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मिट्रो - मिस्र की सभ्यता | Mitro - Mishr Ki Sabhyta Hindi Story


मिट्रो - मिस्र की सभ्यता | Mitro - Mishr Ki Sabhyta  Hindi Story


“तेज हवा अचानक मंद पड़ जाए और फिर से तेज चलने लगे और फिर से मंद पड़ जाए तो यह मौसम की खुश मिजाजी नहीं, किसी अनहोनी का एहसास है"। जिस तरह धरा अपना रूप परिवर्तित करती रहती है उसी तरह सभ्यताएं, फिजाएं और चारों दिशाएं भी अपने आप को वक्त के साथ उसी के अनुकूल ढालती है। सभ्यताएं बनती हैं और उजड़ जाती हैं और वक्त के साथ किसी कोने में दफन हो जाती हैं पर कुछ सभ्यताएं वक्त को भी विवश कर देती हैं साथ चलने के लिए।







उन सभ्यताओं में से एक सभ्यता है “मिस्र” की, इसे खत्म तो कर दिया गया पर मिटा कोई ना सका जो आज भी जीवित है हमारे आस-पास यहीं कहीं। मिस्र की सभ्यता का निर्माण एक बहुत बड़े युद्ध और खून- खराबे के बीच हुआ था,नशेरों का विशाल समूह, भयानक, खूंखार कैलाथ अपनी नरभक्षी सेना का सम्राट था, उनके वंश का खून और स्वेदज दोनों ही काले रंग के थे, ये लोग लाल खून वाले प्राणी चाहे वह मनुष्य हो या कोई जंगली जीव उनसे उन्हें गाड़ी नफरत थी इन सबको मारकर उनका भोजन करते और हड्डियों से अपने तेज धार वाले हथियार बनाते। उनका साम्राज्य एक बहुत बड़े मरुस्थल को घेरे हुए थे जहां हरियाली का नामोनिशान भी नहीं था ,था तो बस कटीले और लंबे-लंबे आसमान को छूते हुए सम्राट के जैसे ही भयानकरूपी वृक्ष, कानून उनका उनसें से भी बड़ा था, सख्त और कठोर, उनके आदेशानुसार उनकी एक टोली शिकार पर भेजी जाती और यदि टोली खाली हाथ लौटी तो उस टोली को नियम अनुसार मारकर अपना ग्रास बनाते। उनके पास करोड़ों की तादात में सैनिक और सवारी जानवर थे उनका एक ही लक्ष्य था जहां भी जाते उस क्षेत्र को उस मरुस्थल का हिस्सा बनाना उसे हरियाली विहीन करना। वहां उनसे दूर कम से कम 600 किलोमीटर पूर्व में नीलक नदी बहती थी उस नदी के दक्षिण में एक साहसी योद्धा कबीलों का समूह रहता जिसका सरदार मिट्रो था।







मिट्रो आठों पहर अपने कबीले वालों के साथ रहता और सुख-दुख में उनका साथ देता उनका इलाका हरा-भरा और खुशहाल था वे लोग नीलक नदी की पूजा करते और अपनी समृद्धि की कामना करते थे, उधर उनसे दूर प्रिंस सहारा का भी एक बड़े मरुस्थल पर शासन था। सहारा बड़ा पराक्रमी वीर योद्धा था परंतु कैलाश से हमेशा ही हार नसीब होतीं थीं। सहारा की एक राजकुमारी थी जिसका नाम “शैलजा” था। जिसकी सुंदरता अद्वितीय थी जिसे देख चांद भी शर्माए।






