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चाचा चुगलखोर - [ भाग - 1 ] Hindi Story
... सिराज अब तक किसी और बस में चढ़ गया था इसलिए चाचा की आँखों से ओझल हो गया था। चाचा की आँखों में अब तक हैरानी बसी हुई थी वो सिराज को बस में सामान बेचता देख सोच रहे थे की हूँ... ये हैं सेल्स डिपार्टमेंट की नौकरी, अब बताता हूँ इसके बाप मंसूर को, मुझे दूकान से भगाया था।
चाचा के दिल में तो आया की सफर यही छोड़के अभी-अभी वापिस चले जाए और सारे मोहल्ले में जाके नागडा बजा दे लेकिन फिलहाल उनका मन चुगली से ज्यादा अपनी हसरतों की सबसे खूबसूरत तस्वीर के रूबरू होने का था। शकूरन से मिलने का था। लिहाजा ये तय किया की वो सफर जारी रखेंगे और फिर वापिस जाकर मोहल्ले में सबको सच बताएँगे। बस चल पड़ी थी, दोनों तरफ के रास्ते हरियाली से ढके हुए थे, जहाँ तक नजर जाती थी जमीन ही जमीन दिखती थी और उनमे चिड़ियाँ भागने के लिए बच्चों के पुराने कपडे पहनाकर खड़े किये पुतले भी। क्या चच्चा क्यों मुस्कुरा रहे हैं अकेले-अकेले ? अरे बस यूहीं कुछ याद आ गया था, अब आदमी मुस्कुराये भी नहीं क्या ? एक जीन्स-टी शर्ट पहने लड़का जो हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए खड़ा था बोला, अरे नहीं, नहीं बिलकुल मुस्कुराईये। तो कहां जा रहे हो ? चाचा ने उससे पूछा तो वो बोला, ' सादपुरा '। हूं अच्छा पता हैं, वो डिपो पे बगल में एक बस खड़ी थी ना! चाचा ने पेट हल्का करने के लिए उस अजनबी को बताना शुरू कर दिया अरे वो लाल वाली रोडवेज बस में एक लड़का सामान बेच रहा था, हमारे मोहल्ले का हैं। अरे पुरे मोहल्ले को कह रखा था की शहर में नौकरी करता हैं, सेल्स की!.... ये हैं उसकी सेल्स की नौकरी बताओ भई! उस लड़के ने कोई ख़ास जवाब नहीं दिया लेकिन चाचा को कुछ राहत मिली।
चाचा फिर बोले, ये मिठाई का डिब्बा लेकर कहाँ जा रहे हो ? वो लड़का मुस्कुराया और बोला, "अपनी होने वाली बेगम से मिलने जा रहे हैं"। उस लड़के ने चाचा को बताया की उसी होने वाली मोहतरमा की सालगिरह हैं और उनके लिए तौहफे लेके जा रहे हैं। ये मिठाई का डब्बा, तोहफा... इतनी जमीनी सोच तो हमाये जमाने में भी नहीं थी चाचा हैरानी से बोले तो लड़के ने जवाब दिया, चाचा मेरी बेगम मतलब होने वाली बेगम को मिठाई बहुत पसंद हैं और सच कहूँ तो जिस लड़की को मीठा पसंद होता हैं ना उसको मीठा खिला के ना आप कभी भी खुश कर सकते हैं। ये महँगे तोहफे, लच्छेदार बातें सब बेकार हैं। चाचा बात तो उस नौजवान से कर रहे थे लेकिन सोच अपने बारे में रहे थे। उन्हें याद आ रहा था की शकूरन को भी तो मीठा बहुत पसंद हैं। एक बार घनश्याम की शादी में जब रतजगा हुआ था तो गुलगुले खाते हुए उसने बताया था। मंसूर खान जो उसके मुंहबोले भाई थे उन्होंने उसके लिए ख़ास गुलगुले मंगवाए थे। अरे बस किसी मिठाई की दूकान पर रुकेगी क्या ? चाचा ने कंडक्टर से पूछा तो उसने बताया की अगले स्टॉप पे मिठाई मिल जाएगी।
