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प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की संपूर्ण जानकारी - Plate Tectonic Theory In Hindi

दोस्तों, आज के इस लेख में हम Plate Tectonic Theory के सभी पक्षों को जानेंगे। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत (Plate Tectonic Theory) वास्तव में कोई स्वतंत्र सिद्धांत नहीं है। वरन यह अपने पूर्ववर्ती सिद्धांतों महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Continental Drift Theory), संवहन धारा सिद्धांत (Convection Current Theory) सागर नितल प्रसरण (Sea Floor Spreading) आदि सिद्धांतों का संश्लिष्ट रूप हैं। Plate Tectonics Theory उन सवालों के जवाब देता हैं जिनका सही उत्तर इससे पूर्ववर्ती सिद्धांत नहीं दे पाए थे जैसे की महाद्वीपों का विस्थापन, वलित पर्वत निर्माण, ज्वालामुखी उद्गार, भूकंप, महासागरीय गर्त का निर्माण, द्वीपों का निर्माण, सुनामी, अग्निवलय (Ring Of Fire) आदि। यह टॉपिक UPSC व PCS परीक्षाओं की दृष्टि से भी अतिमहत्वपूर्ण हैं। 


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विषयसूची 


प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत क्या हैं? - What Is Plate Tectonic Theory In Hindi

Tectonic शब्द ग्रीक भाषा के "Tekton (टैक्टोन)" शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ 'निर्माता या बढ़ई' होता हैं। Tekton शब्द का हिंदी रूपांतरण "विवर्तनिकी" है। 


विवर्तनिकी क्या हैं? - What Is Tectonics In Hindi 

विवर्तनिक प्लेटों को जानने से पहले हम जानते हैं की आखिर 'विवर्तनिकी' का अर्थ क्या हैं ?

भू-पृष्ठ पर अंतर्जात बलों के अधीन होने वाले परिवर्तन "विवर्तन" कहलाते हैं। इसके अंतर्गत भू-पृष्ठ पर वलन (Fold), भ्रंशन (Fault) और बंकन (Bending) आदि क्रियाएँ होती हैं, इन क्रियाओं को "विवर्तनिक क्रियाएँ" कहा जाता हैं। 


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वलन, भ्रंशन और बंकन 


  • वलन (Fold) - जब अवसाद (sediment) तरंग के रूप में इकट्ठा हो जाते हैं अर्थात अपनति (ऊपर उठा हुआ भाग) और अभिनति (नीचे धँसा हुआ भाग) जैसी आकृति बनाते हैं। उदाहरण - हिमालय (वलित पर्वत)
  • भ्रंशन (Fault) - जब दरार अधिक चौड़ी हो जाये तो इसे भ्रंश कहा जाता हैं तथा भ्रंश बनने की यह प्रक्रिया भ्रंशन कहलाती है। इसके सहारे भू-खंड गति करने लग जाते हैं। 
  • बंकन (Bending) - जब अभिसारी संवहन धाराओं के कारण लगने वाले दबाव बल से भू-पृष्ठ के ऊपर का भाग नीचे धँस जाता हैं / जल के भार के कारण भी महासागरीय भू-पृष्ठ धँस जाता हैं तो इसे बंकन कहते हैं।  


विवर्तनिक क्रियाओं के फलस्वरूप भू-पृष्ठ विरूपित (पृथ्वी की सतह के स्वरूप में होने वाला परिवर्तन) होती है तथा वलित पर्वत, भ्रंश घाटी आदि भू-आकृतियों का निर्माण होता हैं। विवर्तनिकी (Tectonics) भू-पृष्ठ की चट्टानों के विरूपण और इस विरूपण के लिए उत्तरदायी शक्तियों का वैज्ञानिक अध्ययन हैं। 


विवर्तनिक प्लेट क्या है? - What Is Tectonic Plates In Hindi

पृथ्वी की सबसे बाहरी औसतन 100 km की मोटाई वाली परत स्थलमंडल कहलाती है। यह कठोर, दृढ़ (Rigid) और भंगुर चट्टानों से निर्मित हैं। यह अनियमित आकार के कई खंडों में विभाजित हैं, जिन्हें "स्थलमंडलीय प्लेट" कहते हैं। ये प्लेटें प्लास्टिक अवस्था वाले दुर्बलतामंडल पर एक इकाई के रूप में गति करती हैं। 