हर सुबह एक नए अभियान पर निकलना कैलाथ की सक्रिय सोच थी आज सुबह की पहली किरण सहारा की ओर चली, राह में जितने भी कबीले आए उनको मार कर अपना ग्रास बनाया और आगे बढ़ते रहे, प्रिंस सहारा ने घोषणा करवाई यदि कोई कैलाथ को हराने में मेरी मदद करेगा तो मैं उससे अपनी बेटी की शादी करूंगा परंतु कोई आगे नहीं आया क्योंकि कोई भी इतना शक्तिशाली और ताकतवर नहीं था जो सम्राट कैलाथ से सामना कर सके और अपने प्रिंस सहारा की मदद कर सके, इस बात का पता जब कैलाथ को लगा तो उसने राजकुमारी को हासिल करने की और सहारा को मृत्युदंड देकर अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए युद्ध की तैयारी और जोरों से शुरू कर दी, समय निकलता जा रहा था दोनों और बदले की आंधी चल रही थी पर कैसे सहारा अपने राज्य को बचाए और कैलाथ से बदला ले। प्रिंस सहारा नित्य नई- नई योजना बनाकर परेशान था तो दूसरी और सम्राट कैलाथ नदी के समीप आ पहुंचा था अपनी विशाल जानवरीय सेना के साथ आगे बढ़ने को। 






मिट्रो का कबीला इस बात से भयभीत हो गया और उन्हें लगने लगा कि अब उनका अंत निकट है ये हमारा हमारी सभ्यता का सर्वनाश कर देंगे, कबीले बाले बहुत बहादुर थे उन्होंने सोच लिया और एक निर्णय लिया भले ही हमारी संख्या कम है हम आटे में नमक के बराबर भी नहीं है फिर भी हम ईट से ईट बजाएंगे। मौसम भी अपना मिजाज बदल रहा था बादलों की गड़गड़ाहट हो रही थी समीर भी चंडी बनकर बहने लगी फिर क्या था मूसलाधार बारिश होने लगी जो कि सम्राट कैलाथ के लिए चिंता का विषय थी क्योंकि जोरदार बरसात से नदी भी उफान लेकर बहने लगी कबीले वालों के लिए अब तो दोहरा संकट गहरा गया, उन्होंने पलायन करना हितकर समझा और अपने सरदार मिट्रो को प्रिंस सहारा के पास कैलाथ की सूचना देने को कहा पर मिट्रो कहां मानने वाला था वह कभी अपनें लोगों से दूर नहीं रहना चाहता और अपनी आखिरी सांस भी उनके साथ गुजारना चाहता था, पर कबीले वालों ने उसे समझाया कि हमारा अंत निश्चित है अपनी सभ्यता को बचाना चाहते हो तो तुमहे सहारा के पास उनका ये संदेश पहुंचाना होगा। मिट्रो के लिए तो अपनी सभ्यता ही आन-बान थी, उसी वक्त सहारा को सूचना देने के लिए रवाना हो गया उधर कबीले वालों ने सम्राट कैलाथ को कुछ देर रोकने के लिए जाल बिछाना शुरू कर दिया और जैसे ही बारिश कम हुई नदी का बहाव भी कम हो गया इसका फायदा उठाकर कैलाश ने नदी पार करने की सोची पर इस नदी को पार करना आसान नहीं था उनके पास इतने बड़े जहाज भी नहीं थे कि इस विशाल सेना को नदी पार कराई जा सके।  अचानक सैनिकों को आदेश दिया गया कि नदी में कूदे और जब तक कि एक पुल का निर्माण ना हो जाए। लगातार धीरे-धीरे डूबते गए और अंत में एक पुल का निर्माण सैनिकों की देह पर हुआ, सम्राट अब खुद अपनी शक्ति को कम कर रहा था जैसे ही नदी पार की कबीले वालों के जाल में फंस गए पर कब तक कुछ देर में ही कबीले वालों का खात्मा हो चुका था उन्होंने उन्हें मारकर अपना ग्रास बनाया और आराम करने लगे कैलाश अपनी आधी से ज्यादा सैन्य शक्ति अभियान के शुरुआत के समय ही नदी को पार करते हुए खो बैठा था लेकिन कैलाश को तनिक भी भय नहीं था वह तो जीत की आंधी में डूबा हुआ था कि उसे कोई हरा ही नहीं सकता कहते हैं कि जब अंत समय आता है तो हमारी मति मारी जाती है।