खैर तो इस तरहा कुछ घंटों के सफर के बाद चाचा इल्हाबलपुर के पीर बाबा की दरगाह के पास खड़े थे हाथ में बर्फी का डब्बा था। अब वो चाहते तो पहले दरगाह पर जियारत कर सकते थे लेकिन उनको वहां कौन सा जाना था। दरगाह की पिछली गली में रहने वाली शकूरन के घर की तरफ बड़े, एक तकरीबन टुटा हुआ मकान था, लकड़ी के पुराने दरवाजे, दीवारों पे दाग, ऊंचा सा चबूतरा। उस मकान के आस-पास के सारे मकानों में बाबा के मुरीद ही रहते थे। गली का माहौल सूफियाना था नीला कपडा ओढ़े कई मुरीद आते-जाते दिख जाते थे और हर नुक्कड़ पर फ़क़ीर बैठे औंघाते रहते।
अरे कोई हैं, कोई हैं क्या? चाचा ने पुकारा तो एक अंगड़ाई लेती हुई आवाज चाचा के कानों तक पहुंची। कौन हैं ? आ रही हूँ, चाचा ने फ़ौरन अपनी बादामी संत्री की शिकन बराबर की और चश्मे को दुबारा कायदे से नाक पर रखा और चेहरे पर सदी हुई सी मुस्कुराहट लिए खड़े हो गए। अरे आप! सलामु अलयकुम। चाचा के सामने एक नरगिसी, खूबसूरत चेहरा खड़ा था, उसकी आँखे नीलम की तरह खुबसुरत थी, वजन पिछली बार से थोड़ा बढ़ गया था लेकिन जच रहा था। कत्थई सलवार-कुरता पहने और सर पे दुप्पटा लिए शकूरन दरवाजे पे खड़ी थी।
हाय! क्या नसीब है ? भला हो पीर सरकार का आज आप ही को याद कर रही थी। आइये अंदर आइये, मंसूर भाईजान कैसे है? अच्छे हैं, अरे मैं तो बस यही आया था मजार पे तो सोचा आपकी खैरियत लेता चलू। कैसी है आप? लीजिये ये बर्फी भी लीजिये ना बड़ी मशहूर है ये। मिठाई देख के शकूरन मुस्कुराई तो चाचा के दिल से उस अजनबी लड़के के लिए सैकड़ों दुआएं निकलीं। वैसे बड़े जमाने हो गए अंडा सालन खाये हुए-चाचा ने कहा तो शकूरन बोलीं, "अजी इसमें क्या है, कभी भी खिला देंगे कहे तो अभी बना दें। चाचा ने कहा- नहीं, यहां नहीं अब, वैसे अब यहीं रहने का इरादा है क्या? अरे भई अपने घर पे आ जाया कीजिये मोहल्ला बहुत सूना-सूना लगता है। चाचा ना थोड़ा अपनेपन से कहा तो वो बोली, जी अभी तो पता नहीं पीर सरकार की दरगाह में इतना सुकून मिलता है न कि आगे का कुछ सोचा नहीं है। अरे ऐसे कैसे नहीं सोचा है? जिंदगी हैं आपकी अपने बारे में सोचिए। चाचा ने पासा फेंका तो वो मुस्कुरा दीं। कुछ देर चाचा और शकूरन बातें करते रहे फिर शकूरन ने कहा - ये तो बड़ा अच्छा हो गया की आप बर्फी ले आए। चाचा के चेहरे पर मुस्कुराहट फैलने लगी सोचा कि वो एक टुकड़ा मिठाई का खाएंगी और फिर यही मिठास उनके रिश्ते को एक कदम आगे बढ़ा देगी। वो बोली, आज हमाये अब्बा की बरसी है ना तो फातेहा करना था। अब्बा को बर्फी बहुत अजीज थी लेकिन यहाँ कहीं मिल ही नहीं रही थी। चलिए आप ले आए तो अब फातेहा भी कर दीजिये, यही बैठ जाइए तखत पे। चाचा के तन बदन में आग लग गई। अरे कहा तो सोचा था कि मिठाई खिला के कुछ मुँह मीठा करने वाली बात करेंगे, लेकिन हाय रे किस्मत इश्क़ की मिठाई पे मरे हुए अब्बा का फातेहा हो रहा है।