इन प्लेटों में परस्पर अंतर्क्रिया से भू-पृष्ठ पर परिवर्तन होते हैं तथा प्लेटों के किनारों के सहारे वलन, भ्रंशन और बंकन आदि विवर्तनिक क्रियाएँ संपन्न होती हैं, अतः इन प्लेटों को "विवर्तनिक प्लेट" भी कहते हैं। 



वह सिद्धांत जो विवर्तनिक प्लेटों के संचरण से उत्पन्न भू-लक्षणों की व्याख्या करता है, उसे "प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत" कहा जाता है।  


सर्वप्रथम "ट्रूजो विल्सन" महोदय ने प्लेट शब्द दिया। "हैरी हेस" महोदय को प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की प्रारंभिक रुपरेखा देने का श्रेय दिया जाता है। इस सिद्धांत की विशद व्याख्या मॉर्गन, पार्कर और मैकेंजी जैसे विद्वानों द्वारा दी गई। 


विवर्तनिक प्लेटों के प्रकार - Types Of  Plate Tectonics In Hindi

विवर्तनिक प्लेट निम्नलिखित प्रकार की होती हैं - 

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विवर्तनिक प्लेटें


1. आकार (Size) के आधार पर विवर्तनिक प्लेट 

आकार के आधार पर विवर्तनिक प्लेट 3 प्रकार की होती हैं - 
  • प्रधान / बड़ी प्लेटें (Major Plates)
  • गौण प्लेट / छोटी प्लेटें (Minor Plates)
  • माइक्रो प्लेटें (Micro Plates)


A. प्रधान/बड़ी प्लेटें (Major Plates) 

वे प्लेटें जिनका क्षेत्रफल 20 मिलियन वर्ग km² से अधिक हैं, उन्हें प्रधान प्लेटों के अंतर्गत रखा गया हैं। प्रधान प्लेटों की संख्या 7 हैं। 
  1. प्रशांत प्लेट (Pacific plate)
  2. यूरेशियन प्लेट (Eurasian Plate)
  3. अफ्रीकी प्लेट (African Plate)
  4. उत्तरी अमेरिकी प्लेट (North American Plate)
  5. दक्षिण अमेरिकी प्लेट (South American Plate)
  6. इंडो - ऑस्ट्रेलियन प्लेट (Indo - Australian Plate)
  7. अंटार्कटिक प्लेट (Antarctic Plate)

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विवर्तनिक प्लेटें

B. गौण प्लेटें/छोटी प्लेटें (Minor Plates)

वे प्लेटें जिनका क्षेत्रफल 1 मिलियन वर्ग km² से 20 मिलियन वर्ग km² के बीच हैं, उन्हें गौण प्लेटों के अंतर्गत रखा गया हैं। इनकी संख्या कई हैं, कुछ मुख्य गौण प्लेटें निम्नलिखित हैं -
  1. जुआन डी फूका 
  2. कोकोस 
  3. नज्का 
  4. स्कोशिया 
  5. कैरेबियन 
  6. अरब प्लेट 
  7. फिलीपींस प्लेट 
  8. जापान प्लेट 


C. माइक्रो प्लेटें (Micro Plates)

इसके अंतर्गत उन प्लेटों को रखा गया हैं जिनका क्षेत्रफल 1 मिलियन वर्ग km² से कम है। 
  1. एड्रियाटिक प्लेट (Ariatic Plate)
  2. मालपेलो प्लेट (Malpelo Plate)
  3. मारियाना प्लेट (Mariana Plate)

2. प्रकृति (Nature) के आधार पर 

प्रकृति के आधार पर विवर्तनिक प्लेटें 3 प्रकार की होती हैं -

(i) महासागरीय प्लेटें (Oceanic Plates) 
  • ऐसी प्लेट जिस पर महासागरीय या सागरीय भू-पृष्ठ स्थित होते है, उसे महासागरीय प्लेट कहते है।
  • ये प्लेटें "बेसाल्ट" की बनी होती है। 
  • Example: प्रशांत महासागरीय प्लेट, कोकोज प्लेट, नज्का प्लेट, फिलीपींस प्लेट, जापान सागर प्लेट आदि। 
 

