पृष्ठभूमि
16वीं तथा 17वीं शताब्दी में विश्व करवट ले रहा था। आधुनिक यूरोप के वैचारिक विकास का पहला पड़ाव पुनर्जागरण था तथा प्रबोधन (Enlightenment) दूसरा पड़ाव। प्रबोधन की पृष्ठभूमि सशक्त हो रहे मध्यवर्ग तथा 17वीं सदी की वैज्ञानिक एवं तकनीकी क्रांति ने तैयार की थी। पुनर्जागरण के बाद वाणिज्यवाद के काल में महत्वाकांक्षी राजतंत्र के द्वारा वाणिज्य-व्यापार एवं अर्थव्यवस्था के संचालन में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप किया गया था, किन्तु नए उदित मध्य वर्ग ने उसे सहन किया, क्योंकि मध्यवर्ग में अभी शक्ति एवं विश्वास नहीं आया था तथा उसे राजतंत्र के सहयोग की जरूरत थी। किन्तु, 18वीं सदी में मध्यवर्ग में शक्ति तथा विश्वास आ गया था। मध्यवर्ग ने प्रबोधन का सामाजिक आधार तैयार किया। कुल मिलाकर कहें तो प्रबोधन मध्यवर्गीय विचारधारा थी।
प्रबोधन का अर्थ - Enlightenment Meaning In Hindi
प्रबोधन का शाब्दिक अर्थ हैं - एक लम्बे काल के अंधकार के बाद ज्ञान का प्रकाश। यहाँ अंधकार से तात्पर्य, अज्ञान और अंधविश्वास से हैं तथा प्रकाश से तात्पर्य ज्ञान से हैं।
"पुनर्जागरण कालीन तर्क, वैज्ञानिक खोजों एवं मानववादी प्रवृति ने 18वीं सदी में जो परिपक़्वता प्राप्त कर ली उसे ही प्रबोधन के नाम से जाना जाता हैं"। यह विचारधारा 1680 के दशक में ब्रिटेन से प्रारंभ होकर संपूर्ण यूरोप में फैल गई।
डेकार्ट, स्पिनोजा एवं हॉब्स को इस विचारधारा का जनक माना जाता हैं, इन्होंने आधुनिक तर्कवाद को प्रोत्साहन दिया। किंतु व्यवहार में न्यूटन और जॉन लॉक इस विचारधारा के जनक हैं।
प्रबोधन के चिंतन ने वैज्ञानिक खोजों को प्रोत्साहित किया। प्रबोधन के चिंतको ने जिस नई सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था की कामना की उसमें वैज्ञानिक ज्ञान की भूमिका सर्वप्रमुख थी। उन्हें पूरा विश्वास था की मनुष्य ऐसी दुनिया बना सकता हैं जिसमे स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व मौजूद हो। इस तरह प्रबोधन के चिन्तन ने एक तरफ वैज्ञानिक तथा औधोगिक क्रांति का आधार तैयार किया तो दूसरी तरफ स्वतंत्रता, समानता एवं मानवाधिकारों की बात कर निरंकुश राजतंत्र पर चोट की इससे उदारवादी सरकारों के गठन को प्रोत्साहन मिला।
प्रबोधन की राजनीतिक विचारधारा
जैसे की हमने पहले बात की, की प्रबोधन एक मध्यवर्गीय विचारधारा थी। मध्यवर्ग ने राजतंत्र की निरंकुशता को अस्वीकार कर दिया और सीमित अथवा संवैधानिक राजतंत्र की माँग की। सीमित या संवैधानिक राजतंत्र का अर्थ है की राजा को एक निर्वाचित विधानमंडल की सहायता से शासन करना चाहिए, किन्तु यह विधानमंडल सीमित मताधिकार के आधार पर निर्वाचित हो न की सार्वभौमिक मताधिकार पर, इसका कारण था की मध्यवर्ग नहीं चाहता था की निम्न वर्ग सत्ता तक पहुंचे क्योंकि वह प्रजातंत्र से भयभीत था।
प्रबोधन की सामाजिक विचारधारा
प्रबोधनकालीन विचारकों का बल इस बात पर रहा था की व्यक्ति को राज्य के अधीन नहीं रहना चाहिए और न ही व्यक्ति पर राज्य का नियंत्रण रहना चाहिए अर्थात इन्होंने व्यक्तिवाद अथवा व्यक्ति की स्वतंत्रता पर बल दिया।
प्रबोधन की आर्थिक विचारधारा
प्रबोधन ने वाणिज्यवाद को अस्वीकार कर दिया और मुक्त अर्थव्यवस्था (Leissez Fair) की मांग उठाई। मुक्त अर्थव्यवस्था का सिद्धांत "एडम स्मिथ" ने दिया था। एडम स्मिथ के अनुसार, जिस प्रकार प्रकृति के नियम निश्चित हैं, उसी प्रकार बाजार के नियम भी निश्चित हैं। बाजार माँग और आपूर्ति के नियम पर चलता हैं। इसके अनुसार यदि किसी वस्तु की माँग अधिक होगी तो उसका मूल्य बढ़ जायेगा और यदि माँग कम है तो मूल्य भी कम हो जायेगा।
