आज के इस लेख में हम मध्यकालीन यूरोप के इतिहास (History Of Medieval Europe In Hindi) की तीन बड़ी व्यवस्थाओं सामंतवाद (Feudalism), सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था (Universal Church System) और पवित्र रोमन साम्राज्य (Holy Roman Empire) के बारे में विस्तार से जानेंगे। तो चलिए जानते है की सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था, पवित्र रोमन साम्राज्य और Samantvad Kya Hai?
पिछले लेख में हमने रोमन साम्राज्य के बारे में जाना था और इस लेख में हम रोमन साम्राज्य के विघटन के पश्चात के इतिहास के बारे में जानेंगे। रोमन साम्राज्य के इतिहास के बारे में पढ़ने के लिए इस लेख पर क्लिक करें - रोमन साम्राज्य का इतिहास
पृष्ठभूमि
रोमन साम्राज्य (Roman Empire) के पूर्वी रोमन साम्राज्य और पश्चिमी रोमन साम्राज्य में विभाजित होने के पश्चात लगभग तीसरी सदी से पश्चिमी रोमन साम्राज्य पर अर्द्ध बर्बर जर्मन जनजातियों के लगातार आक्रमण होने लगे थे जिस कारण पश्चिमी रोमन साम्राज्य का व्यापार ठप हो गया और उसकी अर्थव्यवस्था बहुत कमजोर हो गयी। अंत में लगभग 500 ईस्वी तक आकर पश्चिमी रोमन साम्राज्य का पतन हो गया और उस पर जर्मन जनजातियों का अधिकार हो गया। वहीं पूर्वी रोमन साम्राज्य अभी तक अस्तित्व में था।
Samantvad Kya Hai? - What Is Feudalism In Hindi?
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के विघटन के बाद वहां के अलग-अलग क्षेत्रों में जर्मन आक्रमणकारी समूह आकर बस गए थे। हर समूह का एक मुखिया होता था। हर जनजातीय समूह के मुखियाओं ने अपना एक विशेष प्रभाव क्षेत्र बना लिया था, जिस कारण इनमें और उस क्षेत्र में पहले से स्थापित रोमन कुलीनों के बीच परस्पर संघर्ष होने लगा। इस संघर्ष के कारण इनके बीच एक पिरामिडनुमा ढाँचा बन गया और इनके मध्य सम्प्रभुता का विभाजन हो गया, इस व्यवस्था को ही "सामंतवाद" कहा गया।
सरल शब्दों में कहे तो, पश्चिमी रोमन साम्राज्य के विघटन के बाद यूरोप में जो व्यवस्था कायम हुई, उसे सामंतवाद के नाम से जाना गया। यह व्यवस्था सम्पूर्ण यूरोप में फैली हुई थी।
Samantvad Kya Hai |
सामंती व्यवस्था में केंद्रीय शक्ति का ह्रास हो जाता हैं और शासन की वास्तविक शक्ति मध्यस्थों/ बिचौलियों के पास आ जाती हैं अर्थात राजा नाममात्र का प्रधान रह जाता है।
यूरोपीय सामंती व्यवस्था में सबसे ऊपर राजा होता था और उसके नीचे लॉर्ड (Lord), लॉर्ड के नीचे बैरन (Beran) तथा बैरन के नीचे नाईट (Knight)। ऊपर के सामंत, नीचे के सामंतों की प्रभुसत्ता को स्वीकार करते थे और उन्हें जागीर प्रदान करते थे। इसके बदले में नीचे के सामंत ऊपर के सामंतों को सैन्य व अन्य सेवाएं प्रदान करते थे। राजा के पास न तो अपनी सेना थी और न ही अपनी नौकरशाही, वह पूरी तरह से लॉर्डों पर निर्भर था।
सांमतवाद का आर्थिक पक्ष