(ii) महाद्वीपीय प्लेटें (Continental Plates)
  • ऐसी प्लेटें जिस पर महाद्वीपीय भू-पृष्ठ स्थित होती हैं, महाद्वीपीय प्लेटें कहलाती हैं।  
  • ये "ग्रेनाइट" की बनी होती हैं। 
  • कोई भी प्रधान प्लेट पूर्णतः महाद्वीपीय प्लेट नहीं है। 
  • छोटी प्लेटों में केवल "अरब प्लेट" पूर्णतः महाद्वीपीय प्लेट है। 
  • महाद्वीपीय प्लेटों का घनत्व, महासागरीय प्लेटों से कम होता हैं किन्तु महाद्वीपीय प्लेटें, महासागरीय प्लेटों से अधिक मोटी होती हैं। 

(iii) महासागरीय-महाद्वीपीय प्लेटें (Oceanic-Continental Plates)
  • ऐसी प्लेट जिस पर महाद्वीपीय तथा महासागरीय दोनों भू-पृष्ठ स्थित होते है, उन्हें महाद्वीपीय-महासागरीय प्लेटें कहते हैं। 
  • प्रशांत महासागरीय प्लेट को छोड़कर शेष प्रधान प्लेटें महाद्वीपीय-महासागरीय प्लेटें हैं। 

विवर्तनिक प्लेटों में गतियों के कारण 

स्थलमंडल (Lithosphere) के नीचे प्लास्टिक अवस्था वाला दुर्बलतामंडल है तथा स्थलमंडल, दुर्बलतामंडल पर उत्प्लावित हैं। स्थलमंडल अनियमित आकर के वृहद खण्डों में विभाजित है, जिन्हें विवर्तनिक प्लेटें कहा जाता हैं। ये प्लेटें भी दुर्बलतामंडल पर एक दृढ़ इकाई के रूप में चलायमान हैं। इन प्लेटों की गतियों के निम्नलिखित कारण हैं - 


विवर्तनिक प्लेटों की  गतियों के प्रकार - Types Of Plate Tectonics Movement In Hindi

विवर्तनिक प्लेटों में 3 प्रकार की गति होती हैं - 
  1. अभिसारी प्लेट किनारा (Convergent Plate Margin)
  2. अपसारी प्लेट किनारा (Divergent Plate Margin)
  3. संरक्षी प्लेट किनारा (Conservative Plate Margin)

1. अभिसारी प्लेट किनारा (Convergent Plate Margin)


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अभिसारी प्लेट किनारा (Convergent Plate Margin)



इस प्लेट किनारे के अंतर्गत दो प्लेटें एक-दूसरे की ओर गति करते हुए आपस में टकराती हैं तथा अधिक घनत्व और अधिक वेग वाली प्लेट, दूसरी प्लेट के नीचे प्रवेश कर जाती हैं, इस प्रक्रिया को क्षेपण / अधोगमन (Subduction) कहा जाता है। 


प्लेट का क्षेपित भाग दुर्बलतामंडल में प्रवेश कर पिघलने लगता हैं अतः प्लेट के एक भाग के नष्ट हो जाने के कारण इस प्लेट किनारे को "विनाशात्मक प्लेट किनारा (Destructive Plate Margin)" भी कहते हैं। इस प्लेट किनारे में निम्नलिखित 3 स्थितियाँ हो सकती हैं - 

  • महासागरीय तथा महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण 
  • महासागरीय - महासागरीय प्लेट अभिसरण 
  • महाद्वीपीय - महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण 


A. महासागरीय तथा महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण - (Oceanic-Continental Plate Convergence) 

इस प्रकार के प्लेट अभिसरण में अधिक घनत्व वाली बेसाल्ट निर्मित महासागरीय प्लेट कम घनत्व वाली ग्रेनाइट निर्मित महाद्वीपीय प्लेट में क्षेपित होती है। महासागरीय प्लेट का क्षेपण 30° से 45° के कोण पर होता है, क्षेपण के क्षेत्र में महासागरीय गर्त (Oceanic Trench) का निर्माण व महाद्वीपों के किनारे की चट्टानों के वलन से महाद्वीपीय प्लेट किनारे पर 'वलित पर्वतों' का निर्माण होता हैं। 