प्रबोधन की विशेषताएँ
प्रबोधन के चिंतकों ने ज्ञान को विज्ञान से जोड़ते हुए प्रयोग एवं परीक्षण पर बल दिया। मध्यकाल में यह अवधारणा प्रचलित थी की यह सृष्टि ईश्वर द्वारा निर्मित हैं अतः इसे मानव द्वारा नहीं समझा जा सकता अर्थात यह सृष्टि मानव की समझ से परे हैं। प्रबोधनकालीन चिंतकों ने इस अवधारणा का खंडन किया और इस बात पर बल दिया की प्रकृति की घटनाएँ वैज्ञानिक कारणों पर आधारित हैं अतः इसे जानने के लिए प्रयोग और परीक्षण आवश्यक हैं।
मध्यकाल में मानव को जन्म से पापी एवं विवेक रहित प्राणी माना जाता गया अतः उसे कोई महत्व नहीं दिया गया जबकि प्रबोधन के चिन्तकों ने स्पष्ट किया की मानव जन्म से अच्छा एवं विवेकशील हैं, किन्तु विकास के क्रम में वह धर्माधिकारियों के हाथों में पड़ कर स्वार्थी और ध्वस्त हो गया हैं। अब मानव स्वतंत्रता पर अधिक बल दिया जाने लगा।
प्रबोधन के चिंतको ने बताया की प्रकृति और मानव समाज की किसी घटना के लिए कोई कारण उत्तरदायी होता हैं और इन कारणों को जानकर हम प्रकृति की विनाशक गतिविधियों से मानव की सुरक्षा कर सकते हैं।
चिंतकों ने कहा की प्रकृति स्वतंत्र एवं सौंदर्य से परिपूर्ण है अतः मानव भी स्वतंत्र हैं।
देववाद से तात्पर्य हैं की मानव अपने धार्मिक आडंबर एवं कर्मकांड से मुक्त होकर कार्य करे। चिंतकों ने स्पष्ट किया की परमसत्ता ने एक बार इस सृष्टि के तत्वों का निर्माण कर दिया हैं किन्तु अब इस सृष्टि का संचालन मानव के हाथों में हैं।
प्रबोधन का प्रभाव
- मानवाधिकारों, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता पर बल देकर लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
- अमेरिका तथा फ्रांस की क्रांति पर प्रबोधन का प्रभाव पड़ा
- इससे यूरोप में मुक्त अर्थव्यवस्था की नीति को प्रोत्साहन मिला, जिसके फलस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा मिला।
- इसके प्रभावस्वरूप यूरोप में विज्ञान व तकनीकी का विकास हुआ।
- इसने सामाजिक सुधार को प्रोत्साहित किया।
प्रबोधनकालीन प्रमुख विचारक - Enlightenment Thinkers
1. मोंटेस्क्यू :-
» The Spirit Of Laws नामक पुस्तक लिखी।
» "शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत" दिया।
2. रूसो :-
» प्रकृति पर बल दिया
» राज्य की उत्पत्ति तथा सामान्य इच्छा का सिद्धांत दिया
» असमानता पर चोट की
3. वाल्तेयर :-
» तर्क के माध्यम से मानव स्वतंत्रता पर बल
» तर्क एवं विवेक पर बल दिया
4. इमैनुअल काण्ट :-
» राजनीतिक एवं बौद्धिक विचारों के विकास पर बल
» अच्छे आचरण पर बल दिया
5. दिदरो
6. जॉन लॉक
7. एडम स्मिथ
प्रबोधन की सीमाएँ
- इसके विचार में सरकार जनता के लिए होनी चाहिए, जनता के द्वारा नहीं अर्थात इसने संवैधानिक राजतंत्र की बात की, प्रजातंत्र की नहीं।
- इसके दृष्टिकोण पर पितृसत्तात्मक समाज (Patriarchy) का प्रभाव था।
- इसके तहत मानवाधिकारों एवं व्यक्ति स्वतंत्रता की समस्त अवधारणा केवल यूरोप के लिए थी, उपनिवेशों के लिए नहीं।
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भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण लेख:
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