रोमन साम्राज्य के पतन के साथ ही विदेशी व्यापार का भी पतन हो गया और यूरोप की अर्थव्यवस्था का स्वरूप क्षेत्रीय हो गया। सामंतवाद का एक लक्षण यह हैं की सामंती अर्थव्यवस्था में ''कृषि'' का महत्व बढ़ जाता हैं। इसके साथ ही सामंतवाद का एक अन्य लक्षण ''कृषि दास (Serfdom)'' भी हैं। सामंतों द्वारा किसानों को एक भूमि से बांध दिया जाता था और वे उसे खाली नहीं कर सकते थे, इन्हें ही कृषि दास कहा जाता था। लॉर्ड के किले के भीतर एक बहुत बड़ी भूमि होती थी, जिसके एक छोटे से भाग पर ''कृषि दासों'' को बसाया जाता था जहाँ पर वे रहते और खुद के लिए अनाज उपजाते थे। इसके बदले में उन्हें लॉर्ड की बड़ी-बड़ी भूमि, जिसे "डीमेंस (Demesne)" कहा जाता था में बेगार करनी पड़ती थी। डीमेंस से होने वाली सारी कमाई लॉर्ड के खजाने में जाती थी।
सामंतवाद परंपरावाद, पितृसत्तावाद, अभिजात्यवाद आदि पद्धतियों से ग्रस्त था और वह व्यक्ति की स्वतंत्रता को नहीं मानता था। सामंतवाद के विघटन के बिना सामाजिक, प्रशासनिक, आर्थिक, राजनीतिक क्षेत्रों में आगे के परिवर्तन संभव नहीं थे।
रोमन कैथोलिक चर्च व्यवस्था/ सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था - Roman Catholic Church System In Hindi
ईसा मसीह (4 BC-33 AD), ईसाई धर्म के संस्थापक थे। ईसा मसीह की मृत्यु के समय उनके धर्म को कोई अलग पंथ नहीं माना गया था, परन्तु आगे चलकर उनके अनुयायियों ने उन्हें एक दैविक मुक्तिदाता के रूप में देखा, जो लोगों की पीड़ा को दूर करने और स्वर्ग का रास्ता दिखाने आए थे, यही से ईसाई पंथ का उद्भव हुआ।
4 सदी में रोमन शासक कान्सटेंटाइन के काल में ईसाई धर्म, रोमन साम्राज्य के महत्वपूर्ण पंथ के रूप में स्थापित हुआ, आगे 392 AD में थियोडोसियान I ने ईसाई धर्म को रोमन साम्राज्य का राजधर्म घोषित कर दिया।
शुरुआत में ईसाई धर्म सरल एवं आडंबर रहित धार्मिक पंथ था, जिसकी ईसा मसीह ने परिकल्पना की थी। किन्तु 8वीं सदी तक रोमन कैथोलिक धर्म (ईसाई धर्म) का स्वरूप काफी बदल गया। पीटर लोम्बार्ड एवं टॉमस एक्विनाश जैसे ईसाई संतों ने ईसाइयों के लिए पादरियों का निर्देशन और सात संस्कारों का पालन करना आवश्यक घोषित कर दिया। यहीं से ईसाई धर्म में आडम्बर आ गया और फिर मध्यकालीन चर्च व्यवस्था का विकास हुआ, जिसने आगे चलकर सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था का रूप ले लिया।
सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था का आशय है की चर्च का मुख्यालय रोम में स्थापित था और इसकी शाखाएँ पूरे यूरोप में फैली हुई थी। क्षेत्रीय चर्च लोगों से टाईथ नामक कर वसूलता था और इस कर से अपना खर्चा पूरा कर बाकी की रकम मुख्यालय भेज देता था।
यूरोपीय व्यक्ति के शैक्षणिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन पर चर्च का नियंत्रण था। चर्च का विचार रूढ़िवादी तर्कशास्त्र पर आधारित था जो यह स्थापित करने का प्रयास कर रहा था की 'मनन और चिंतन ही ज्ञान प्राप्त करने का साधन हैं'। रोमन कैथोलिक धार्मिक दर्शन में मानववाद और व्यक्तिवाद की कोई जगह नहीं थी, इसने मानव को एक पापी प्राणी के रूप में प्रदर्शित किया। रोमन कैथोलिक चर्च का अपना न्यायाधिकरण भी होता था, अगर कोई भी चर्च के खिलाफ बोलता तो यह उसके खिलाफ धार्मिक आदेश जारी करता था और उसे मृत्युदंड तक दिया जा सकता था।
इस प्रकार हम देखते है की यूरोपीय राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि परिवर्तनों में सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था भी एक बड़ी बाधा थी।