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महासागरीय तथा महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण


प्लेट का क्षेपित भाग ढालयुक्त होता हैं जहाँ विभिन्न गहराइयों वाले भूकंपमूलों के सहारे तीव्र भूकम्पों की उत्पत्ति होती हैं, इस ढालयुक्त क्षेत्र को "वदाती - बेनिऑफ जोन (Wadati-Benioff Zone)" कहा जाता है। 



दुर्बलतामंडल में प्लेट का क्षेपित भाग गहराई में प्रवेश करता है तथा उच्च तापमान के अधीन बेसाल्ट निर्मित महासागरीय प्लेट के पिघलने से एंडेसाइट लावा ज्वालामुखी उदगार में महाद्वीपीय भू-पृष्ठ पर वलित पर्वतों के सहारे उद्गारित होता हैं। 



इस प्रकार ऐसे सीमांत स्थल वलित पर्वत तथा महासागरीय गर्त निर्माण स्थल के साथ-साथ ज्वालामुखी और भूकंप के भी क्षेत्र होते हैं। 

 

उदाहरण :- 

a. नज्का महासागरीय प्लेट का दक्षिण अमेरिकी प्लेट से अभिसरण। इस अभिसरण से निम्नलिखित भू-आकृतियों का निर्माण हुआ हैं -

  • पेरू - चिली गर्त का निर्माण             
  • एंडीज पर्वत का निर्माण 
  • कई सक्रिय ज्वालामुखी - कोटोपैक्सी, ओजोस-डेलसेलेडो आदि। 


b. जुआन-डी-फूका महासागरीय प्लेट के उत्तरी अमेरिकी प्लेट से टकराने के कारण "कास्केड पर्वत श्रेणी" का निर्माण हुआ हैं।


c. प्रशांत महासागरीय प्लेट व उत्तरी अमेरिकी प्लेट के महाद्वीपीय भाग के टकराने से "रॉकी पर्वत" का निर्माण हुआ हैं। 


 ध्यान रखने योग्य बात यह हैं की महासागर के नीचे लगभग 3000 मीटर की गहराई तक महाद्वीपों के भाग को महाद्वीपीय क्षेत्र में रखा जाता हैं अर्थात वहाँ तक महाद्वीपीय प्लेट का विस्तार होता हैं। 3000 मीटर के बाद महासागरीय प्लेट शुरू होती हैं और यही प्लेटों की टक्कर होती हैं। 

 

B. महासागरीय - महासागरीय प्लेट अभिसरण - (Oceanic-Oceanic Plate Convergence)

इस प्रकार के प्लेट अभिसरण में दो महासागरीय प्लेटें एक-दूसरे की ओर गति करती हैं और आपस में टकराने के बाद अधिक घनत्व व अधिक वेग वाली प्लेट का क्षेपण होता हैं। तटों से दूर महासागरीय भाग में क्षेपण क्षेत्र में महासागरीय गर्त निर्मित होती हैं तथा अवसादों का वलन होता हैं। बेनिऑफ जोन के सहारे भूकम्पों की उत्पत्ति होती हैं। प्लेट के क्षेपित भाग के पिघलने से ज्वालामुखी उद्गार होते हैं और "द्वीपीय चाप" तुल्य पर्वतों का निर्माण होता हैं। 


Oceanic-Oceanic Plate Convergence
महासागरीय - महासागरीय प्लेट अभिसरण




(द्वीपीय चाप (Island Arc) - जब द्वीप, एक लंबी वक्राकार श्रृंखला/कतार में स्थित हो तो उसे द्वीपीय चाप कहते हैं।)