खैर वो जो मुकम्मल किया और बैठ के मनमसोस के बर्फी की प्लेट के सामने हल्की नाराजगी में आयते पढ़ने लग गए। फातेहा वगैरह होने के बाद शाम को दोनों साथ-साथ मजार पहुंचे। चाचा को उधर से वापसी करनी थी। मजार पहुंचे तो देखा कि अजीब आलम था हर कोई शकूरन को पहचानता था। सामने आस्ताने पे लोगो की भीड़ लगी हुई थी जो लाइन्स से एक-एक करके मजार पर माथा टेक रहे थे। रोशनी से जगमगाया हुआ था वहीं कुछ मेले वाले लोग भी थे। कोई तेज आवाज पीर बाबा के जिक़्रों वाली सीटी बजा रहा था तो कोई चाट पकौड़ी बेच रहा था। भीड़ बहुत थी धक्का -मुक्की होने लगी तभी शकूरन ने चाचा का हाथ पकड़ लिया, आइए इधर से निकल आए आराम से। सामने की जगमगाहट चाचा की आंखो में उतर आई और सुन्न हो गए। दिल तो किया की युहीं खड़े रहे सदियों तक। उन नर्म हाथों का लम्स उनके अंदर तक झुरझुरी पैदा कर रहा था। इतझुरझुरी इतनी ज्यादा हो गई की चाचा से संभली नहीं शकूरन भीड़ के बीच से उनका हाथ थामे चलती चली जा रही थी। चाचा एकटक उनपे आँखे टिकाए तेज कदमों से साथ चल रहे थे।साँसे तेज हो रही थी, धड़कने बढ़ रही थी ब्लड प्रेशर हाई हो रहा था, पसीना कनपटी से गुजर रहा था। बस, बस हो गया। चाचा ने आंखें बंद करते हुए सूखे होठों से कहा। क्या हो गया? शकुरन ने कहा तो वो बोले वक्त हो गया है, अब वापस जाना है, बस यही मिलेगी। शकुरन बोली, लेकिन जियारत तो कर लीजिए। चाचा, शकूरन की आँखों में देखते हुए फिल्मी अंदाज में बोले, " कर तो ली "!
उनके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट उभर आई। पता नहीं, शकूरन को ये बात समझ में आयी या नहीं पर वो भी मुस्कुरा रही थी। चाचा का तो आज दिन बन गया था। शकूरन से दुबारा जल्द आने के वादे के साथ वो बस अड्डे की तरफ चल दिए। पूरे रास्ते पेट में हजारों तितलियाँ घूमती रही। बस अड्डे पर पहुँचकर बस मिलने में थोड़ी देर हुई लेकिन आख़िरकार उनको बस मिल गयी।
पीछे की सीट पे जाके चाचा आराम से बैठ गए और शकूरन के साथ अपनी जिंदगी के किस्से गढ़ने लगे तभी बस में एक आवाज आई........ पेट में कीड़े हो जाते हैं, अल्सर हो जाता है, आंतों में अकड़न हो जाती है, पेट साफ नहीं होता है, ए भाईसाब! हर दर्द का एक इलाज, 'लुकमान हलुआ' यूनानी इलाज का बेताज नुस्खा। ए भईया! बाजार से लेंगे महंगा पड़ेगा कंपनी का परचार आपका फायदा बड़ी बोतल के साथ छोटी बोतल मुफ्त दी जा रही है। हाँ, देखिये ना, देखिये, देखने का कोई चार्ज नहीं है। ए अंकल..... तभी उसकी नजर चाचा पर पड़ गई। सिराज, ए ए ए ए......बोलता ही रह गया, सिराज का भांडा फूट गया था। चाचा सीट पर पीछे बैठे मुस्कुरा रहे थे। सिराज के हाथ पैर ऐसे भूल गए थे, मानो उसने बस में चाचा को नहीं किसी भूत को देख लिया हो........
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* क्या चाचा, सिराज की हकीकत पुरे मोहल्ले को बताने से खुद को रोक पाएंगे ? शकूरन के साथ उनकी कहानी कैसे आगे बढ़ेगी? देखते हैं चाचा चुगलखोर के तीसरे भाग में..... इसके लिए हमें Follow करे ताकि आप हमसे जुड़े रहे और ऐसी ही अन्य कहनियों के अपडेटस आप तक सबसे पहले पहुंचे।
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