मिट्रो ने जैसे ही सहारा प्रांत में कदम रखा उसे बंदी बना लिया गया और प्रताड़ित किया जाने लगा दरबार में उसे प्रिंस के सामने पेश किया गया मिट्रो ने सारी बात सहारा को बताई पर सारा ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया क्योंकि वह इस मौसम में नदी पार नहीं कर सकता था उन्होंने बार-बार समझाया कि कैलाश ने अपनी आधी से ज्यादा सैन्यशक्ति को नदी के हवाले कर उस पर पुल बनाकर की है और वह इस वक्त बहुत कमजोर है आपके पास मौका है उसे हराने का उससे बदला लेने का और यदि जल्दी नहीं की गई तो संभलना मुश्किल होगा, आवेश में आकर प्रिंस सहारा ने शर्त रखी की यदि तुम्हारी बात झूठी निकली हो तुम्हें मृत्यु दंड मिलेगा मिट्रो ने सहारा की शर्त को मंजूर किया और रातों-रात ही युद्ध की तैयारी के साथ युद्ध के लिए निकल पड़े। कैलाथ अपनी सेना के साथ आराम कर रहा था उन्हें इस बात का जरा सा भी भान नहीं था कि उन पर आक्रमण हुआ है कैलाथ युद्ध के लिए तैयार नहीं था उसे अचानक सदमा सा लगा और भौचक्का हो कर देखने लगा ,सैनिकों को वापिस चलने का आदेश दिया और भागना शुरू किया फिर क्या था प्रिंस सहारा के पास जीतने का यही सही अवसर था, पीछे से सहारा ने आक्रमण कर दिया, कैलाथ नदी पार कर चुका था लेकिन अब समय कम था और नदी पार जाने के लिये प्रिंस सहारा भी उस पुल के सहारें नदी पार कर रहा था नदी पार होते ही गीली रेत से तूफान उठने लगा सम्राट कैलाथ अपने ही बनाए जाल में फंस गया था, काले खून की सरिता बहने लगी सारा के सैनिकों का लाल खून भी काला होने लगा सात दिनों की लड़ाई में आखिरकार प्रिंस सहारा विजय हुआ। चारों और काला ही काला खून नजर आ रहा था पूरा मरुस्थल उस काले खून से सना दिखाई दे रहा था, सहारा की जय जयकार होने लगी और साथ में सरदार मिट्रो की भी पर मन उदास था अपनों को खोने का दुख मिट्रो को शक्तिहीन कर रहा था प्रिंस सहारा ने सरदार मिट्रो से खुश होकर अपनी पुत्री की शादी का प्रस्ताव रखा और राजमहल में चलने के लिए आग्रह किया पर सरदार तो अपनी मातृभूमि अपनी सभ्यता और संस्कृति को छोड़कर नहीं जाना चाहता था। 





इस बात को देखते हुए प्रिंस सहारा ने अपनी बेटी की शादी करके अपने प्रांत के कबीलों को वहाँ रहने के लिए राजी कर लिया और एक नई सभ्यता को जन्म दिया सब कुछ अच्छा चल रहा था चारों और खुशियां ही खुशियां थी पर नियती को जो मंजूर होता है वही होता है। कई वर्षों बाद एक दिन अचानक बादल फटने और मिट्टी के कटाव से किनारा चौड़ा हो गया और नदी उफन कर बहनें लगी धीरे-धीरे सारा प्रान्त अपने आगोश में ले लिया अब सब कुछ खत्म हो चुका था पर इतना सब कुछ होने के बाद भी सरदार मिट्रो का झंडा अब भी लहरा रहा था इस प्रकार जब नई सभ्यता ने वहां कदम रखा तो उसका नाम सरदार मिट्रो के नाम पर “मिश्र” पड़ा जबकि काले खून से सनी धरती को कालाहारी मरूस्थल के नाम से जाना जाने लगा और दक्षिण में प्रिंस सहारा के नाम पर सहारा मरुस्थल तथा काले खून और लाल के मिश्रण से नीलक नदी के पानी का रंग जो नीला पड़ने से नील नदी पडा। “आज भी मिश्र के लोग अपनी संस्कृति के लिए खुद को मिटाने में पीछे नहीं रहते यही होती है सच्ची बलिदानी"। 


                                -: समाप्त :-



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