  
उदाहरण :- 
  • "जापान द्वीप समूहों" का निर्माण प्रशांत महासागरीय प्लेट, यूरेशियन प्लेट और फिलीपींस प्लेट के अभिसरण हैं। 
  • फिलीपींस तथा इंडोनेशिया द्वीप समूहों, कैरेबियन द्वीप समूहों आदि का निर्माण भी महासागरीय - महासागरीय प्लेट अभिसरण से ही हुआ हैं। इनके निर्माण की प्रक्रिया को जानने के लिए आप इस लेख को पढ़ सकते हैं - जापान, फिलीपींस तथा इंडोनेशिया द्वीप समूहों के निर्माण की प्रक्रिया

C. महाद्वीपीय - महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण - (Continental - Continental Plate Convergence)

इसके अंतर्गत दो महाद्वीपीय प्लेटें एक-दूसरे की ओर संचरण करते हुए टकराती हैं। सामान्यतः प्लेटों के टकराने से इनके मध्य उपस्थित सागरीय भाग बंद हो जाता हैं तथा दोनों प्लेटें संलयित (Fuse) होकर विस्तृत भूखण्ड का निर्माण करती हैं। इस प्लेट किनारे में महासागरीय भाग के अवसादों के वलन से ऊंचे वलित पर्वतों का निर्माण होता हैं तथा भूकम्पीय दशाएँ निर्मित होती हैं। वह क्षेत्र जहाँ दोनों प्लेटें संलयित होती है, वह क्षेत्र "सीवन क्षेत्र (Suture Zone)" कहलाता हैं। 

अपवादस्वरूप कभी-कभी अधिक वेग वाली प्लेट का क्षेपण हो सकता हैं। 

Continental - Continental Plate Convergence
महाद्वीपीय - महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण


उदाहरण :- 

भारतीय प्लेट/इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट तथा यूरेशियाई प्लेट का अभिसरण इसका महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। भारतीय प्लेट और यूरेशियाई प्लेट के अभिसरण से  इनके मध्य उपस्थित "टेथिस सागर" के शैल मलबों के वलन से हिमालय की उत्पत्ति हुई। वह क्षेत्र जहाँ भारतीय प्लेट, यूरेशियाई प्लेट से टकराई वहाँ "इंडस सांगयो शचर जोन (ITSZ)" नामक संरचना प्राप्त होती हैं। 

इंडस सांगयो शचर जोन
इंडस - सांगयो शचर जोन 


भारतीय प्लेट अधिक वेग के कारण यूरेशियाई प्लेट में क्षेपित हुई हैं किन्तु दोनों प्लेटों के घनत्व में अधिक अंतर न होने के कारण भारतीय प्लेट सीमित रूप में ही क्षेपित हुई हैं, जिससे "Crystal Doubling (भू-पृष्ठ दोहरीकरण)" की क्रिया घटित हुई हैं। 


(Crystal Doubling का अर्थ है जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे आंशिक रूप में क्षेपित हो अर्थात प्लेटें एक-दूसरे के ऊपर स्थापित हो जाएँ।)


भारतीय प्लेट का यूरेशियाई प्लेट में आंशिक क्षेपण हुआ हैं, जिस कारण क्षेपित भाग मंद गति से पिघल रहा हैं तथा उत्पन्न मैग्मा इतना शक्तिशाली नहीं हैं की हिमालय को तोड़कर उद्गारित हो सके। अतः हिमालय ज्वालामुखी मुक्त क्षेत्र हैं। 


2. अपसारी प्लेट किनारा (Divergent Plate Margin)

जब संवहन धाराओं/अपसारी संवहन धाराओं  के अधीन दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशाओं में गति करती हैं तब अपसारी प्लेट किनारे की स्थिति निर्मित होती हैं।  


Divergent Plate Margin
अपसारी प्लेट किनारा (Divergent Plate Margin)



इससे दुर्बलतामंडल पर आरोपित दवाब, क्षेत्र विशेष में कम हो जाता हैं तथा प्लेटों के अपसरण से निर्मित भ्रंश के सहारे दुर्बलतामंडल में पेरीडोटाइट चट्टानों के आंशिक द्रवण से उत्पन्न बेसाल्टिक मैग्मा भू-पृष्ठ की नई परत का निर्माण करता हैं अतः इसे "रचनात्मक प्लेट किनारा" भी कहते हैं।

 

