगें (Secondary Waves) कहा जाता हैं।
- ये अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse Waves) होती हैं और शृंग (तरंग का ऊपर उठा भाग) व गर्त (तरंग का निचला भाग) में चलती हैं।
- ये प्रकाश तरंगों के समतुल्य होती हैं।
- इनका औसत वेग 4 km/sec से 6 km/sec होता हैं।
- ये केवल ठोस माध्यम में गति करती हैं और द्रव व गैस माध्यम में विलुप्त हो जाती है।
- ये P तरंगों की अपेक्षा अधिक विध्वंसक होती हैं।
2. धरातलीय तरंगें / दीर्घ तरंगें - (Surface Waves)
जब काया तरंगें (Body Waves) पृथ्वी की सतह की चट्टानों से टकराती हैं तब चट्टानों तथा काया तरंगों की अन्योन्य क्रिया (Interaction) के फलस्वरूप विशेष प्रकार की तरंगें उत्पन्न होती हैं जो केवल धरातल पर गति करती हैं तथा भूगर्भ में प्रवेश नहीं करती हैं, धरातलीय तरंगें (Surface Waves) कहलाती हैं।
धरातलीय तरंगें 2 प्रकार की होती हैं -
a. लव (Love Waves)
b. रैले (Rayleigh Waves)
- धरातलीय तरंगें अधिकेंद्र (Epicenter) पर उत्पन्न होकर सम्पूर्ण पृथ्वी की सतह से होते हुए पुनः अधिकेंद्र पर पहुँचती हैं। इस प्रकार ये सभी भूकम्पीय तरंगों में सबसे अधिक दूरी तय करती हैं, अतः इन्हें दीर्घ तरंगें (Long Waves / L Waves) भी कहा जाता हैं।
- इनमें अनुप्रस्थ और अनुदैर्ध्य दोनों तरंगों के गुण पाये जाते हैं।
- इनका औसत वेग 1.5 km/sec - 3 km/sec होता हैं।
- ये ठोस, द्रव और गैस तीनों माध्यम में गति कर सकती हैं, किन्तु ठोस माध्यम में इनकी गति सर्वाधिक तथा द्रव व गैस में क्रमशः कम होती जाती हैं।
- ये सर्वाधिक विध्वंसक भूकंपीय तरंगें है क्योंकि ये सभी संभव दिशाओं में धक्के देती हैं। इससे अत्यधिक बड़े पैमाने पर नुकसान होता हैं।
- धरातलीय तरंगों को लव तरंगों (Love) व रैले तरंगों (Raleigh) में विभाजित किया जाता हैं, लव तरंगें अगल-बगल धक्के देती हैं जबकि रैले तरंगें ऊपर-नीचे धक्के देती हैं।
भूकंप के कारण - Bhukamp Ke Karan
भूकंप उत्पन्न होने के निम्नलिखित कारण होते हैं -
1. प्राकृतिक कारण
- पृथ्वी के ठन्डे होने की प्रक्रिया
- पृथ्वी का घूर्णन
- भ्रंशन
- ज्वालामुखी
- प्लेट विवर्तनिकी
- समस्थिति/संतुलन मूलक भूकंप
- प्रत्यास्थ पुनश्चलन
- भू-स्खलन
- उल्कापिंड या धूमकेतु आदि का पृथ्वी की सतह से टकराना
2. मानवजनित कारण
- परमाणु विस्फोट परीक्षण
- खदानों में विस्फोटकों का प्रयोग
- पर्वतीय भागों में सड़क तथा रेलवे निर्माण के दौरान बाधाओं को हटाने के लिए किए गए विस्फोट।
- बड़े बांधों और जलाशयों का निर्माण
- कोयला आदि खदानों का धँस जाना
- निर्वनीकरण के परिणामस्वरूप होने वाला भूस्खलन
पृथ्वी के ठन्डे होने की प्रक्रिया
कुछ विद्वानों के अनुसार पृथ्वी के निरंतर ठन्डे होने से पृथ्वी सिकुड़ती हैं, जिससे भू-पृष्ठ पर कम्पन उत्पन्न होते हैं। इनके अनुसार पृथ्वी के ठन्डे होने के कारण ज्वालामुखी उद्गार बढ़ जाते हैं, जिससे पृथ्वी भूकम्पों का अनुभव करती हैं किन्तु अधिकांश विद्वान पृथ्वी के सिकुड़ने की संकल्पना को स्वीकार नहीं करते हैं।
पृथ्वी का घूर्णन
भ्रंशन (Fault)
ज्वालामुखी (Volcano)
प्लेट विवर्तनिक (Plate Tectonic)