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पवित्र रोमन साम्राज्य - Holy Roman Empire In Hindi
Holy Roman Empire In Hindi |
जैसे की हमने पहले बताया की पश्चिमी रोमन साम्राज्य पर उत्तरी जर्मन जनजातियों के लगातार आक्रमण के कारण उसका पतन हो गया और फिर अलग-अलग जनजातीय समूह अलग-अलग क्षेत्रों में बस गए। इन्हीं जनजातीय समूहों में से एक थी "फ्रैंको जनजाति" जिसने गॉल क्षेत्र (फ्रांस) पर कब्जा कर लिया था। इसी के एक वंश, कैरोलिंजियन वंश के चार्ल्स मार्टिन ने टूर्स की लड़ाई में इस्लामी शक्ति को पराजित किया, जिससे इस वंश की प्रतिष्ठा काफी अधिक बढ़ गई। आगे चलकर इसी वंश के एक शासक शार्लमां को 800 ई. में रोम के पोप ने पवित्र रोमन सम्राट घोषित किया, जिस कारण शार्लमां का साम्राज्य पवित्र रोमन साम्राज्य के नाम से जाना जाने लगा।
अब पवित्र रोमन साम्राज्य रोमन कैथोलिक चर्च का रक्षक बन गया और आगे इसने क्रूसेड ( धर्मयुद्ध) में अपनी भूमिका निभाई। कालांतर में पवित्र रोमन सम्राट का पद प्रतिष्ठाबोधक हो गया और आगे स्पेन से मूरो (इस्लामी जनजाति) को खदेड़ने के कारण "हैब्सवर्ग वंश" के शासकों को यह उपाधि मिलने लगी।
हैब्सवर्ग साम्राज्य की एक शाखा स्पेन व दूसरी शाखा ऑस्ट्रिया में थी। स्पेन शाखा लगभग 1700 ई. में समाप्त हो गई थी परन्तु ऑस्ट्रिया का हैब्सवर्ग साम्राज्य प्रथम विश्व युद्ध तक रहा था।
मध्यकालीन यूरोप के प्रमुख लक्षण
- मध्यकालीन यूरोप के राजनीतिक क्षेत्र में सामंतवाद व्याप्त था।
- आर्थिक क्षेत्र में कृषि दासता (Serfdom) तथा गिल्ड प्रणाली (कारीगर द्वारा संगठित होकर उत्पादन करना)
- सामाजिक क्षेत्र में वंश परंपरा एवं रक्त संबंध का महत्व
- धर्म के क्षेत्र में सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था तथा पवित्र रोमन साम्राज्य
- दर्शन के क्षेत्र में में रूढ़िवादी तर्कशास्त्र
- साहित्य के क्षेत्र में वीरगाथापरक रचनाएँ
- कला के क्षेत्र में गोथिक स्थापत्य।
सांमतवाद का पतन
मध्यकाल के उत्तरार्ध में यूरोप में कई परिवर्तन हुए ये परिवर्तन आर्थिक, सांस्कृतिक, साहित्य, भाषा, कला, विज्ञान आदि क्षेत्रों में हुए जिस कारण इस काल को हम "पुनर्जागरण काल" के नाम से जानते हैं। आगे व्यापारिक क्रांति के कारण एक नये वर्ग, मध्यवर्ग का उदय हुआ जिसने आगे के परिवर्तनों को संभव बनाया। व्यापारिक क्रांति के कारण यूरोप की अर्थव्यवस्था, क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था से वैश्विक अर्थव्यवस्था में रूपांतरित हो गई तथा इसी व्यापारिक क्रांति का फायदा उठाकर यूरोप के महत्वाकांक्षी शासकों ने अपने आप को सशक्त कर लिया और इसी के साथ सामंतवाद का पतन हो गया।
FAQs
Ans. सामंतवाद एक ऐसी व्यवस्था हैं जिसमें केंद्रीय शक्ति का ह्रास हो जाता हैं और शासन की वास्तविक शक्ति मध्यस्थ/बिचोलियो के पास आ जाती हैं।
- अर्थव्यवस्था का स्वरूप क्षेत्रीय
- कृषि दास
- अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि
- परंपरावाद
- अभिजात्यवाद
- पितृसत्तावाद
Ans. लॉर्डों के किलों के भीतर स्थित वह भूमि जिस पर कृषि दासों से कृषि के रूप बेगार (बिना वेतन मजदूरी) करवाई जाती थी।
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