रचनात्मक प्लेट किनारे के अंतर्गत भी ज्वालामुखी व भूकंप घटित होते है यद्यपि ज्वालामुखी उद्गार अधिक विस्फोटक नहीं होते हैं तथा भूकम्पों की तीव्रता भी कम होती हैं।   

 


अपसारी प्लेट किनारे की निम्नलिखित 2 स्थितियाँ हो सकती हैं - 

  • महाद्वीपीय भाग में अपसारी प्लेट किनारा 
  • महासागरीय भाग में अपसारी प्लेट किनारा 


A. महाद्वीपीय भाग में अपसारी प्लेट किनारा 

महाद्वीपीय भाग के नीचे संवहन धारा के अंतर्गत ऊपर उठता मैग्मा, भू-पृष्ठ से टकराकर क्षैतिज गति के अधीन तनाव बल आरोपित करता है, इसके अतिरिक्त महाद्वीपीय भाग 'गुम्बदीकरण (Doming) तथा 'अंतरप्लेट विरलन (Plate Thinning)' की प्रक्रिया से गुजरते है और अन्ततः भ्रंश के सहारे बेसाल्टिक लावा का उद्गार होता हैं, इस प्रकार के उद्गार "दरारी उद्गार (Fissure Eruption)" कहलाते हैं। 

महाद्वीपीय भाग में अपसारी प्लेट किनारा
महाद्वीपीय भाग में अपसारी प्लेट किनारा 


यह शांत प्रकार का उद्गार होता है तथा इसमें कम तीव्रता वाले भूकंप आते हैं। बेसाल्टिक लावा, अश्यान लावा (पतला लावा) होता हैं अतः दूर तक फैलकर लावा मैदान व लावा पठार का निर्माण करता है। भारत में दक्कन का पठार, USA में कोलंबिया - स्नेक पठार ऐसे ही लावा पठार हैं। 



इस प्लेट किनारे के अंतर्गत भ्रंश घाटियों (Rift Valley) का भी निर्माण होता हैं। अफ्रीका की महान भू-भ्रंश घाटी अंतःमहाद्वीपीय भ्रंशन का ही उदहारण है जो की लेबनान से मोजाम्बिक तक विस्तृत है। 


B. महासागरीय भाग में अपसारी प्लेट किनारा

सागर नितल पर अपसारी प्लेट किनारे के अंतर्गत मध्यमहासागरीय कटक का निर्माण होता हैं, जिसके सहारे ज्वालामुखी व भूकम्पीय गतिविधियाँ पाई जाती हैं तथा सागर नितल प्रसरण होता हैं। 

महासागरीय भाग में अपसारी प्लेट किनारा
महासागरीय भाग में अपसारी प्लेट किनारा


मध्य अटलांटिक कटक इसका सर्वप्रमुख उदाहरण है जो पृथ्वी पर सबसे लंबी पर्वत श्रृंखला है, यह लगभग 16000 km में विस्तारित हैं। 


3. संरक्षी प्लेट किनारा - (Conservative Plate Margin)

इस प्लेट किनारे के अंतर्गत 2 प्लेटों के किनारे आपस में घर्षित होते हुए गति करते हैं। इसमें न तो प्लेट के किसी भाग का विनाश होता हैं और न ही नवीन भू-पृष्ठ का निर्माण, अतः इसे "संरक्षी प्लेट किनारा" कहते हैं। इसमें प्लेटें एक ही दिशा में या विपरीत दिशा में गति कर सकती हैं। 

Conservative Plate Margin

इस प्लेट किनारे के अंतर्गत ज्वालामुखी उद्गार नहीं पाए जाते हैं किन्तु उच्च तीव्रता वाले भूकंप संभावित होते हैं। इसका प्रमुख उदाहरण "सैन एंड्रियास (USA के कैलिफोर्निया में) हैं जिसके सहारे उत्तरी अमेरिकी प्लेट और प्रशांत महासागरीय प्लेट घर्षित होती हैं। 


प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की आलोचना 

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा विभिन्न भू-आकृतियों के निर्माण तथा विभिन्न भू-गर्भिक क्रियाओं (ज्वालमुखी, भूकंप आदि) को समझने और उनकी व्याख्या करने में महत्वपूर्ण सफलताएँ मिली हैं। इसके बावजूद निम्नलिखित आधार पर इस सिद्धांत की आलोचना  की जाती हैं - 