स्थलमंडल कई छोटी-बड़ी प्लेटों में विभाजित हैं। ये प्लेटें एक दृढ़ इकाई के रूप में दुर्बलतामंडल पर चलायमान है। प्लेटें गतियों के क्रम में अंतर्क्रिया करती हैं, जिससे निम्नलिखित प्लेट किनारों के सहारे भूकम्पों की उत्पत्ति होती हैं -
- अभिसारी प्लेट किनारा
- अपसारी प्लेट किनारा
- संरक्षी प्लेट किनारा
समस्थितिजन्य भूकंप / संतुलन मूलक भूकंप
घूर्णन करती हुई पृथ्वी पर विभिन्न ऊँचाई वाली भू-आकृतियों में पाया जाने वाला यांत्रिक संतुलन समस्थिति कहलाता हैं। जब कभी यह संतुलन भंग हो जाता हैं तब भू-आकृतियाँ पुनः संतुलन प्राप्त करने के लिए खुद को समायोजित करती हैं। सामान्यतः यह समायोजन क्रमिक और मंद गति से होता हैं अतः यह महसूस नहीं हो पाता किन्तु जब कभी यह समायोजन अचानक और बड़े पैमाने पर होता हैं, तब यह भूकम्पों को जन्म देता हैं।
प्रत्यास्थ पुनश्चलन (Elastic Reboundation)
प्रत्यास्थ पुनश्चलन का सिद्धांत रीड महोदय ने दिया था। इसके अनुसार भूगर्भ में चट्टानें खींची हुई रबड़ की तरह तनाव में रहती हैं। जब इन पर आरोपित प्रतिबल इनकी प्रत्यास्थता की सीमा से अधिक हो जाता हैं तब ये टूट जाती हैं तथा चट्टानी खण्ड अपनी-अपनी जगह लेने का प्रयास करते हैं तथा इस प्रक्रिया में भूकंप की उत्पत्ति होती हैं।
भूस्खलन (Landslide)
पर्वतीय भागों में भूस्खलन के कारण भूकंप आते हैं।
भूकंप के प्रकार - Bhukamp Ke Prakar
1. भूकंप मूल की गहराई के आधार पर
2. उत्पत्ति स्थल के आधार पर
- स्थलीय भूकंप
- अंतःसमुन्द्री भूकंप
3. उत्पत्ति के कारणों के आधार पर
(i). प्राकृतिक
(ii). मानव जनित
भूकंपीय पैमाने - Earthquake Measuring Unit
- परिमाणात्मक पैमाना
- भूकंपीय तीव्रता पैमाना
1. परिमाणात्मक पैमाना - Magnitude Scale
- इसकी खोज "रिक्टर (Richter)" महोदय ने 1935 में की थी।
- यह एक परिमाणात्मक पैमाना है जो भूकंप के दौरान उत्सर्जित ऊर्जा का मापन करता हैं।
- इसमें 0 से 10 अंकों तक उत्सर्जित ऊर्जा को प्रकट किया जाता हैं।
- यह एक खुला लघुगणकीय पैमाना हैं अर्थात इसके अंको को 10 से आगे भी बढ़ाया जा सकता हैं।
- यदि रिक्टर पैमाने पर इकाई की वृद्धि होती हैं तो भूकम्पीय तरंगों के आयाम में 10 गुना और भूकम्पीय ऊर्जा में 31.6 गुना वृद्धि हो जाती हैं।
- रिक्टर पैमाने पर 2 तीव्रता तक आने वाले भूकंप मानव को अनुभव नहीं होते हैं। यदि भूकंप की तीव्रता 5 या उससे अधिक हैं तब यह विनाशक हो सकता हैं।
2. भूकंपीय तीव्रता पैमाना - Earthquake Intensity Scale
- इसकी खोज 1905 में "मरकेली" महोदय ने की थी तथा इसे 1931 संशोधित किया गया था।
- यह अनुभवमूलक या गुणात्मक पैमाना है जो भूकंप से हुए नुकसान के आधार पर भूकंप के आघात की तीव्रता को बताता हैं।
- यह बंद सिरे वाला सामान्य पैमाना हैं।
- इसमें भूकंप की तीव्रता I - XII अंकों तक मापी जाती हैं।
भूकंपों का वैश्विक वितरण - Earthquake Zones In World
1. परिप्रशांत मेखला / पेटी
- यह अभिसारी प्लेट किनारे का क्षेत्र हैं।
- यह सक्रिय ज्वालामुखियों का क्षेत्र हैं।
- यह वलित पर्वतों का क्षेत्र हैं।
- यह सागर-स्थल मिलन क्षेत्र होने के कारण कमजोर क्षेत्र हैं।
2. मध्य-महाद्वीपीय पेटी
- इस पेटी में विश्व के कुल भूकंपों का 21% भाग आता हैं।
- यहाँ भूकंप भ्रंश मूलक, विनाशात्मक प्लेट किनारें तथा संतुलन मूलक गतिविधियों के अंतर्गत आते हैं।
3. मध्य अटलांटिक मेखला
भारत के भूकंपीय क्षेत्र - Earthquake Zone In India
- सिस्मिक जोन - 5
- सिस्मिक जोन - 4
- सिस्मिक जोन - 3
- सिस्मिक जोन - 2
1. सिस्मिक जोन - 5
यह सबसे खतरनाक जोन हैं। इस जोन में देश का पूर्वी भाग, उत्तराखंड, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर (कश्मीर घाटी), गुजरात का कच्छ, अंडमान व निकोबार आदि को रखा गया हैं।
2. सिस्मिक जोन - 4
यह जोन भी खतरनाक हैं। इस जोन में जम्मू और कश्मीर के शेष हिस्से, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ हिस्से, हरियाणा के कुछ हिस्से, पंजाब के कुछ हिस्से, दिल्ली, सिक्किम, उत्तरप्रदेश के उत्तरी हिस्से, बिहार व पश्चिमी बंगाल के कुछ हिस्से, गुजरात महाराष्ट्र के पश्चिमी हिस्से व राजस्थान का छोटा हिस्सा।
3. सिस्मिक जोन - 3
तीसरे जोन में केरल, गोवा, लक्षद्वीप समूह, उत्तर प्रदेश और हरियाणा का कुछ हिस्सा, गुजरात और पंजाब के बचे हुए हिस्से, पश्चिम बंगाल का कुछ इलाका, पश्चिमी राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार का कुछ इलाका, झारखंड का उत्तरी हिस्सा और छत्तीसगढ़. महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक का कुछ भाग।
4. सिस्मिक जोन - 2
दूसरे जोन को कम खतरनाक जोन माना जाता हैं। इस जोन में राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु के बाकी हिस्से आते हैं।
भूकंपों के प्रभाव - Bhukamp Ke Prabhav
सकारात्मक
- पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने में सहायता।
- भूगर्भ में संचित ऊर्जा का निष्कासन
- भूमिगत जल के विक्षुब्ध हो जाने से नए जलस्रोतों की प्राप्ति
- शैलों के टूटने-फूटने से मृदा निर्माण की प्रक्रिया तीव्र हो जाती हैं।
- भूकंप द्वारा भूगर्भ की गहराई में स्थित खनिज सतह के समीप आ जाते हैं, कभी-कभी लम्बी-चौड़ी दरार भी निर्मित हो जाती है तथा यह क्षेत्र खनिज उत्खनन के लिए उपयोगी हो जाता हैं।
- ऊँचे क्षेत्रों के नीचे होने से नए परिवहन मार्ग निर्मित होते हैं।
- तटीय भाग में समुन्द्र नितल के धँस जाने से नई खाड़ियों का निर्माण होता हैं तथा जल की गहराई बढ़ने से बंदरगाही सुविधाओं में वृद्धि होती हैं।
- महासागरीय भाग में नये द्वीपों का निर्माण संभव होता हैं।
- दरारी झीलों का निर्माण।
नकारात्मक
- भू-पृष्ठ का असामान्य कम्पन।
- धरातलीय विसंगति
- जान-धन की हानि
- इमारतों का टूटना तथा अवसंरचनाओं का विनाश
- धरातलीय विस्थापन
- भूस्खलन तथा हिमस्खलन की घटनाएँ
- मृदा द्रवण
- नदियों का मार्ग परिवर्तन
- बांध और तटबंधों के टूटने से बाढ़ का आना।
- सुनामी
- धरातल पर लम्बी-चौड़ी दरारों का निर्माण
- जनसंख्या का पलायन
- आर्थिक गतिविधियों का दुष्प्रभावित होना।
FAQs
भूकंप की परिभाषा क्या है?
Ans. भूकंप वह घटना है, जिसमें पृथ्वी के भूपटल में आकस्मिक हलचल होने से कंपन होता हैं।
भूकंपीय तरंगें कितनी होती हैं?
Ans. भूकंपीय तरंगें 3 होती हैं - प्राथमिक तरंग, द्वितीयक तरंग, धरातलीय तरंग/दीर्घ तरंग
भूकंप के समय कौन सी गैस निकलती है?
Ans. भूकंप आने से पहले वायुमंडल में "रेडॉन" गैस की मात्रा बढ़ जाती हैं।
"नियात भूकंप" क्या हैं?
"फ्रैकिंग विधि" क्या हैं?