  1. प्लेटों की संख्या के सन्दर्भ में अनिश्चितता का होना। 
  2. एक ही प्लेट के विभिन्न भागों की गतियों में अंतर तथा गतियों की दिशाओं में भी कभी-कभी भिन्नता होती हैं।
  3. प्लेटों की गतियों के लिए मुख्यतः संवहन धाराओं को उत्तरदायी माना जाता है किन्तु संवहन धाराओं की क्रियाविधि को लेकर विद्वानों में गहरे मतभेद हैं। संवहन धाराओं के उत्पत्ति क्षेत्र, संवहन धाराओं की तीव्रता में होने वाले परिवर्तनों की संतोषजनक व्याख्या नहीं की जा सकी है। 
  4. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार प्लेटों के विनाश के समतुल्य निर्माण की प्रक्रिया संपन्न होती हैं, किन्तु कई स्थानों पर यह संतुलन प्राप्त नहीं होता हैं। 
  5. ऐसे स्थान जहाँ तीन प्लेटें अंतर्क्रिया करती हैं उन्हें "त्रिसंधि स्थल (Triple Junction)" कहा जाता हैं। इन स्थलों में होने वाली घटनाओं को अभी तक पूरी तरह समझा नहीं जा सका हैं। 


इन सभी सीमाओं के बावजूद यह एक क्रान्तिकारी सिद्धांत है जो प्लेटों की गतियों के द्वारा भू-पृष्ठ के गत्यात्मक स्वरूप की व्याख्या करने में अन्य सिद्धांतों की तुलना में अधिक सक्षम सिद्ध हुआ है। 


FAQs

1. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत से आप क्या समझते हैं?

Ans. वह सिद्धांत जो विवर्तनिक प्लेटों के संचरण से उत्पन्न भू-लक्षणों की व्याख्या करता है, उसे "प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत" कहा जाता है।  

2. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के जनक कौन हैं?

Ans. सर्वप्रथम "ट्रूजो विल्सन" महोदय ने प्लेट शब्द दिया। "हैरी हेस" महोदय को प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की प्रारंभिक रुपरेखा देने का श्रेय दिया जाता है। इस सिद्धांत की विशद व्याख्या मॉर्गन, पार्कर और मैकेंजी जैसे विद्वानों द्वारा दी गई। 

3. विवर्तनिक प्लेटों का निर्माण कैसे हुआ?

Ans. पृथ्वी के निर्माण के समय पृथ्वी अत्यधिक गर्म थी परन्तु समय के साथ इसका ऊपरी भाग ठंडा होता गया और कठोर चट्टानों में परिवर्तित हो गया किन्तु आंतरिक भाग में ऊष्मा अभी भी बाकी थी, ऊपरी भाग के कठोर हो जाने से आंतरिक भाग की ऊष्मा को निकलने के लिए स्थान नहीं मिला तो आंतरिक भाग में अधिक दबाव बनने लगा जिस कारण ऊपरी कठोर चट्टानों में दरारें पड़ी और वे अनियमित आकार के कई खण्डों में विभाजित हो गयी। 

4. सबसे बड़ी टेक्टोनिक प्लेट कौन-सी है? 

Ans. प्रशांत प्लेट 

5.  टेक्टोनिक प्लेटें कितनी हैं?

Ans. बड़ी टेक्टोनिक प्लेटों की संख्या 7 हैं तथा छोटी व माइक्रो प्लेटों की संख्या कई हैं। 


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मैं आशा करता हूँ आपको यह लेख पसंद आया होगा। हमने यहाँ Plate Tectonic Theory के सभी पक्षों पर विस्तृत चर्चा की हैं और उन्हें आसान भाषा में तथा Diagrams के माध्यम से समझाने का प्रयास किया हैं। फिर भी यदि आपको कोई भी doubt हैं तो आप हमें Comment कर के पूछ सकते हैं, हम जल्द से जल्द आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेंगे। धन्यवाद 🙂 


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